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पांच पाप से नहीं पूरा होता कुलदीपक का सपना, इस व्रत से मिलता है संतान सुख

ज्योतिष डेस्क, अमर उजाला Published by: विनोद शुक्ला Updated Sat, 10 Aug 2019 03:20 PM IST
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हर महीने की कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशियां हिन्दू धर्म में बहुत ही खास होती हैं। एकादशी के दिन भगवान विष्णु की आराधना उपवास भी रखा जाता है। श्रावण मास की एकादशी का विशेष महत्व होता है। इस एकादशी का व्रत करने से संतान प्राप्ति में आ रही बाधा दूर होती है। इस बार यह एकादशी 11 अगस्त को है। ज्योतिष ग्रंथों में कुछ योगों और पापों की चर्चा की गई, जिनके कारण तमाम प्रयासों के बावजूद नहीं पूरा हो पाता कुलदीपक का सपना। आइए जाने वो पांच पाप और उनसे मुक्ति के सनातनी उपाय

 
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मातृशाप से संतान क्षय 
पूर्व जन्म में या इस जन्म में आप मातृशाप से ग्रसित हैं तो निश्चित तौर पर आपको संतान से जुड़े कष्ट को भोगना ही पड़ेगा। शाप से मुक्ति के लिए पति व्यक्ति को रामेश्वरम् तीर्थ में जाकर स्नान करना चाहिए। साथ ही अपनी क्षमता के अनुसार दूध से भरा चांदी का पात्र दान करना चाहिए। भक्ति-भाव से इस उपाय को करने से जातक को मातृशाप से मुक्ति मिल जाती है और स्वस्थ, सुंदर और चरित्रवान पुत्र की प्राप्ति का सपना साकार होता है। 

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भातृशाप से संतान क्षय
पूर्व या इस जन्म में भाई से मिला श्राप आपको संतान सुख से वंचित कर सकता है। इस शाप से मुक्ति के लिए पूरे भक्ति भाव से भगवान विष्णु की पूजा करें। श्री लक्ष्मी-नारायण की कथा का श्रवण करें। यमुना या कृष्णा नदी में विशेष रूप से स्नान करें। साथ ही पीपल का वृक्ष लगाएं और उसके बड़े होने तक निरंतर उसकी सेवा करें। श्रद्धापूर्वक ऐसा करने से निश्चित रूप से आपको भातृशाप से मुक्ति मिलेगी और कुलदीपक का सपना साकार होगा।

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ब्राह्मण शाप से संतान हीनता
यदि आपने पूर्वजन्म या फिर इस जन्म में किसी ब्राह्मण शाप से पीड़ित हैं तो आपको इस शाप से मुक्ति के लिए चांद्रायण व्रत करना चाहिए। साथ ही यदि संभव हो तो किसी योग्य ब्राह्मण को गाय का दान करना चाहिए। इस श्राप की मुक्ति से निश्चित रूप से जातक को सुयोग्य पुत्र की प्राप्ति होती है। 

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पत्नी के शाप से संतान क्षय 
यदि आप पूर्व या इस जन्म में पत्नी के द्वारा दिए गए श्राप से पीड़ित हैं तो निश्चित रूप से आपको संतान सुख में तमाम तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ेगा। इस श्राप से मुक्ति के लिए व्यक्ति को श्री लक्ष्मीनारायण की प्रतिमा का विधिवत् पूजन करना चाहिए। गोदान एवं कन्यादान से भी इस श्राप से मुक्ति संभव है।
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