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जानिए उस अधिकारी के बारे में जो सेंटिनेल द्वीप से छह आदिवासियों को बाहर लेकर आया था

बीबीसी हिंदी Updated Sat, 01 Dec 2018 11:30 AM IST
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Know about the officer who brought out six Sentinelese Tribals from the island
sentinelese tribe - फोटो : WIKICOMMONS

अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के उत्तरी सेंटिनेल द्वीप पर 27 वर्षीय अमरीकी नागरिक जॉन एलिन शाओ की मौत के बाद मानव विज्ञानी टीएन पंडित का नाम चर्चा में आया। पंडित वो शख्स हैं जो सेंटिनेल द्वीप पर जा कर यहां रहने वाली जनजाति के लोगों से मिल चुके हैं।



उनसे इस घटना के बाद सेंटिनेल जनजाति के साथ उनके अनुभव के बारे में पूछा गया और वहां के हालातों पर चर्चा की गई। लेकिन, 19वीं सदी के आखिर में ब्रिटिश नौसेना के एक नौजवान अधिकारी भी इस द्वीप पर जा चुके हैं। वो दूसरी जनजाति के कुछ हथियारबंद लोगों को अपने साथ ले कर वहां गए थे, जिनके साथ उनके औपनिवेशक संबंध थे।

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maurice vidal portman

सेंटिनेल द्वीप पर जाने वाले इस अधिकारी का नाम था मॉरिस विदाल पोर्टमैन जिन्हें अंडमान में प्रभारी बनाकर भेजा गया था। उन्हें भेजने का मकसद इन अनछुए समुदायों की भाषा और परंपराओं को समझना था। उनका संपर्क बाहरी दुनिया से कराना था।
 उस वक्त भी इस आदिवासी जनजाति को लेकर कई बातें सुनने को मिलती थीं, जैसे कि जो लोग गलती से इस द्वीप पर पहुंचे उन्हें मार दिया गया या भाले लगे उनके शव पानी में तैरते हुए मिले। बताया जाता है कि जॉन एलिन शाओ की तरह पोर्टमैन ये सब बातें जानते थे। लेकिन वो उन लोगों के साथ किसी तरह से बात करना चाहते थे।

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Sentinelese tribe

इतिहासकार एडम गुडहार्ट ने साल 2000 में अमरीकन स्कॉलर मैगजीन में लिखा था कि पोर्टमैन के साथ गए अन्य आदिवासियों ने पूरे द्वीप को छान मारा था लेकिन उन्हें वहां कोई नहीं मिला। गुडहर्ट ने बताया है, "जब सेंटिनेल आदिवासियों को यूरोपीय लोगों के आने का पता चला तो वो जंगल में ही कहीं गायब हो गए।"

वह कहते हैं कि पोर्टमैन और उनके साथ गए लोग इस द्वीप की मिट्टी की उर्वरता और जंगल के पेड़-पौधों को देखकर काफी हैरान थे। वह कई दिनों तक उस द्वीप रुके और अंत में उन्हें वो मिल गया जिसके लिए आए थे। पोर्टमैन को वहां एक बुर्जुग दंपत्ति और उनके चार बच्चे मिले। वह उन्हें जहाज में अंडमान-निकोबार की राजधानी पोर्ट ब्लेयर ले आए जहां वो रहते थे। वो इन आदिवासियों पर अध्ययन करना चाहते थे। लेकिन, इस अपहरण का अंत बहुत दुखदायी हुआ।

अगली स्लाइड में पढ़ें- क्या हुआ था जब बाहरी दुनिया के संपर्क में आए थे आदिवासी

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Sentinelese tribe

सेंटिनेल द्वीप से लाए गए लोग बाहरी दुनिया और अन्य इंसानों के संपर्क में कभी नहीं आए थे। उनका शरीर भी कीटाणुओं और बीमारियों के लिए तैयार नहीं था। इसलिए द्वीप से बाहर आने पर दोनों बुर्जुग कुछ ही समय बाद बीमारी की चपेट में आ गए और उनकी जान चली गई। इसके बाद चारों आदिवासी बच्चों को तोहफों के साथ उनके द्वीप पर ही वापस भेज दिया गया।

गुडहार्ट ने बताया है कि बाद में पोर्टमैन ने आदिवासियों की जिंदगी में इस दखलअंदाजी को असफलता माना था। लंदन में रॉयल सोसाइटी ऑफ जियोग्राफी की एक बैठक में उन्होंने भारतीय द्वीपों पर अपने कुछ रोमाचंक अनुभव साझा किए थे। पोर्टमैन ने कहा था, "आदिवासियों के विदेशियों के साथ संपर्क ने उन्हें सिर्फ नुकसान पहुंचाया। मुझे एक बात का बहुत अफसोस है कि ऐसी अच्छी प्रजाति तेजी से लुप्त हो रही है।"कई विशेषज्ञों और भारत सरकार का मानना है कि इस जनजाति का अपने सिद्धांतों के अनुसार जीने की इच्छा का सम्मान करना जरूरी है।


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अंडमान के उत्तरी सेंटिनेल द्वीप में रहने वाली सेंटिनेल एक प्राचीन जनजाति है, इनकी आबादी महज 50 से 150 के करीब ही रह गई है। उत्तरी सेंटिनेल द्वीप एक प्रतिबंधित इलाका है और यहां आम इंसान का जाना बहुत मुश्किल है। यहां तक कि वहां किसी भारतीय के जाने पर भी प्रतिबंध है।

साल 2017 में भारत सरकार ने अंडमान में रहने वाली जनजातियों की तस्वीरें लेने या वीडियो बनाने को गैरकानूनी बताया था जिसकी सजा तीन साल कैद तक हो सकती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि सेंटिनेल जनजाति के लोग करीब 60 हजार साल पहले अफ्रीका से पलायन कर अंडमान में बस गए थे। भारत सरकार के अलावा कई अंतरराष्ट्रीय संगठन इस जनजाति को बचाने की कोशिशें कर रहे हैं।

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