वास्तु गृह निर्माण की प्रक्रिया का अभिन्न अंग है। वैदिक काल से ही किसी भी घर के निर्माण के लिए वास्तु का सर्वप्रथम विचार किया जाता रहा है। भृगु, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वकर्मा, मय, नारद, नग्नजित, विशालाक्ष, पुरन्दर, ब्रह्मा, कुमार, नन्दीश, शौनक, गर्ग, वासुदेव, अनिरुद्ध, शुक्र तथा बृहस्पति ये अटठारह वास्तुशास्त्र के उपदेशक अथवा प्रणेता माने गये हैं। वास्तुदोष विचार के पीछे एक संछिप्त कथा है। प्राचीन काल में एक समय महान तपस्वी राक्षस 'अन्धक' जब अपने तपोबल से तीनों लोकों का सिंघासन हिला दिया तो जगत कल्याण के लिए महादेव ने विकराल रूप धारण करके उससे घोर युद्ध करते हुए वध कर दिया। शिव के उस विकराल ललाट से एक भीषण बिंदु पृथ्वी पर गिरा और उस बिंदु से एक विकराल मुख वाला अद्भुत प्राणी प्रादुर्भूत हुआ, उत्पन्न होते ही वह सातों द्वीपों और सम्पूर्ण पृथ्वी को निगल जाने के लिए उद्यत हुआ। उस विकराल प्राणी ने अन्धक के गिरे हुए सभी रक्तबिंदुओं का पान कर लिया और अतृप्त भाव से शिव के समक्ष घोर तपस्या करने लगा।
World Environment Day: वृक्षारोपण से घर में आती है सुख शांति और दूर होता है वास्तुदोष
तीनो लोकों का आहार कर लेने में समर्थ वह विकराल प्राणी कई दिनों तक तपस्या करता रहा कुछ ही दिन में भैरवरूप धारी शिव प्रकट हुए और प्रसन्न होकर वर मांगने को कहा, महाकाल के विकराल ललाट के गिरे बिंदु से प्रादुर्भूत उस प्राणी ने कहा कि, हे ! देव यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो तीनों लोकों को ग्रास लेने का सामर्थ्य मुझमें आ जाय। शिव ने कहा तथास्तु ! तब भयभीत ब्रह्मा समेत समस्त देव, दानव और राक्षसों ने उसके ऊपर चढ़कर चारों ओर से उसे रोक लिया। जो देव उसके शरीर के जिस अंग को आक्रान्त किये बैठे थे वहीं बने रह गए। सभी देवताओं का निवास होने से वह 'वास्तु पुरुष' नाम से पुकारा जाने लगा। इस प्रकार रोके गये उस विकराल प्राणी ने देवताओं से निवेदन किया कि, हे देव ! आप लोगों से निश्चलित किया गया मैं भला इस तरह नीचे मुख किये हुए देर तक किस प्रकार रह सकूंगा। उसके निवेदन पर ब्रह्मा और समस्त देवताओं ने कहा कि 'वास्तु के प्रसंग में जो बलि दी जायेगी और वास्तु शांति के लिए जो यज्ञ होगा वह भी तुम्हे आहार रूप में प्राप्त होगा। वास्तु पूजा न करने वाले भी तुम्हारे आहार होंगे। ब्रह्मा और देवाताओं के ऐसा कहने से वह 'वास्तु पुरुष' नामक प्राणी पूर्ण संतुष्ट हुआ। तभी से लोक में शान्ति के लिए 'वास्तु दोष' और शान्ति के यज्ञ का प्रचलन आरम्भ हुआ।
शास्त्रों में वृक्षों को संतान रूप माना गया है इसलिए वृक्षारोपण भी हमारे जीवन को सुचारू रूप से चलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। घर के पूर्व दिशा में वटवृक्ष 'बरगद' का पेड़ लगाने से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। परिवार से बेरोजगारी दूर भाग जाती है और व्यापार में भी अनुरूप वृद्धि होती है। पश्चिम दिशा में 'पीपल' का वृक्ष लगाने से प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है और घर की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
उत्तर दिशा में पाकड़ का वृक्ष लगाने से गृह में सुंदर बहुओं का आगमन होता है। नारियों के मध्य आपसी प्रेम बढ़ता है और परिवार में सुख शान्ति रहती है। दक्षिण दिशा में गुलर का वृक्ष लगाने से परिवार में अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता, धन में बरकत होती है किन्तु ध्यान रहे दक्षिण दिशा में तुलसी का पौधा भूलकर भी न लगाएं। घर के समीप कांटे वाले तथा फलहीन वृक्ष अशुभ होते हैं। घर के पास नागकेशर, अशोक, मौलसीरी, चंपा, अनार, पीपली, अर्जुन, सुपारी, केतकी, मालती, कमल, चमेली नारियल, केला, अति शुभ कारी माना गया है। द्वार के अंतिम सिरे पर अनार (उत्तर दिशा )और श्वेत मदार पूर्व दिशा की ओर लगाने से घर की दरिद्रता दूर होती है और परिवार में सद्बुद्धि आती है।

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