{"_id":"68c40050d72f3e088802e8c3","slug":"shradh-is-the-confluence-of-soul-science-and-courtesy-significance-of-shradh-rituals-2025-09-12","type":"photo-gallery","status":"publish","title_hn":"Shradh 2025: आत्मा, विज्ञान और कर्तव्य का संगम है श्राद्ध, वेद-पुराणों में मिलता है वर्णन","category":{"title":"Predictions","title_hn":"बोले तारे","slug":"predictions"}}
Shradh 2025: आत्मा, विज्ञान और कर्तव्य का संगम है श्राद्ध, वेद-पुराणों में मिलता है वर्णन
शिव प्रकाश पाराशर, यज्ञाचार्य
Published by: ज्योति मेहरा
Updated Fri, 12 Sep 2025 04:57 PM IST
सार
श्राद्ध की परंपरा विज्ञान, श्रद्धा एवं मनोविज्ञान का अद्भुत संगम है। यह परंपरा हमें याद दिलाती है कि हम अकेले नहीं हैं।
Pitru Paksha Shradh 2025: श्राद्ध एक ऐसा वैदिक उपक्रम है, जो आत्मा, श्रद्धा, विज्ञान, संस्कृति और कर्तव्य का संगम है। यह हमें याद दिलाता है कि हम अकेले नहीं हैं, हमारे पीछे एक वंश, एक परंपरा, एक संस्कार और एक उत्तरदायित्व है। इस वर्ष 7 सितंबर, 2025, रविवार, तिथि भाद्रपद, शुक्ल पूर्णिमा से श्राद्ध पक्ष शुरू होकर 21 सितंबर, 2025, रविवार, सर्व पितृ अमावस्या, तिथि अश्विन, कृष्ण अमावस्या को समाप्त होगा।
नैव मृत्युः न विस्मरणं, यत्र सत्कारो भविष्यति। अर्थात- जहां पूर्वजों का सम्मान होता है, वहां न मृत्यु का भय रहता है, न विस्मृति की पीड़ा का।
सामाजिक संतुलन : श्राद्ध कर्म के दौरान पूरे परिवार का एकत्र होना, मिलकर भोजन बनाना और ब्राह्मणों को भोजन कराना सामाजिक एकता और सामूहिक चेतना का प्रतीक है। इससे परिवार में संस्कारों का संचरण होता है।
श्राद्धं न केवलं मृतजनाय, अपितु जीवमानायोऽपि कल्याणम् वहति। अर्थात- श्राद्ध केवल मृत पूर्वजों का नहीं, बल्कि जीवित वंशजों का भी कल्याण करता है।
मानसिक स्वच्छता : श्राद्ध एक विशेष दिन और विधि से जुड़ा होता है। मानसिक रूप से यह मृत्यु के सत्य को स्वीकारने और पूर्वजों से मानसिक संबंध बनाए रखने का अवसर भी देता है।
स्वास्थ्य से जुड़ा विज्ञान : पितृ पक्ष में सादा, सात्विक भोजन किया जाता है। यह शरीर को डिटॉक्स करने का प्राकृतिक तरीका है। ऋतु परिवर्तन के इस काल में सादा भोजन स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो यह शरीर को संक्रमणों से बचाने में सहायक होता है।
विज्ञापन
विज्ञापन
3 of 7
ग्वेद
- फोटो : adobe stock
ऋग्वेद
पितरः सोमपीतये, अत्रिहोत्रं जुहोतन। (ऋग्वेद 10.15)
ऋग्वेद में पितरों की उपासना, हवि और तर्पण का उल्लेख है।
मनु स्मृति
त्रयो धर्मस्कन्धाः - वेदः, स्मृति:, श्राद्धकर्म च। (मनुस्मृति 3.203)
धर्म के तीन स्तंभ हैं- वेद, स्मृति और श्राद्ध कर्म।
महाभारत (अनुशासन पर्व)
पितॄणां न तु यज्ञेन न दानैः न तपोबलैः। तृप्तिर्यथा भवेत्पुत्रश्राद्धदत्तेन भोजनैः।।
पितरों को यज्ञ, दान या तपस्या से उतनी संतुष्टि नहीं होती, जितनी कि पुत्र द्वारा श्रद्धा से मिलती है।
विष्णु धर्मसूत्र
श्राद्धं श्रद्धया देयं, न श्रद्धया अदत्तं निष्फलं।
बिना श्रद्धा के किया गया श्राद्ध निष्फल होता है। श्राद्ध कर्म श्रद्धा (आस्था, भक्ति और सम्मान) से ही करना चाहिए। यदि इसे बिना श्रद्धा के किया जाए तो वह पूर्णतः निष्फल होता है।
4 of 7
स्मृति
- फोटो : adobe stock
कात्यायन स्मृति अश्राद्धकृत्यं नरकं नयति।
जो श्राद्ध नहीं करता, वह पाप का भागी बनता है और नरक की ओर जाता है।
याज्ञवल्क्य स्मृति श्राद्धं तु यः कुरुते श्रद्धया, स तर्पयत्यखिलं कुलं।
जो व्यक्ति श्रद्धा से श्राद्ध करता है, वह पूरे कुल को तृप्त करता है।
वायु पुराण
ब्रह्मा जी ने कहा- श्राद्धं कुर्वीत धर्मेण, अनश्राद्धं कुलं नश्यति।
अर्थात जो कुल श्राद्ध नहीं करता, वह धीरे-धीरे नष्ट हो जाता है। इसमें बताया गया है कि ‘श्राद्ध वंश वृद्धि का आधार है।’
कूर्म पुराण
यहां अश्विन मास के कृष्ण पक्ष को श्राद्ध के लिए सर्वोत्तम माना गया है।
मृतकों का सम्मान, जीवितों की जिम्मेदारी
उपनिषदों में पितरों को देवतुल्य माना गया है। श्राद्ध एक ऐसा वैदिक कृत्य है, जिसमें श्रद्धा, संकल्प और कृतज्ञता के साथ पितरों का स्मरण करते हुए तर्पण, पिंडदान और ब्राह्मण भोजन कराया जाता है। यह केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मिक कर्तव्य और भावनात्मक उत्तरदायित्व है।
श्राद्धं धर्मस्य मूलं स्मृतम्।
अर्थात- श्राद्ध धर्म का मूल है।
गरुड़ पुराण के पूर्व खंड में भगवान विष्णु स्वयं गरुड़ जी को श्राद्ध की महिमा बताते हुए कहते हैं कि “जो व्यक्ति श्रद्धा और विधिपूर्वक श्राद्ध करता है, उसके पितर प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं और परिवार में लक्ष्मी और पुण्य की वृद्धि होती है।”
पितरों की आत्मा को गति
आधुनिक विज्ञान और मनोविज्ञान भी मानते हैं कि कृतज्ञता और पूर्वज-स्मरण से मानसिक संतुलन, पारिवारिक एकता और सामाजिक मूल्यों की वृद्धि होती है। गरुड़ पुराण हो या मनु स्मृति, सभी शास्त्र एक स्वर में कहते हैं कि श्राद्ध पितरों की आत्मा को गति देता है और वंश की रक्षा करता है। यह न केवल मृतकों का सम्मान नहीं, जीवितों की जिम्मेदारी भी है।
एड फ्री अनुभव के लिए अमर उजाला प्रीमियम सब्सक्राइब करें
Next Article
Disclaimer
हम डाटा संग्रह टूल्स, जैसे की कुकीज के माध्यम से आपकी जानकारी एकत्र करते हैं ताकि आपको बेहतर और व्यक्तिगत अनुभव प्रदान कर सकें और लक्षित विज्ञापन पेश कर सकें। अगर आप साइन-अप करते हैं, तो हम आपका ईमेल पता, फोन नंबर और अन्य विवरण पूरी तरह सुरक्षित तरीके से स्टोर करते हैं। आप कुकीज नीति पृष्ठ से अपनी कुकीज हटा सकते है और रजिस्टर्ड यूजर अपने प्रोफाइल पेज से अपना व्यक्तिगत डाटा हटा या एक्सपोर्ट कर सकते हैं। हमारी Cookies Policy, Privacy Policy और Terms & Conditions के बारे में पढ़ें और अपनी सहमति देने के लिए Agree पर क्लिक करें।
कमेंट
कमेंट X