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Sagar News: वैद्य ने टटोली भगवान जगन्नाथ की नब्ज, 27 को शहर में निकलेगी रथयात्रा, 250 साल पुरानी है परंपरा

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, सागर Published by: सागर ब्यूरो Updated Wed, 25 Jun 2025 10:34 AM IST
सार

महामंडलेश्वर एवं जगदीश मंदिर के महंत श्री हरिदास जी के अनुसार सिद्ध क्षेत्र पटेरिया का अपना विशिष्ट धार्मिक इतिहास है। इसकी स्थापना सिद्ध बाबा महाराज ने की थी। 250 साल से यहां रथयात्रा निकालने की परंपरा चल रही है। 

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The doctor has checked the pulse of the Lord, a grand Rath Yatra will be held on June 27
हर वर्ष आषाढ़ मास की द्वितीया तिथि पर निकाली जाती है भगवान की यात्रा।
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विस्तार
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देश के इतिहास में भले ही बीते समय की बात हो चुकी हो, लेकिन गढ़ाकोटा के इतिहास में इसकी वर्तमान धार्मिक परंपरा आज भी जीवित है। हर वर्ष आषाढ़ मास की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ स्वामी, श्री बलराम भैया और बहन सुभद्रा की पावन रथयात्रा पूरे भव्यता से निकाली जाती है। यह धार्मिक आयोजन बीते ढाई सौ वर्षों से भी अधिक समय से अनवरत रूप से आयोजित किया जा रहा है। इस रथयात्रा की शुरुआत सिद्ध क्षेत्र पटेरिया जी से हुई थी, जो आज भी श्रद्धा और आस्था का प्रतीक माना जाता है। दूर-दराज से श्रद्धालु इस आयोजन में शामिल होकर अपने मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि जो श्रद्धालु उड़ीसा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा में शामिल नहीं हो पाते वे गढ़ाकोटा आकर पुण्य लाभ अर्जित करते हैं। इस बार यह भव्य रथयात्रा 27 जून को निकाली जाएगी, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के भाग लेने की संभावना है।
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सिद्ध क्षेत्र पटेरिया का धार्मिक महत्व
महामंडलेश्वर एवं जगदीश मंदिर के महंत श्री हरिदास जी के अनुसार सिद्ध क्षेत्र पटेरिया का अपना विशिष्ट धार्मिक इतिहास है। इसकी स्थापना सिद्ध बाबा महाराज ने की थी। यही कारण है कि यहां पुण्यसलिला नर्मदा मैया के प्राकट्य की भी किवदंती जुड़ी हुई है। यह स्थान आज “लोंग झिरिया” के नाम से जाना जाता है।
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1857 से शुरू हुई रथयात्रा की परंपरा
1857 में महंत जानकीदास जी के मार्गदर्शन में पहली बार एक अस्थाई रथ पर भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा की मूर्तियों को विराजमान कर रथयात्रा निकाली गई थी। इस आयोजन से प्रभावित होकर अगले वर्ष 1858 में एक मुस्लिम थानेदार ने स्थायी रथ का निर्माण करवाया, जो धार्मिक सौहार्द्र का अद्भुत उदाहरण माना जाता है। इसके बाद महंत रामसेवकदास जी के काल में दो और रथों का निर्माण हुआ। इसके बाद से तीनों देव विग्रहों की रथयात्रा पुरी धाम की तर्ज पर गढ़ाकोटा के जगदीश मंदिर पटेरिया से जनकपुरी मंदिर (बाजार वार्ड) तक निकाली जाती है।

रथयात्रा की धार्मिक परंपराएं
रथयात्रा की तैयारियां ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा से प्रारंभ हो जाती हैं, जब तीनों देव विग्रहों को मंदिर के बाहर दर्शनार्थ स्थापित किया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दौरान भगवान जगन्नाथ अस्वस्थ हो जाते हैं और उनका उपचार एक वैद्य द्वारा किया जाता है। पूर्व में वैद्य पं. कालीचरण तिवारी भगवान का इलाज करते थे, अब यह परंपरा उनके वंशज पं. अंबिकाप्रसाद तिवारी निभा रहे हैं। एकादशी को भगवान को औषधि रूपी जड़ों का जल और दाल का पानी पिलाया जाता है। प्रतिपदा को भगवान को खिचड़ी खिलाई जाती है और अगले दिन द्वितीया तिथि को उन्हें मालपुआ, पूड़ी तथा छप्पन भोग अर्पित किया जाता है। इसी दिन रथयात्रा नगर भ्रमण करती है और श्रद्धालुओं को शुद्ध घी से बने मालपुए और पूड़ी का प्रसाद वितरित किया जाता है। 
 

भगवान हुए बीमार

 

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