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सद्भावना व्याख्यानमाला का समापन: पर्यावरणविद जोशी बोले- प्रकृति के प्रचंड संकेत न समझे तो विनाश की ओर बढ़ना तय
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, उज्जैन
Published by: उज्जैन ब्यूरो
Updated Sun, 23 Nov 2025 07:38 PM IST
सार
MP: कुचिपुड़ी नृत्याचार्य पद्मश्री जयराम ने कहा कि हमारे देश में गुरु-शिष्य परंपरा और परिवार परंपरा दोनों ही अद्भुत रूप से संपन्न हैं। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक कला का सिर्फ कौशल ही नहीं, उसका संस्कार भी सौंपा जाता है।
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अनिल जोशी, पर्यावरणविद
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
प्रकृति जिस वेग से बदली है, हमने उसे उतनी गंभीरता से कभी लिया ही नहीं। आज प्रचंड गर्मी का जो असहनीय वातावरण हमारे सामने है, वह चेतावनी नहीं, बल्कि दंड के रूप में खड़ा है। कभी वर्षा ऋतु के गीत गाए जाते थे, उसकी प्रतीक्षा उत्सव की तरह होती थी। पर अब वही वर्षा विनाश लेकर लौट रही है। फसलें सूख रही हैं, धरती तप रही है, और चक्रवातों की खबरों से अखबार रोज भय से भर रहे हैं। यह प्रकृति का दंड है, जिसे हम सब भोगने को विवश हैं। प्रकृति के इन प्रचंड संकेतों को ना समझे तो विनाश की ओर बढ़ना तय है।
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उक्त विचार पर्यावरण विद पद्मभूषण अनिल प्रकाश जोशी ने कर्मयोगी स्व. कृष्णमंगल सिंह कुलश्रेष्ठ की प्रेरणा और पद्मभूषण डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन की स्मृति में भारतीय ज्ञानपीठ में आयोजित 23वीं अखिल भारतीय सद्भावना व्याख्यानमाला के सातवें और समापन दिवस पर मुख्य वक्ता के रूप में डिजिटली प्रस्तुत किए। आप नहीं बदलेंगे तो प्रकृति आपको बदल देगीह्व विषय पर अपनी बात रखते हुए श्री अनिल प्रकाश जोशी ने कहा कि हमने प्रकृति को नहीं, अपनी इच्छाओं और सुविधाओं को संरक्षित किया। जिन्हें अपना कहा, उन्हें पालाझ्रपोसा; जिन्हें अपना न माना, उनके अस्तित्व को ही खतरे में डाल दिया।
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हमने अपनी खुशी के लिए कुत्तों को घरेलू बनाया और परिणाम यह कि आज हजारों आवारा कुत्ते हमारी गलियों में घूम रहे हैं। दूसरी ओर भेड़िए, चिंपांजी और वे सभी जीव, जिनकी उपस्थिति प्रकृति के संतुलन के लिए अनिवार्य है उनकी संख्या निरंतर घट रही है। यह स्पष्ट है कि हमने अपने स्वार्थ के जीवों को तो पनपने दिया, पर प्रकृति के लिए आवश्यक जीवन को नहीं।
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दीप प्रज्जवलन माधव विज्ञान महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. हरीश व्यास, एडवोकेट मुकेश ठाकुर, पूर्व सभापति नगर निगम सोनू गहलोत, हर्षा वाघे,अमृता कुलश्रेष्ठ द्वारा किया गया। अतिथि स्वागत संस्था प्रमुख युधिष्ठिर कुलश्रेष्ठ ,रिचा विचार मंच के महेश ज्ञानी, शशि भूषण, पुष्पेंद्र शर्मा, यु एस छाबड़ा, डॉ प्रेम प्रकाश अग्निहोत्री ,अजय मेहता, पं उमाशंकर भट्ट राजेंद्र तिवारी, प्रशांत शर्मा, राजेंद्र तिवारी, पुष्पेंद्र शर्मा, श्रेया शुक्ला, डॉ एस एन शर्मा, कृष्ण जोशी, श्वेता पंडया, प्रफुल्ल शुक्ला सहित अनेक गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।
कला सिर्फ कौशल ही नहीं, संस्कार भी सिखाती है- पद्मश्री जयराम
कुचिपुड़ी नृत्याचार्य पद्मश्री जयराम ने कहा जब प्रकृति हमें अपने संतुलन की ओर लौटने का संदेश दे रही है, उसी समय हमारी संस्कृति और कलाएँ भी हमें अपनी जड़ों से जुड़े रहने की प्रेरणा देती हैं। विविध कलाओं वाला हमारा देश वास्तव में इन्द्रधनुष की तरह है। हमारे देश की नृत्य कला, शिल्प कला सभी अत्यंत विविध, समृद्ध और सदियों की साधना से निर्मित हैं। हमारे शास्त्रीय नृत्य देव, देवताओं और देवियों से प्रेरित होते हैं।
चारों वेदों में जो बताया गया है, उन्हीं के आधार पर इनकी संरचना बनी है। हमारे संगीत का मूल भी वेदों से ही उत्पन्न हुआ। पहले इन कलाओं का प्रदर्शन दीपावली जैसे पावन अवसरों पर होता था, और समय के साथ यह राजाओं के दरबारों तक पहुंचा, जहां इसे और संरक्षण मिला। हमारे देश में गुरु-शिष्य परंपरा और परिवार परंपरा दोनों ही अद्भुत रूप से संपन्न हैं। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक कला का सिर्फ कौशल ही नहीं, उसका संस्कार भी सौंपा जाता है। यही कारण है कि भारत की कलाएँ केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि जीवन-दृष्टि हैं परंपरा हैं और हमारी सांस्कृतिक पहचान का आधार हैं।