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Cancer Risk: शहर ही नहीं गांवों में भी बढ़ रहा है कैंसर का खतरा, रिपोर्ट में सामने आए डराने वाले आंकड़े
हेल्थ डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: अभिलाष श्रीवास्तव
Updated Sun, 07 Sep 2025 06:53 PM IST
सार
एक हालिया अध्ययन की रिपोर्ट में पता चला है कि कैंसर अब न सिर्फ शहरी आबादी में होने वाली बीमारी नहीं रही है बल्कि ग्रामीण भारत में भी तेजी से बढ़ रहा है।
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भारतीय आबादी में कैंसर का खतरा
- फोटो : Amarujala.com
Cancer In India: भारतीय आबादी में कैंसर का खतरा तेजी से बढ़ता हुआ देखा जा रहा है, सभी उम्र के लोग इसका शिकार हो रहे हैं। आंकड़ों से पता चलता है कि कैंसर अब किसी एक आयु वर्ग या भौगोलिक क्षेत्र की समस्या नहीं रह गया है। पहले इसे शहरों की बीमारी माना जाता था, लेकिन अब गांवों में भी ये तेजी से बढ़ता जा रहा है। पुरुष हों या महिलाएं, यहां तक कि बच्चे भी इससे अछूते नहीं हैं।
अध्ययनों से स्पष्ट होता है कि शहरी जीवनशैली, बढ़ता प्रदूषण, जंक फूड्स की आदत, धूम्रपान-तनाव जैसे कारक तो कैंसर बढ़ा ही रहे हैं, इसके अलावा ग्रामीण इलाकों में जागरूकता की कमी, समय पर बीमारी का निदान और इलाज न मिलना और गलत धारणाएं भी जोखिम बढ़ा रही हैं।
महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर, सर्वाइकल कैंसर जैसे खतरे बढ़ रहे हैं, जबकि पुरुषों में फेफड़े, मुंह और प्रोस्टेट से जुड़े कैंसर ज्यादा देखे जा रहे हैं। बच्चों में भी ल्यूकेमिया जैसे खतरनाक कैंसर विशेषज्ञों की चिंता बढ़ाते जा रहे हैं।
भारत में बढ़ते कैंसर के खतरे को लेकर सामने आई एक रिपोर्ट काफी डराने वाली है। इसमें कहा गया है कि गांवों में एक लाख की आबादी पर औसतन 93 पुरुष कैंसर का शिकार पाए जा रहे हैं। जिस तरह से हमारी दिनचर्या और खानपान में गड़बड़ी देखी जा रही है, ये कैंसर के खतरे को और भी बढ़ाने वाली हो सकती है।
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भारतीय आबादी में भी कैंसर का बढ़ता जोखिम
- फोटो : Adobe stock photos
भारत में बढ़ते कैंसर के मामले
भारत में, हर एक लाख लोगों में से लगभग 100 लोग कैंसर से पीड़ित पाए जा रहे हैं। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2022 में भारत में कैंसर के अनुमानित 14.6 लाख नए मामले सामने आए। जब इसके कारणों को समझने के लिए प्रयास शुरू किया गया तो पता चला कि इसके प्रमुख जोखिम कारकों में तंबाकू-धूम्रपान के सेवन की आदत शीर्ष पर थी जिससे मुंह-फेफड़े और ग्रासनली का कैंसर होता है।
अस्वास्थ्यकर आहार, शारीरिक निष्क्रियता और प्रदूषकों के संपर्क में आना भी कैंसर के खतरे को बढ़ाने वाला माना जाता रहा है।
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ग्रामीण भारत में भी कैंसर के मामले
- फोटो : Freepik.com
ग्रामीण भारत में भी तेजी से बढ़ता खतरा
जामा नेटवर्क ओपेन में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन की रिपोर्ट में पता चला है कि कैंसर अब न सिर्फ शहरी आबादी में होने वाली बीमारी नहीं रही है बल्कि ग्रामीण भारत में भी तेजी से बढ़ रहा है। आंकड़े बताते हैं कि 50 फीसदी से अधिक ग्रामीण इलाकों में प्रति एक लाख में औसत 93 पुरुष और 84 महिलाएं कैंसर से पीड़ित पाई गईं।
इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए विशेषज्ञों की टीम ने साल 2012 से 2019 के बीच दर्ज 7,08,223 नए कैंसर मामलों और 2,06,457 मौतों का विश्लेषण किया गया। इसमें पाया गया कि कुल मरीजों में लगभग 54 फीसदी महिलाएं थीं और रोगियों की औसत आयु 56 वर्ष थी।
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कई इलाके कैंसर की स्थिति गंभीर
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रिपोर्ट में क्या पता चला
शोध के मुताबिक, दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर राज्यों के कई इलाके कैंसर से सबसे गंभीर स्थिति में हैं। केरल के पथानामथिट्टा में ग्रामीण आबादी 89% है। यहां पुरुषों में औसत क्रूड इंसीडेंस रेट (सीआईआर) 260.9 और महिलाओं में 209.4 प्रति लाख दर्ज हुआ, जो अधिकांश शहरी क्षेत्रों से भी ज्यादा है। सीआईआर दरअसल किसी क्षेत्र में कैंसर के बोझ को समझने का सरल पैमाना है।
अलप्पुझा, कोल्लम और तिरुवनंतपुरम जैसे जिले भी उच्च दर पर हैं। मेघालय के ईस्ट खासी हिल्स में पुरुषों का सीआईआर 139.5 और महिलाओं का 84.6 है। असम का काछार जिला (81.8% आबादी) पुरुषों में सीआईआर 106.6 और महिलाओं में 96.5 दर्ज करता है। उत्तर भारत में वाराणसी (62.5% आबादी) में पुरुषों का सीआईआर 98.4 और महिलाओं का 89.3 पाया गया।
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कैंसर का खतरा
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कैंसर बढ़ाने वाले कारकों को लेकर अलर्ट
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और ग्लोबोकैन के 2022 के आंकड़े बताते हैं कि भारत में हर साल महिलाओं में कैंसर के नए मामलों में ब्रेस्ट कैंसर के केस सबसे ज्यादा रिपोर्ट किए जाते हैं। इसके अलावा सर्वाइकल कैंसर का खतरा भी तेजी से बढ़ रहा है। अकेले साल 2022 में ब्रेस्ट कैंसर के लगभग 1.92 लाख नए केस और सर्वाइकल कैंसर के करीब 1.28 लाख नए केस दर्ज किए गए।
इसी तरह एक अन्य हालिया अध्ययन की रिपोर्ट बताती है कि रोज इस्तेमाल होने वाले शैंपू-लोशन में भी कई हानिकारक तत्वों की मौजूदगी हो सकती है जिससे कैंसर का खतरा हो सकता है।
अस्वीकरण: अमर उजाला की हेल्थ एवं फिटनेस कैटेगरी में प्रकाशित सभी लेख डॉक्टर, विशेषज्ञों व अकादमिक संस्थानों से बातचीत के आधार पर तैयार किए जाते हैं। लेख में उल्लेखित तथ्यों व सूचनाओं को अमर उजाला के पेशेवर पत्रकारों द्वारा जांचा व परखा गया है। इस लेख को तैयार करते समय सभी तरह के निर्देशों का पालन किया गया है। संबंधित लेख पाठक की जानकारी व जागरूकता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। अमर उजाला लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।
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