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Valentines Day: ये हैं 'भारत मां' के 3 दीवाने, जिन्होंने बॉर्डर पर रहकर किया इजहार-ए-इश्क
मोहित धुपड़, अमर उजाला, चंडीगढ़
Published by: खुशबू गोयल
Updated Thu, 14 Feb 2019 03:56 PM IST
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indian army
वैलेंटाइन डे(Valentine's Day) के मौके पर मिलिए 'भारत मां' के उन 3 दीवानों से, जिन्होंने बॉर्डर पर रहकर इजहार-ए-इश्क किया। आज भी कहते हैं ‘माई कंट्री इज माई वेलेंटाइन’...
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इनके लिए मुहब्बत और उनकी महबूबा सिर्फ मुल्क है। वे दीवानों की तरह अपनी भारत मां से प्यार करते हैं और हर वक्त उस पर मर मिटने को बेताब भी रहते हैं। उनपर मुहब्बत का रंग कुछ इस तरह से चढ़ा हुआ है कि अपनी मातृभूमि के लिए वे मर भी सकते हैं और मार भी सकते हैं। हम बात कर रहे हैं देश के उन वीर जवानों की, जो दिन-रात अपने देश की सुरक्षा के लिए सीमाओं पर तैनात रहकर ‘इजहार-ए-मुहब्बत’ करते हैं। इन जवानों के लिए वेलेंटाइन डे के मायने भी कुछ और ही हैं। देश के तीन जिंदा परमवीर चक्र विजेता भी यही मानते हैं कि ‘माई कंट्री इज माई वेलेंटाइन।’
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भारतीय सेना का अफसर
मेरे लिए वतन से खूबसूरत कोई महबूब नहीं
वतन से खूबसूरत कोई महबूब नहीं, अगर वतन से दिल लगाओगे तो बहुत आगे बढ़ जाओगे, प्रेमिका से प्रेम तो बहुत लोग करते हैं, लेकिन देश से प्यार करना ही सच्ची मुहब्बत है। मेरा वेलेंटाइन तो मेरा देश ही है। इतिहास गवाह है लड़ाई मरकर नहीं, मारकर जीती जाती है। इस बात को मैंने टाइगर हिल में बहुत अच्छे से महसूस किया है। यह देश से प्यार का ही असर था गोलियां लगने के बावजूद मैंने टाइगर हिल पर चढ़कर दुश्मनों से भिड़ गया और ग्रेनेड हमले से चार पाकिस्तानी ढेर किए। उसके बाद बाकी पलटन को टाइगर हिल पर चढ़ने का मौका मिला। उसके बाद एक अन्य बंकर पर अपने दो साथियों के साथ हमला किया और आमने-सामने की लड़ाई में चार और पाकिस्तानी ढेर किए। जब टाइगर हिल पर तिरंगा लहराया, उस वक्त आंखों में आंसू थे और दिल में भारत मां के लिए उमड़ रहा बेशुमार प्यार। वेलेंटाइन पर मौज मस्ती में पैसे और वक्त की बर्बादी से अच्छा है, युवा अपने भीतर कुछ ऐसा प्यार जागृत करें। फिर देखें उनके लिए भी वेलेंटाइन के मायने बदल जाएंगे।
- सूबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव, परमवीर चक्र विजेता (एलओसी फिल्म में मनोज वाजपेयी ने निभाया किरदार।)
वतन से खूबसूरत कोई महबूब नहीं, अगर वतन से दिल लगाओगे तो बहुत आगे बढ़ जाओगे, प्रेमिका से प्रेम तो बहुत लोग करते हैं, लेकिन देश से प्यार करना ही सच्ची मुहब्बत है। मेरा वेलेंटाइन तो मेरा देश ही है। इतिहास गवाह है लड़ाई मरकर नहीं, मारकर जीती जाती है। इस बात को मैंने टाइगर हिल में बहुत अच्छे से महसूस किया है। यह देश से प्यार का ही असर था गोलियां लगने के बावजूद मैंने टाइगर हिल पर चढ़कर दुश्मनों से भिड़ गया और ग्रेनेड हमले से चार पाकिस्तानी ढेर किए। उसके बाद बाकी पलटन को टाइगर हिल पर चढ़ने का मौका मिला। उसके बाद एक अन्य बंकर पर अपने दो साथियों के साथ हमला किया और आमने-सामने की लड़ाई में चार और पाकिस्तानी ढेर किए। जब टाइगर हिल पर तिरंगा लहराया, उस वक्त आंखों में आंसू थे और दिल में भारत मां के लिए उमड़ रहा बेशुमार प्यार। वेलेंटाइन पर मौज मस्ती में पैसे और वक्त की बर्बादी से अच्छा है, युवा अपने भीतर कुछ ऐसा प्यार जागृत करें। फिर देखें उनके लिए भी वेलेंटाइन के मायने बदल जाएंगे।
- सूबेदार मेजर योगेंद्र सिंह यादव, परमवीर चक्र विजेता (एलओसी फिल्म में मनोज वाजपेयी ने निभाया किरदार।)
भारतीय सेना का अफसर
मां की गोद में जब लथपथ पड़ा था, उस प्यार का मजा कुछ और था
मेरा मकसद और मुहब्बत सिर्फ देश है। त्योहार और परिवार छोड़कर सबसे पहले मेरे लिए मातृभूमि है। यह अहसास तब से है, जब से मैंने फौज ज्वाइन की। लेकिन कारगिल स्थित मॉस्को वैली के फ्लैट टॉप पर इस अहसास को मैंने जीया है। टीम के 11 साथियों में से 8 घायल और 2 शहीद हो गए थे। मेरी राइफल में गोलियां भी खत्म हो गई थीं। तीन गोलियां (दो टांग पर, एक पीठ पर) मुझे भी लगी हुईं थीं। लेकिन सामने अपनी मुहब्बत, अपनी मातृभूमि की छाती पर पांव रखकर आगे बढ़ते दुश्मन दिखाई दे रहे थे। कुछ नहीं सूझ रहा था। खून से लहूलुहान आगे बढ़ा और हाथ में पट्टी बांधकर बेपरवाह एक बंकर से दुश्मन की राइफल छीनकर उन्हीं पर गोलियां दाग दी। तीन जवान मारे गए और बाकी भाग गए। मैं घायलावस्था में वहीं मातृभूमि की गोद में गिर गया, उस वक्त भारत मां के साथ मेरी मुहब्बत पूरी तरह परवान चढ़ रही थी, मां के लिए मरने को भी तैयार था। उसके बाद पलटन की रिइन्फोर्समेंट पहुंची और फ्लैट टॉप पर कब्जा किया। मेरा युवाओं से यही कहना हैकि देश से प्यार और वफादारी सिर्फ फौज ही नहीं, बल्कि हर फील्ड में रहकर की जा सकती है। फौजी ही नहीं, बल्कि सिविलियंस भी देशभक्त कहलाए जा सकते हैं। आज शिक्षकों से अपील है कि वफादारी और देशप्रेम के संस्कार बच्चों में जरूर डालें।
-सूबेदार संजय कुमार, परमवीर चक्र विजेता (एलओसी फिल्म में सुनील शैट्टी ने निभाया किरदार)
मेरा मकसद और मुहब्बत सिर्फ देश है। त्योहार और परिवार छोड़कर सबसे पहले मेरे लिए मातृभूमि है। यह अहसास तब से है, जब से मैंने फौज ज्वाइन की। लेकिन कारगिल स्थित मॉस्को वैली के फ्लैट टॉप पर इस अहसास को मैंने जीया है। टीम के 11 साथियों में से 8 घायल और 2 शहीद हो गए थे। मेरी राइफल में गोलियां भी खत्म हो गई थीं। तीन गोलियां (दो टांग पर, एक पीठ पर) मुझे भी लगी हुईं थीं। लेकिन सामने अपनी मुहब्बत, अपनी मातृभूमि की छाती पर पांव रखकर आगे बढ़ते दुश्मन दिखाई दे रहे थे। कुछ नहीं सूझ रहा था। खून से लहूलुहान आगे बढ़ा और हाथ में पट्टी बांधकर बेपरवाह एक बंकर से दुश्मन की राइफल छीनकर उन्हीं पर गोलियां दाग दी। तीन जवान मारे गए और बाकी भाग गए। मैं घायलावस्था में वहीं मातृभूमि की गोद में गिर गया, उस वक्त भारत मां के साथ मेरी मुहब्बत पूरी तरह परवान चढ़ रही थी, मां के लिए मरने को भी तैयार था। उसके बाद पलटन की रिइन्फोर्समेंट पहुंची और फ्लैट टॉप पर कब्जा किया। मेरा युवाओं से यही कहना हैकि देश से प्यार और वफादारी सिर्फ फौज ही नहीं, बल्कि हर फील्ड में रहकर की जा सकती है। फौजी ही नहीं, बल्कि सिविलियंस भी देशभक्त कहलाए जा सकते हैं। आज शिक्षकों से अपील है कि वफादारी और देशप्रेम के संस्कार बच्चों में जरूर डालें।
-सूबेदार संजय कुमार, परमवीर चक्र विजेता (एलओसी फिल्म में सुनील शैट्टी ने निभाया किरदार)
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भारतीय सेना का अफसर
वो मुहब्बत ही थी, जो वतन पर मर मिटने को तैयार कर गई
मुझे नहीं मालूम उस वक्त कौन सा प्यार उमड़ा, जब मेरे अफसरों ने कहा कि सियाचीन ग्लेशियर को पाकिस्तान के कब्जे में मुक्त करना है और वहां बनी पाक की ‘कायद चौकी’ को हटाकर अपनी चौकी बनानी है। मैंने तुरंत आगे बढ़कर ये टास्क मांगी और अपने चार साथियों के साथ जिंदगी जमा देने वाली बर्फीली चोटियों की ओर बढ़ गया। मन में सिर्फ एक ही बात थी कि अपनी सरजमीं से नापाक चौकी को हटाना है, भले इसके लिए क्यों न मिट जाना है। पाक ने यह चौकी एक दुर्ग की तरह बनाई थी, दोनों ओर 1500 फीट ऊंची बर्फ की दीवारें थीं। वहां तक पहुंचना मुश्किल था। लेकिन हम बढ़ते गए, रास्ते में अपने बहादुर सैनिक भाइयों के शव भी मिले, जिन्होंने वहां तक पहुंचने की कोशिश में जान गवांई थी। इस चौकी पर पाकिस्तान के स्पेशल सर्विस ग्रुप के कमांडो तैनात थे। अंधेरे का फायदा उठाकर दो हिस्से में टीम बमुश्किल चौकी तक पहुंची, तो मैंने लगातार चौकी पर ग्रेनेड फेंकने शुरू कर दिए। दुश्मन हड़बड़ा गया, उसके बाद चौकी पर हमला कर बैनेट से दुश्मन सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। इस तरह चौकी पर भारत का कब्जा हुआ। इस पोस्ट का नाम आज ‘बाना पोस्ट’ है। ऐसा सिफ और सिर्फ अपने देश से प्यार की बदौलत संभव हुआ। देश है तो हम है। देश के बिना हम कुछ भी नहीं। यूथ देश का भविष्य है, वेलेंटाइन डे पर सिर्फ मौज मस्ती ही उनके लिए सबकुछ नहीं हो सकती। बड़ी कसक है कि आज का यूथ अपने शहीदों को नहीं जानता, अपनी मातृभूमि से मुहब्बत नहीं करता।
- कैप्टन बाना सिंह, परमवीर चक्र विजेता।
मुझे नहीं मालूम उस वक्त कौन सा प्यार उमड़ा, जब मेरे अफसरों ने कहा कि सियाचीन ग्लेशियर को पाकिस्तान के कब्जे में मुक्त करना है और वहां बनी पाक की ‘कायद चौकी’ को हटाकर अपनी चौकी बनानी है। मैंने तुरंत आगे बढ़कर ये टास्क मांगी और अपने चार साथियों के साथ जिंदगी जमा देने वाली बर्फीली चोटियों की ओर बढ़ गया। मन में सिर्फ एक ही बात थी कि अपनी सरजमीं से नापाक चौकी को हटाना है, भले इसके लिए क्यों न मिट जाना है। पाक ने यह चौकी एक दुर्ग की तरह बनाई थी, दोनों ओर 1500 फीट ऊंची बर्फ की दीवारें थीं। वहां तक पहुंचना मुश्किल था। लेकिन हम बढ़ते गए, रास्ते में अपने बहादुर सैनिक भाइयों के शव भी मिले, जिन्होंने वहां तक पहुंचने की कोशिश में जान गवांई थी। इस चौकी पर पाकिस्तान के स्पेशल सर्विस ग्रुप के कमांडो तैनात थे। अंधेरे का फायदा उठाकर दो हिस्से में टीम बमुश्किल चौकी तक पहुंची, तो मैंने लगातार चौकी पर ग्रेनेड फेंकने शुरू कर दिए। दुश्मन हड़बड़ा गया, उसके बाद चौकी पर हमला कर बैनेट से दुश्मन सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। इस तरह चौकी पर भारत का कब्जा हुआ। इस पोस्ट का नाम आज ‘बाना पोस्ट’ है। ऐसा सिफ और सिर्फ अपने देश से प्यार की बदौलत संभव हुआ। देश है तो हम है। देश के बिना हम कुछ भी नहीं। यूथ देश का भविष्य है, वेलेंटाइन डे पर सिर्फ मौज मस्ती ही उनके लिए सबकुछ नहीं हो सकती। बड़ी कसक है कि आज का यूथ अपने शहीदों को नहीं जानता, अपनी मातृभूमि से मुहब्बत नहीं करता।
- कैप्टन बाना सिंह, परमवीर चक्र विजेता।