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President Election 2022: क्यों यशवंत सिन्हा को बंगाल में प्रचार का मौका नहीं दे रहीं ममता बनर्जी, अति-आत्मविश्वास या कोई डर?

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र Updated Fri, 08 Jul 2022 10:46 PM IST
सार

यशवंत सिन्हा राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार बनने से पहले पश्चिम बंगाल के ही प्रमुख दल तृणमूल कांग्रेस का हिस्सा रहे हैं। ऐसे में लोगों के बीच यह सवाल उठने लगे हैं कि आखिर क्यों यशवंत सिन्हा अपनी ही पार्टी के क्षेत्र में वोट की मांग करने नहीं जा रहे।

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President Election 2022 Yashwant Sinha not campaigning in West Bengal Mamata Banerjee confidence or Tribal Droupadi Murmu opposition backfire news in hindi
यशवंत सिन्हा अब तक पश्चिम बंगाल और झारखंड में चुनाव के लिए नहीं गए हैं। - फोटो : Amar Ujala
राष्ट्रपति चुनाव में अब महज दो हफ्ते का समय ही रह गया है। इस बीच विपक्ष की ओर से उम्मीदवार बनाए गए यशवंत सिन्हा और भाजपा की तरफ से द्रौपदी मुर्मू ने विधायकों और सांसदों के वोट हासिल करने के लिए अलग-अलग राज्यों का दौरा शुरू कर दिया है। जहां मुर्मू वोट जुटाने के लिए पूर्वोत्तर के राज्यों से लेकर झारखंड और बिहार तक का दौरा कर चुकी हैं, वहीं यशवंत सिन्हा भी तेलंगाना से लेकर जम्मू-कश्मीर का दौरा कर रहे हैं। खास बात यह है कि सिन्हा ने इस दौरान भाजपा शासित प्रदेशों पर भी ध्यान दिया है और वोट जुटाने के लिए उत्तर प्रदेश भी पहुंचे हैं। लेकिन उनका प्रचार के लिए बंगाल न जाना अभी भी राजनीतिक विश्लेषकों के लिए कौतूहल का विषय बना है। 
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यशवंत सिन्हा - फोटो : अमर उजाला
दरअसल, यशवंत सिन्हा राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार बनने से पहले पश्चिम बंगाल के ही प्रमुख दल तृणमूल कांग्रेस का हिस्सा रहे हैं। ऐसे में लोगों के बीच यह सवाल उठने लगे हैं कि आखिर क्यों यशवंत सिन्हा अपनी ही पार्टी के क्षेत्र में वोट की मांग करने नहीं जा रहे। कयास लगाए जा रहे हैं कि ममता बनर्जी को बंगाल से यशवंत सिन्हा को टीएमसी विधायकों के पूरे वोट्स मिलने का आत्मविश्वास है। दूसरी तरफ एक संभावना यह भी जताई जा रही है कि यशवंत सिन्हा को बंगाल में प्रचार करने का मौका देकर ममता बनर्जी अपनी वोट बैंक की राजनीति को मुश्किल में नहीं डालना चाहतीं। आइए जानते हैं कि वह क्या वजहें हैं, जिनकी वजह से यशवंत सिन्हा बंगाल में प्रचार करने नहीं गए हैं...
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यशवंत सिन्हा और ममता बनर्जी। - फोटो : Social Media
1. ममता का अति-आत्मविश्वास?
यशवंत सिन्हा से पहले संयुक्त विपक्ष ने शरद पवार, फारूक अब्दुल्ला और राज्यपाल रह चुके गोपालकृष्ण गांधी को राष्ट्रपति चुनाव की उम्मीदवारी के लिए आगे बढ़ाया। हालांकि, तीनों ने ही इससे इनकार कर दिया। बाद में खुद बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने यशवंत सिन्हा का नाम आगे किया। ममता के दबाव में इस नाम पर आखिरकार सहमति भी बन गई। दरअसल, ममता को विश्वास था कि अपनी पार्टी के किसी नेता को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर वे विपक्ष की नेतृत्वकर्ता के तौर पर आगे आ सकती हैं और टीएमसी के सांसदों-विधायकों के वोट एकजुट रखने में भी कामयाब हो सकती हैं। 
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महुआ मोइत्रा - फोटो : सोशल मीडिया
टीएमसी के लिए क्यों घातक?
हालांकि, बीते दिनों में जिस तरह से अलग-अलग राज्यों में राज्यसभा चुनाव के दौरान क्रॉस वोटिंग की घटनाएं हुई हैं, उससे ममता का यह आत्मविश्वास घातक भी साबित हो सकता है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जिस तरह से बीते दिनों में 'काली' डॉक्यूमेंट्री को लेकर विवाद बढ़ा है और उस पर पार्टी सांसद महुआ मोइत्रा का जो बयान आया है, उससे टीएमसी के कुछ विधायकों में भी गुस्सा है। भाजपा ने भी इस मौके को भुनाते हुए टीएमसी के खिलाफ प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं। 

इस स्थिति के बीच बंगाल की राजनीति में ममता को हराने वाले सुवेंदु अधिकारी का फिर से सक्रिय होना भी टीएमसी के लिए मुश्किलें पैदा कर सकता है। क्योंकि सुवेंदु के पहले से ही पार्टी में कई विधायकों और सांसदों से संपर्क हैं। ऐसे में राज्यसभा चुनाव में गुप्त मतदान होने की वजह से क्रॉस वोटिंग की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता।
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द्रौपदी मुर्मू - फोटो : अमर उजाला
2. भाजपा का ट्रंप कार्ड
विपक्ष की ओर से यशवंत सिन्हा के नाम के एलान के अगले ही दिन भाजपा ने राष्ट्रपति पद के लिए आदिवासी नेता द्रौपदी मुर्मू के नाम का एलान कर दिया था। चूंकि द्रौपदी पूर्व के किसी राज्य से आने वाली पहली महिला राष्ट्रपति हो सकती हैं, इसलिए इन राज्यों से उन्हें समर्थन मिलने की संभावनाएं काफी ज्यादा हैं। दूसरी तरफ उनका आदिवासी समुदाय से आना भी ओडिशा, झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल में भाजपा को खासा फायदा दिला सकता है। 
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