जम्मू-कश्मीर में विधानसभा (विस) चुनाव से पहले उप राज्यपाल को दिल्ली के एलजी जैसी शक्तियां देने का विरोध शुरू हो गया है। विपक्ष का कहना है कि यह लोकतंत्र की हत्या है और संविधान के खिलाफ है। जनता के चुने नुमाइंदों को विधानसभा में बिठाकर भी अधिकारों से वंचित रखा जाएगा। राज्य की निर्वाचित सरकार के लिए पुलिस और भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) एवं भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) जैसी अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों की तैनाती और तबादले के लिए उप राज्यपाल की मंजूरी जरूरी होगी।
बड़ा बदलाव: जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव से पहले उपराज्यपाल को मिलीं ये शक्तियां, विरोध में उतरा विपक्ष
जम्मू कश्मीर में उप राज्यपाल की मंजूरी के बिना अधिकारियों की तैनाती और तबादले नहीं किए जा सकेंगे। उप राज्यपाल भ्रष्टाचार रोधी ब्यूरो से जुड़े मामलों के अलावा महाधिवक्ता और अन्य कानून अधिकारियों की नियुक्ति पर भी फैसले ले सकेंगे।
पांच साल पहले पारित हुआ था जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम
पांच साल पहले 5 अगस्त 2019 को जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम (2019) संसद से पारित हुआ था। इसमें जम्मू-कश्मीर को दो हिस्सों में विभक्त कर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश बना दिया गया था। इस अधिनियम ने राज्य को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद-370 को भी रद्द कर दिया था। जम्मू-कश्मीर जून 2018 से केंद्र सरकार के शासन के अधीन है।
संशोधन में ये अहम बिंदु जोड़े, जिनका हो रहा विरोध
-पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था, अखिल भारतीय सेवा और भ्रष्टाचार रोधी ब्यूरो के संबंध में वित्त विभाग की पूर्व सहमति की आवश्यकता वाले किसी भी प्रस्ताव को तब तक स्वीकार या अस्वीकार नहीं किया जाएगा, जब तक इसे मुख्य सचिव के माध्यम से उप राज्यपाल के समक्ष नहीं रखा जाता है। अभी इनसे जुड़े मामलों में वित्त विभाग की मंजूरी लेना जरूरी है।
- विधि, न्याय और संसदीय कार्य विभाग, न्यायालय की कार्यवाही में महाधिवक्ता की सहायता के लिए महाधिवक्ता और अन्य विधि अधिकारियों की नियुक्ति के प्रस्ताव को मुख्य सचिव और मुख्यमंत्री के जरिये उप राज्यपाल की मंजूरी के लिए पेश करेगा। अभियोजन मंजूरी प्रदान करने या अपील दायर करने के संबंध में कोई भी प्रस्ताव विधि, न्याय और संसदीय कार्य विभाग की ओर से मुख्य सचिव के माध्यम से उप राज्यपाल के समक्ष रखा जाएगा।
- यह प्रावधान भी किया गया है कि कारागार, अभियोजन निदेशालय और फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला से संबंधित मामले मुख्य सचिव के माध्यम से गृह विभाग के प्रशासनिक सचिव की ओर से उप राज्यपाल के समक्ष पेश किए जाएंगे। प्रशासनिक सचिवों की तैनाती, तबादले तथा अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों के पदों से संबंधित मामलों के संबंध में प्रस्ताव मुख्य सचिव के माध्यम से सामान्य प्रशासन विभाग के प्रशासनिक सचिव द्वारा उप राज्यपाल को प्रस्तुत किए जाएंगे।
जम्मू-कश्मीर को जल्द पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने की संभावना नहीं : कांग्रेस
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा, मोदी सरकार की अधिसूचना का एकमात्र अर्थ यह निकाला जा सकता है कि निकट भविष्य में जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने की संभावना नहीं दिखती है। सभी राजनीतिक दलों में इस बात को लेकर आम सहमति रही है कि जम्मू-कश्मीर को फिर से पूर्ण राज्य बनना चाहिए। इसे केंद्रशासित प्रदेश नहीं बना रहना चाहिए।
चपरासी की नियुक्ति के लिए उप राज्यपाल से मांगनी पड़ेगी भीख : उमर
नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा, यह एक और संकेत है कि जम्मू-कश्मीर में चुनाव नजदीक हैं। यही कारण है कि जम्मू-कश्मीर के लिए पूर्ण, अविभाजित राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए समय सीमा निर्धारित करने की दृढ़ प्रतिबद्धता इन चुनावों के लिए एक शर्त है। जम्मू-कश्मीर के लोग शक्तिहीन, रबर स्टांप मुख्यमंत्री से बेहतर के हकदार हैं, जिन्हें अपने चपरासी की नियुक्ति के लिए भी उप राज्यपाल से भीख मांगनी पड़ेगी।