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Grandma Hobbies: टाइम-पास नहीं थे दादी के शौक! रिसर्च बता रही है क्यों ग्रैंडमां हाॅबीज है बेस्ट थेरेपी

लाइफस्टाइल डेस्क, अमर उजाला Published by: शिवानी अवस्थी Updated Tue, 30 Dec 2025 11:58 AM IST
सार

Grandma hobbies: अब यह समझ बढ़ रही है कि कढ़ाई करने, स्वेटर बुनने, क्रोशिया से सजावटी वस्तुएं बनाने, बेकिंग या बागवानी करने जैसे शौक मानसिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हो सकते हैं। शायद यही वजह है कि नई पीढ़ी इसे ‘ग्रैंडमा हॉबीज’ के रूप में अपना रही है।

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दादी मां स्वेटर बुनते हुए - फोटो : Adobe

अंशु सिंह


सर्दियों की दोपहर में धूप सेंकते हुए, सहेलियों से गप्पे लड़ाते हुए और हाथ से कुछ बुनते हुए आपने बड़े-बुजुर्गों को देखा होगा। कई पीढ़ियों से घरेलू महिलाएं कढ़ाई-बुनाई जैसी गतिविधियों में अपना समय और मन लगाती रही हैं। हालांकि यह सिर्फ काम नहीं, बल्कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही कला और सौंदर्य दृष्टि की अनोखी मिसाल है। लेकिन फिर भी कुछ लोग इसे ‘टाइम-पास’ समझते हैं, जबकि यह शांत रहने का एक बेहतरीन तरीका है, जिसमें धैर्य, रचनात्मकता और संतोष की मिठास है।

पुराने स्वेटरों को नए सिरे से बुनने की यह धुन बुजुर्ग महिलाओं में जीवन की रचना करने का आनंद पैदा करती है। आज यही शौक नई पीढ़ी को भी खूब लुभा रहे हैं। इसमें सिलाई, बुनाई, कढ़ाई से लेकर बेकिंग तक कई गतिविधियां शामिल हैं, जो ‘ग्रैंडमा हॉबीज’ या ‘ग्रैंडमाकोर’ जैसे नामों से धीरे-धीरे लोकप्रिय हो रही हैं। इसे धीमी गति का आरामदायक शौक कहा जा सकता है।

साल 2020 में महामारी के दौरान इस हॉबी का प्रचलन बढ़ा। घर में बंद रहकर लोग अपने समय का सदुपयोग करने लगे और नई कला सीखने का प्रयास किया। अपनी बनाई चीजें सोशल मीडिया पर साझा की और धीरे-धीरे ‘ग्रैंडमाकोर’ ट्रेंड बन गया। लोगों की दिलचस्पी इतनी बढ़ी कि जेन-जेड, मिलेनियल्स यहां तक कि जेन-अल्फा भी इस शौक को अपनाने लगी।

दादी-नानी के ये शौक अब युवाओं के बीच खासे लोकप्रिय हैं। लोकप्रियता इस कदर है कि अब पबों में क्रोशिया, बुनाई और आर्ट वर्कशॉप के लिए अलग से स्थान बनाए जा रहे हैं। विदेशों में तो मूवी थिएटर में बुनाई और क्रोशिया नाइट्स होती हैं, जहां लोग फिल्म देखते हुए अपनी पसंदीदा हॉबी पूरी कर सकते हैं। यह केवल पुराने समय की यादें नहीं, बल्कि रचनात्मकता और आराम का एक नया आयाम बनकर उभर रहा है।

 

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नानी-दादी के शौक जेन जी को क्यों लुभा रहे हैं? - फोटो : Adobe stock

जेन-जी को सबसे अधिक लुभाया

आज अगर जेन-जी का स्क्रीन टाइम कुछ कम हुआ है तो उसके पीछे भी एक अहम वजह ‘ग्रैंडमा हॉबीज’ ही हैं। युवा पीढ़ी का खिंचाव उन स्किल्स को सीखने की ओर बढ़ा है, जो उनकी दादी-नानी अपने खाली समय में किया करती थीं, यानी यह पीढ़ी अब हर क्लिक पर डूम स्क्रॉलिंग, क्लब जाने या बार हॉपिंग करने के बजाय जर्नलिंग, बागवानी, कढ़ाई-बुनाई, क्रोशिया जैसे आरामदायक एवं रेट्रो एक्टिविटीज में खुशी महसूस कर रही है। इसकी एक मिसाल अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की बेटी साशा ओबामा भी हैं।

हाल ही में वह एक पार्क में धूप सेंकते और क्रोशिया से कुछ बनाती नजर आईं। हालांकि साशा अकेली नहीं हैं, जिन्हें कथित रूप से ग्रैंडमा हॉबीज ने लुभाया है। इसी साल 18 से 28 साल के 1600 अमेरिकियों पर किए गए एक सर्वे में पाया गया कि अधिकांश युवाओं की कम से कम एक ग्रैंडमा हॉबी होती है। इसे वे ध्यान बढ़ाने, चिंता कम करने और असली दुनिया में अपनी जगह बनाने के तरीके के तौर पर अपनाते हैं। इनमें जर्नलिंग, बागवानी, झपकी लेना, क्रोशिया करना, बोर्ड गेम खेलना, पुरानी फिल्में देखना, बुनाई करना, जिगसॉ पजल बनाना, कढ़ाई करना और भी बहुत कुछ शामिल है। सर्वे में सबसे लोकप्रिय एक्टिविटी में प्रिंटेड किताबें पढ़ना शामिल था और इसके बाद बेकिंग का नंबर था।

 

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नानी-दादी के शौक के फायदे - फोटो : Freepik

तनाव कहीं गायब सा है

शौक कैसे भी हों, वे खुशी ही देते हैं। ‘ग्रैंडमा हॉबीज’ की भी अपनी विशेषताएं हैं, जैसा कि ब्रिटिश जर्नल ऑफ ऑक्यूपेशनल थेरेपी में प्रकाशित एक रिपोर्ट कहती है कि जो स्त्रियां बुनाई करती हैं, वे अपेक्षाकृत शांत और ज्यादा खुश रहती हैं। ये गतिविधियां रचनात्मकता के साथ सामाजिक जुड़वा बढ़ाने और धैर्य रखने के साथ माइंडफुलनेस यानी वर्तमान में रहने की क्षमता विकसित करती हैं। इसलिए इन्हें सिर्फ टाइम पास कहना गलत होगा, क्योंकि यह सुकून देने वाली और मानसिक रूप से शांत होने वाली गतिविधियां हैं।

मुश्किल या स्ट्रेस वाले दिन के बाद मूड सुधारना हो या ओवरथिंकिंग की समस्या से निजात पानी हो तो ग्रैंडमा हॉबीज काफी कारगर साबित हो सकती हैं। इससे ऊर्जा का बेहतर उपयोग किया जा सकता है। ये एंग्जायटी, डिप्रेशन और बर्नआउट से लड़ने की हिम्मत देती हैं।

दिल्ली की अभिलाषा को भी तनाव एवं व्यवहार में आए चिड़चिड़ेपन से लड़ने में बेकिंग क्लास ने काफी मदद की। वह बताती हैं, “बेकिंग करने से मेरे अंदर की बेचैनी धीरे-धीरे कम होती गई। मैं भावनात्मक रूप से खुद को अधिक स्थिर महसूस करने लगी। लजीज केक बनाने की खुशी और उससे मिलने वाली प्रशंसा से खोया आत्मविश्वास लौटने लगा और मैं खुश रहने लगी। फिर मैंने दादी से क्रॉस-स्टिचिंग सीखी। पता ही नहीं चला कि कब इन नए शौक ने मेरे तनाव को पीछे छोड़ दिया।”

इंटीरियर डिजाइनर प्राजक्ता भी इन दिनों दादी की हॉबी का मजा ले रही हैं। उनका कहना है, “स्केचिंग और किताबें पढ़ने से मेरा स्ट्रेस लेवल कम रहता है और मैं रचनात्मक ढंग से सोच पाती हूं। रचनात्मक काम में डूबने से पुरानी यानी बीती बातों के बारे में सोचने या भविष्य की चिंता करने के बजाय मैं पूरी तरह से वर्तमान क्षण में जी पाती हूं।”

 

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ग्रैंड मां हाॅबीज का असर - फोटो : Adobe stock

आत्मविश्वास सबसे करीब है

फ्लोरिडा की क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट एवं साउंड हीलर डॉ. पैट्रिशिया एस. डिक्सन के अनुसार, जब लोग किसी हॉबी में डूब जाते हैं तो उन्हें रोजाना के दबाव एवं तनाव से बचने का मौका मिलता है। इससे वे शांत रहकर खुद को रिचार्ज करते हैं। जैसे-जैसे वे अपनी स्किल्स को बेहतर बनाते हैं, उनका आत्मविश्वास बढ़ता जाता है।

जरा सोचिए, आपका बुना स्वेटर जब बच्चा पहनता है तो कितना गर्व होता है। अपने किचन गार्डन में जब आप किसी सब्जी या फल का पौधा लगाती हैं, उसकी नियमित देखभाल करती हैं और एक दिन वह फल देने लगता है, तो चेहरे पर कितनी जल्दी मुस्कान छा जाती है। इसीलिए तो आरामदायक शौक मानी जाने वाली ग्रैंडमा हॉबीज को कुछ लोग अच्छी भावनाओं की फैक्ट्री कहते हैं।

मनोचिकित्सक गगनदीप कौर कहती हैं, “किसी भी कार्य में कामयाबी का अहसास होना, स्वास्थ्य को ठीक रखने का बेहतरीन तरीका है। जब कोई अपनी दिनचर्या में इस प्रकार के शौक को शामिल करता है तो उसे एक लक्ष्य मिलता है और उस लक्ष्य को पूरा करने से खुशियों का आगमन होता है, जैसे कोई भी नया काम सीखने और खुद को चैलेंज करने के बाद मिलने वाली कामयाबी से सेल्फ एस्टीम बढ़ती है तथा सकारात्मक भावनाएं उत्पन्न होती हैं।


शौक सिर्फ अच्छी भावनाओं को ही नहीं बनाए रखते, बल्कि बुरी भावनाओं को भी दूर कर देते हैं। इसके अलावा कोई शौक जब चुनौती देने लगता है तो उससे सोचने-समझने, तर्क करने की क्षमता और प्रॉब्लम-सॉल्विंग स्किल्स को बढ़ावा मिलता है।” कई शोध भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि जिन गतिविधियों में शामिल होने से मजा आता है और मानसिक लचीलापन बनता है, उनसे चुनौतियों का सामना करने तथा तनाव को नियंत्रित करने की क्षमता बढ़ती है।

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नानी दादी के शौक पर क्या कहता है रिसर्च - फोटो : Adobe Stock

सामूहिकता को प्रोत्साहन

जानकार कहते हैं कि बुनाई, कढ़ाई, सिलाई, बेकिंग, बर्ड वाचिंग जैसे शौक की एक और खासियत है कि इन्हें समूह, स्कूल क्लबों या ऑनलाइन कम्युनिटी में भी किया जा सकता है। इससे अपनापन और सामाजिक जुड़ाव बढ़ता है, अकेलापन कम होता है।

साल 2022 में साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, पक्षियों को देखने और सुनने, क्ले आर्ट करने से डिप्रेशन तथा बेचैनी दूर होती है। प्रिंसटन विश्वविद्यालय का एक अध्ययन बताता है कि बागवानी करने से वही खुशी मिलती है, जो बाइक चलाने, घूमने या बाहर खाना खाने से प्राप्त होती है।

पेशे से अधिवक्ता कोमल कहती हैं, “आज आधुनिक जीवन की भाग-दौड़ से लोगों का मन ऊबने लगा है। सबकी इच्छा होती है कि जीवन में थोड़ा धीमापन एवं ठहराव आए। ग्रैंडमा हॉबीज की खास बात यही है कि ये धीमी और वर्तमान पल से जुड़ी हैं। ये किसी थेरेपी की तरह होती हैं, जो सिर्फ कुछ बनाना नहीं, बल्कि उस प्रक्रिया का आनंद लेना सिखाती हैं, चाहे वह बगीचे की देखभाल करना हो या खुद से जैम, अचार बनाना या फिर क्राफ्टिंग करना। हमारी इमोशनल वेल-बीइंग के लिए ये हॉबीज बेहद आवश्यक हैं। इससे एक प्रकार की संतुष्टि आती है।”

दिल्ली में रहने वाली प्रगति चसवाल का कहना है, “आजकल बहुत से लोग दादी-नानी के शौक अपनाते हैं, लेकिन हम इसे बड़ा शौक मानते हैं, क्योंकि ये फोकस बढ़ाने और सोचने-समझने की क्षमता को बेहतर बनाते हैं, आंखों और हाथों के तालमेल को मजबूत करते हैं और सब्र एवं शांति लाते हैं। ये कई तरह से रचनात्मक और टिकाऊ भी हैं। वास्तव में, जब हम अपनी हॉबीज को समय देते हैं तो असल मायनों में खुद को समय दे रहे होते हैं।”

 

सुकून का भी ये मामला है

 

क्लीनिकल साइक्लोजिस्ट डॉ. आरुषि दीवान कहती हैंडिजिटल दुनिया में जहां हर चीज स्क्रीन और तुरंत मिलने वाले नतीजों पर निर्भर है, ऐसे में धीमे और हाथों से किए जाने वाले काम बच्चों और बड़ों, दोनों को सुकून देते हैं। ये शौक पुरानी पीढ़ी दादी एवं नानी से जुड़ने के साथ ही परिवार की परंपराओं को समझने का मौका भी देते हैं। सोशल मीडिया पर इन गतिविधियों के सुंदर और आकर्षक वीडियोज बच्चों में इनके प्रति रुचि बढ़ा रहे हैं, साथ ही खुद से कुछ नया बनाने और गढ़ने की संस्कृति भी इस ट्रेंड को आगे बढ़ा रही है। इसके अलावा इन कामों की नियमितता और अनुशासन बच्चों को नियंत्रण तथा स्थिरता का अहसास कराती है, जो आज पढ़ाई के दबाव वाले माहौल में जरूरी है। सूत, कपड़े और औजारों को छूने, महसूस करने से बच्चों को सेंसरी बैलेंस मिलता है। कुल मिलाकर, ये शौक रचनात्मकता, तनाव से राहत और परंपरा से जुड़ने का एक अच्छा माध्यम बन गए हैं। ये इंसान की मानसिक मजबूती, भावनात्मक स्थिरता और लचीलेपन को बढ़ा रहे हैं।

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