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Bangladesh Shakti Peeth: बांग्लादेश में स्थित 7 शक्तिपीठों का महत्व, जहां आज भी जीवित है शाक्त परंपरा

धर्म डेस्क, अमर उजाला Published by: ज्योति मेहरा Updated Wed, 24 Dec 2025 01:28 PM IST
सार

Bangladesh Shakti Peeth: देवी सती के अंगों के पतन से जुड़े कई शक्तिपीठ आज भी बांग्लादेश की भूमि पर स्थित हैं, जो केवल धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि बंगाल की सांस्कृतिक स्मृति के प्रतीक हैं। आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं...

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बांग्लादेश के 7 शक्तिपीठ - फोटो : Amar Ujala

Bangladesh 7 Shakti Peeth: बांग्लादेश इन दिनों गंभीर राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है। लोकतांत्रिक संस्थाओं की कमजोरी और लगातार हो रही हिंसक घटनाओं ने सामान्य जनजीवन को हिला के रख दिया है। इस माहौल में सिर्फ सत्ता व्यवस्था के साथ देश की सांस्कृतिक विरासत भी खतरे में दिखाई दे रही है। खास तौर पर सनातन परंपरा, जो कभी बंगाली अस्मिता का अभिन्न हिस्सा रही है, आज वह अस्तित्व की लड़ाई लड़ती नजर आती है। मंदिरों पर हमले, मूर्तियों की तोड़फोड़ और धार्मिक स्थलों का अपमान यह संकेत देती है कि आस्था से जुड़ी धरोहरें अब सबसे असुरक्षित हैं।



बांग्लादेश, जिसे कभी अविभाजित बंगाल कहा जाता था, वह शाक्त परंपरा का एक प्रमुख केंद्र रहा है। देवी उपासना, तंत्र साधना और शक्तिपीठों की परंपरा यहां सदियों तक फलती-फूलती आई हैं। देवी सती के अंगों के पतन से जुड़े कई शक्तिपीठ आज भी इस भूमि पर स्थित हैं, जो केवल धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि बंगाल की सांस्कृतिक स्मृति के प्रतीक हैं। दुर्भाग्य से आज ये पवित्र स्थल भी असुरक्षा की छाया में आ गए हैं।

शास्त्रों के अनुसार, भगवान शिव के तांडव के दौरान देवी सती के अंग जहां-जहां गिरे, वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। दुर्गासप्तशती, तंत्र चूड़ामणि और शक्ति पीठ स्तोत्र जैसे ग्रंथों में इन पीठों का उल्लेख किया गया है। बांग्लादेश में स्थित प्रमुख शक्तिपीठों में जसोरेश्वरी, सुगंधा, भवानी (चट्टल), जयंती, महालक्ष्मी, स्रवानी और अपर्णा शक्तिपीठ प्रमुख माने जाते हैं। आइए इसके बारे में अधिक जानते हैं...

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यशोरेश्वरी शक्तिपीठ - फोटो : instagram/narendramodi

जसोरेश्वरी शक्तिपीठ 
जसोरेश्वरी शक्तिपीठ बांग्लादेश के सतखिरा जिले में स्थित है। इसे ज्येष्ठा काली मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि यहां देवी सती की हथेलियां गिरी थीं। यह 51 शक्तिपीठों में से एक है और प्राचीन काल से काली उपासना का प्रमुख केंद्र रहा है। 2021 में इस मंदिर को अंतरराष्ट्रीय पहचान तब मिली, जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां दर्शन कर देवी को स्वर्ण मुकुट अर्पित किया। हालांकि 2024 में फैली हिंसा के दौरान उस मुकुट की चोरी ने यहां की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए।

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सुगंधा शक्तिपीठ - फोटो : shaktipeethdarshan.com

सुगंधा शक्तिपीठ 
सुगंधा शक्तिपीठ शिकारपुर क्षेत्र में सुगंधा नदी के तट पर स्थित है। यहां देवी को सुनंदा या उग्रतारा के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि देवी सती की नासिका यहां गिरी थी और भैरव त्र्यंबक इस पीठ के रक्षक हैं। यह शक्तिपीठ कई बार अतिक्रमण और तोड़फोड़ की चपेट में आया, लेकिन हर बार श्रद्धालुओं ने इसे फिर से जीवित किया।

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चट्टल मां भवानी शक्तिपीठ - फोटो : shaktipeethdarshan.com

चट्टल मां भवानी शक्तिपीठ
चट्टल मां भवानी शक्तिपीठ, जिसे भवानी शक्तिपीठ भी कहा जाता है, चटगांव जिले के सीताकुंड क्षेत्र में चंद्रनाथ पर्वत पर स्थित है। यहां देवी सती की ठुड्डी के गिरने की मान्यता है। पर्वत शिखर पर स्थित यह स्थल साधना और तप का विशेष केंद्र रहा है। कठिन भौगोलिक स्थिति के बावजूद आज भी बड़ी संख्या में भक्त यहां पहुंचते हैं।

महालक्ष्मी शक्तिपीठ 
महालक्ष्मी शक्तिपीठ सिलहट के दक्षिण सुरमा क्षेत्र में स्थित है। यहां देवी की गर्दन के गिरने की मान्यता है और भैरव संभरानंद की पूजा होती है। यह पीठ धन, समृद्धि और सौभाग्य से जुड़ी आस्थाओं का केंद्र है। आज भी स्थानीय समुदाय इसके संरक्षण के लिए प्रयासरत है।
 

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जयंती शक्तिपीठ - फोटो : shaktipeethdarshan.com

जयंती शक्तिपीठ 
जयंती शक्तिपीठ सिलहट जिले के कनाईघाट उपजिले में स्थित है। मान्यता है कि यहां देवी सती की बाईं जांघ गिरी थी। शांत प्राकृतिक वातावरण में स्थित यह मंदिर लगभग छह एकड़ भूमि में फैला हुआ है। इसे मेघालय के नर्तियांग दुर्गा मंदिर से भी जोड़ा जाता है, जिससे इसकी धार्मिक महत्ता और बढ़ जाती है।

स्रवानी शक्तिपीठ 
स्रवानी शक्तिपीठ चटगांव जिले के कुमीरा क्षेत्र में स्थित एक गुप्त शक्तिपीठ माना जाता है। यहां देवी सती की रीढ़ की हड्डी गिरने की मान्यता है। देवी को यहां सर्वाणी या श्रावणी के रूप में पूजा जाता है। तंत्र साधना से जुड़े साधकों के लिए यह स्थान विशेष महत्व रखता है।

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