वेब सीरीज 'गुल्लक' के जरिए अपनी एक अलग पहचान बनाने वाले अभिनेता वैभव राज गुप्ता को यहां तक आने में कई साल लगे हैं। मिस्टर सीतापुर रहे वैभव को फिल्मों में अभिनय का पहला मौका साल 2017 में हिंदी फिल्म 'आश्चर्यचकित' में और वेब सीरीज में इससे भी पहले 'स्ट्रगलर्स' में मिला। लेकिन, उनको सही मायने में पहचान वेब सीरीज 'गुल्लक' से ही मिली है। 'गुल्लक' के चौथे सीजन की तैयारी शुरू हो चुकी है। इस बीच उनकी एक और वेब सीरीज 'गुड बैड गर्ल' अगले हफ्ते रिलीज होने जा रही है। ‘अमर उजाला’ से एक खास मुलाकात के दौरान वैभव राज गुप्ता ने अपने संघर्ष के दिनों की राम कहानी विस्तार से बताई। पढ़िए उत्तर प्रदेश में बेनीगंज, हरदोई से लेकर सपनों के शहर मुंबई तक की ये पूरी कहानी, वैभव राज गुप्ता की ही जुबानी...
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बेनीगंज में गुजरा बचपन
मेरा जन्म उत्तर प्रदेश में सीतापुर जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हरदोई जिले के बेनीगंज में 19 जनवरी 1991 को हुआ। सरस्वती विद्या मंदिर में सातवीं तक पढ़ने के बाद हमारा पूरा परिवार सीतापुर आ गया। यहीं सुमित्रा कॉलेज और आरपीएफ डिग्री कॉलेज से पढ़ाई पूरी करने के बाद मैंने मुंबई के 'स्कूल ऑफ ब्रॉडकास्ट कम्युनिकेशन' से मास कम्युनिकेशन में ग्रेजुएशन किया। बंबई आने के बाद भी बेनीगंज की बहुत सारी यादें आज भी मेरे जेहन में बसी हुई है। हम गायों को चारा खिलाते थे। उनका दूध दुहते थे। सब यूं लगता है जैसे कल की ही तो बात है। मैं रहता जरूर अब मुंबई में हूं लेकिन दिल से अब भी यूपी का ही देसी लड़का हूं।
छोटा भाई मुझसे आगे..
लोग अक्सर मुझसे मेरे परिवार के बारे में पूछते हैं। मेरे दादा हरिप्रसाद गुप्ता पेंटर और होम्योपैथी के डॉक्टर थे। पिता नीरज गुप्ता सहारा इंडिया परिवार में नौकरी के साथ साथ प्रॉपर्टी डीलर का भी काम करते थे। मां क्षमा गुप्ता गृहणी और छोटा भाई अमृत राज गुप्ता निर्देशक है। 'गुल्लक' का निर्देशन उसने ही किया। घर में कला का शुरू से ही माहौल रहा है। सब वर्ल्ड सिनेमा देखा करते थे। कहीं न कहीं उसी दौरान मेरा झुकाव सिनेमा के प्रति हो गया, लेकिन एक्टिंग करना है। यह नहीं सोचा था।
मिस्टर सीतापुर बना तो मिले मॉडलिंग के ऑफर
ये उन दिनों की बात है जब मेरा मन पढ़ाई में नहीं लग रहा था। शुरू से ही मन में था कि कुछ ना कुछ करना है, पढ़ाई में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी। सीतापुर में ही बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता था। उसी दौरान सीतापुर महोत्सव शुरू हुआ और मैं साल 2007 में मिस्टर सीतापुर चुन लिया गया। इसके बाद से सीतापुर में ही मॉडलिंग के ऑफर मिलने लगे। लेकिन वहां काम का ज्यादा स्कोप नहीं था। पिताजी सहरा इंडिया परिवार की तरफ से मुंबई कई बार आ चुके थे। मुंबई के किस्से वह सुनाया करते थे। मुंबई के प्रति एक आकर्षण हो गया था। बस, यही आकर्षण मुझे आगे की पढाई के लिए और जीवन में कुछ दिशा पाने के लिए मुंबई ले आया।
दादर का वो दिन अब भी याद है
साल 2009 में सीतापुर से मैं मुंबई आया। आगे की पढ़ाई करने। मुंबई के दादर रेलवे स्टेशन पर उतरा तो खूब बारिश हो रही थी। जिसके भरोसे मुंबई आया था, उसने अपना फोन स्विच ऑफ कर दिया। समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करें और कहां जाए? जेब में सिर्फ 1200 रुपए थे। तभी एक दोस्त कृतिक का खयाल आया। उससे सीतापुर से ही जान पहचान थी। उसको फोन किया और वह मुझे दादर स्टेशन पर लेने आया। उसके साथ जब मीरा रोड उसके फ्लैट पर गया तो फ्लैट की स्थिति देखकर घबरा गया। पता नहीं कैसे वहां लोग रह रहे थे? किसी तरह से वहां पांच दिन बिताए। उसके बाद कुछ दोस्तों के साथ अंधेरी पूर्व में वन रूम किचन के फ्लैट में शिफ्ट हो गया।