Parenting Tips: उदिता और ऋषभ ने अपने बेटे तन्यम के पालन-पोषण में कोई कमी नहीं छोड़ी। हालांकि 14 साल का तन्मय काफी जिद्दी है और जिद पूरी न होने पर गुस्सा करता, बहस करता या फिर अपने माता पिता से बात करना छोड़ देता। उसके इस बगावती व्यवहार से परेशान ऋषभ अक्सर उदिता को उसकी परवरिश के लिए दोषी ठहराता। ऋषण कहता कि, देखा, ये तुम्हारी परवरिश का नतीजा है। तुम्हारा बेटा बिगड़ता जा रहा है, तुमने ही उसे ऐसा बना दिया है कि वह अपने आगे किसी की नहीं सुनता।
ये कोई पहला मामला नहीं है। कई घरों में ये आम संवाद है, जहां बच्चे के बर्ताव पर माता या पिता एक दूसरे को दोषी ठहराते हैं। वहीं बच्चे के पालन पोषण की जिम्मेदारी में भी अक्सर किसी एक पर अधिक भार दिया जाता है। जबकि बच्चे के सर्वांगीण विकास के लिए मां और पिता दोनों की अलग-अलग भूमिकाएं बेहद अहम होती हैं।
जहां मां का स्नेह, देखभाल और भावनात्मक जुड़ाव बच्चे की जड़ों को मजबूत करता है, वहीं पिता का अनुशासन, मार्गदर्शन और सामाजिक समझ उसकी शाखाओं को आसमान की ओर बढ़ने की शक्ति देते हैं। यही कारण है कि अच्छे अभिभावक बनने के लिए मां और पिता की जिम्मेदारियों को अलग-अलग समझना और निभाना जरूरी है। पालन-पोषण तभी सफल होता है जब मां और पिता अपनी-अपनी जिम्मेदारियों को समझकर साथ निभाते हैं। यही संतुलन बच्चे को जीवन की हर चुनौती का सामना करने योग्य बनाता है।
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मां की भूमिका
मां स्नेह और सुरक्षा की छाया देती हैं। हर मां बच्चे के लिए पहली शिक्षक होती है। बच्चे में भावनात्मक मजबूती और आत्मविश्वास की नींव मां ही रखती है। बच्चे की ज़रूरतों और उसकी देखभाल में मां की भूमिका सबसे बड़ी होती है।
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पिता की भूमिका
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पिता की भूमिका
पिता बच्चे के मार्गदर्शक और संरक्षक होते हैं। एक पिता ही अपने बच्चों को अनुशासन, नियम और आत्मनिर्भरता सिखाते हैं। समाज में कैसे व्यवहार करना है, इसका पहला अनुभव पिता से मिलता है। पिता बच्चों को सपनों को पाने की प्रेरणा और साहस देते हैं।
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क्यों जरूरी है दोनों का संतुलन?
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क्यों जरूरी है दोनों का संतुलन?
बच्चे की परवरिश में मां और पिता दोनों की अलग-अलग भूमिका और जिम्मेदारी बेहद जरूरी है और उनकी भूमिकाओं के बीच कुछ संतुलन भी आवश्यक है। मां का स्नेह और पिता का अनुशासन मिल जाएं तो बच्चा एक संतुलित व्यक्तित्व का बनता है। केवल मां या केवल पिता के सहारे बच्चा जीवन की आधी सीख ही ले पाता है। संयुक्त भूमिकाओं से बच्चा भावनात्मक, सामाजिक और मानसिक रूप से परिपक्व बनता है।
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जिम्मेदारियों का बंटवारा
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जिम्मेदारियों का बंटवारा
जैसे उनकी भूमिकाएं अलग लेकिन आपस में संतुलित हैं, वैसे ही माता और पिता की जिम्मेदारियां को बंटवारा भी संतुलन में रहना चाहिए। एक मां की जिम्मेदारी होती है, बच्चे की देखभाल करना, उसके नैतिक शिक्षा देना, धैर्य और प्यार का वातावरण बच्चे के लिए बनाना। वहीं हर पिता का कर्तव्य व जिम्मेदारी बनती है बच्चे को सुरक्षा देना। उसमें साहस और निर्णय लेने की क्षमता को विकसित करना पिता का कार्य है। साथ ही बच्चे के भविष्य की दिशा भी पिता बेहतर तरीके से तय करने में मदद कर सकता है।