अंशु सिंह
सर्दियों की दोपहर में धूप सेंकते हुए, सहेलियों से गप्पे लड़ाते हुए और हाथ से कुछ बुनते हुए आपने बड़े-बुजुर्गों को देखा होगा। कई पीढ़ियों से घरेलू महिलाएं कढ़ाई-बुनाई जैसी गतिविधियों में अपना समय और मन लगाती रही हैं। हालांकि यह सिर्फ काम नहीं, बल्कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही कला और सौंदर्य दृष्टि की अनोखी मिसाल है। लेकिन फिर भी कुछ लोग इसे ‘टाइम-पास’ समझते हैं, जबकि यह शांत रहने का एक बेहतरीन तरीका है, जिसमें धैर्य, रचनात्मकता और संतोष की मिठास है।
पुराने स्वेटरों को नए सिरे से बुनने की यह धुन बुजुर्ग महिलाओं में जीवन की रचना करने का आनंद पैदा करती है। आज यही शौक नई पीढ़ी को भी खूब लुभा रहे हैं। इसमें सिलाई, बुनाई, कढ़ाई से लेकर बेकिंग तक कई गतिविधियां शामिल हैं, जो ‘ग्रैंडमा हॉबीज’ या ‘ग्रैंडमाकोर’ जैसे नामों से धीरे-धीरे लोकप्रिय हो रही हैं। इसे धीमी गति का आरामदायक शौक कहा जा सकता है।
साल 2020 में महामारी के दौरान इस हॉबी का प्रचलन बढ़ा। घर में बंद रहकर लोग अपने समय का सदुपयोग करने लगे और नई कला सीखने का प्रयास किया। अपनी बनाई चीजें सोशल मीडिया पर साझा की और धीरे-धीरे ‘ग्रैंडमाकोर’ ट्रेंड बन गया। लोगों की दिलचस्पी इतनी बढ़ी कि जेन-जेड, मिलेनियल्स यहां तक कि जेन-अल्फा भी इस शौक को अपनाने लगी।
दादी-नानी के ये शौक अब युवाओं के बीच खासे लोकप्रिय हैं। लोकप्रियता इस कदर है कि अब पबों में क्रोशिया, बुनाई और आर्ट वर्कशॉप के लिए अलग से स्थान बनाए जा रहे हैं। विदेशों में तो मूवी थिएटर में बुनाई और क्रोशिया नाइट्स होती हैं, जहां लोग फिल्म देखते हुए अपनी पसंदीदा हॉबी पूरी कर सकते हैं। यह केवल पुराने समय की यादें नहीं, बल्कि रचनात्मकता और आराम का एक नया आयाम बनकर उभर रहा है।