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Pradosh Vrat 2025: फाल्गुन माह के पहले प्रदोष व्रत पर करें इस कथा का पाठ, इस विधि से भगवान शिव को करें प्रसन्न
धर्म डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: ज्योति मेहरा
Updated Tue, 25 Feb 2025 06:59 AM IST
सार
प्रदोष व्रत प्रत्येक माह में दो बार आता है और इस दिन भक्तजन प्रातः काल से लेकर संध्या तक उपवास रखते हैं। शिव परिवार की उपासना के पश्चात, विधिवत पूजा कर व्रत का पारण किया जाता है।
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Bhaum Pradosh Vrat 2025
- फोटो : Amar Ujala
Bhaum Pradosh Vrat 2025: हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत को अत्यंत शुभ माना जाता है। यह उपवास भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना के लिए रखा जाता है। प्रदोष व्रत प्रत्येक माह में दो बार आता है और इस दिन भक्तजन प्रातः काल से लेकर संध्या तक उपवास रखते हैं और शिव की उपासना के बाद विधिवत पूजा कर व्रत का पारण किया जाता है। फाल्गुन मास का पहला प्रदोष व्रत महाशिवरात्रि से एक दिन पूर्व रखा जाएगा, जिसे भौम प्रदोष व्रत कहा जाता है। इस वर्ष यह व्रत 25 फरवरी 2025 को मनाया जाएगा। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में आने वाली बाधाओं का निवारण होता है।
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Som Pradosh Vrat 2025
- फोटो : अमर उजाला
भौम प्रदोष व्रत कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन समय में एक पुजारी हुआ करता था। उनके निधन के बाद उनकी पत्नी अपने छोटे बेटे के साथ जीवन यापन के लिए भीख मांगने लगी। एक दिन जब वह भीख मांगकर लौटी, तो उसकी भेंट विदर्भ देश के एक राजकुमार से हुई, जो अपने पिता की मृत्यु के बाद भटक रहा था। उसकी दयनीय स्थिति देखकर पुजारी की पत्नी ने उसे अपने साथ रहने की अनुमति दी और अपने पुत्र की तरह उसका पालन-पोषण करने लगी।
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन समय में एक पुजारी हुआ करता था। उनके निधन के बाद उनकी पत्नी अपने छोटे बेटे के साथ जीवन यापन के लिए भीख मांगने लगी। एक दिन जब वह भीख मांगकर लौटी, तो उसकी भेंट विदर्भ देश के एक राजकुमार से हुई, जो अपने पिता की मृत्यु के बाद भटक रहा था। उसकी दयनीय स्थिति देखकर पुजारी की पत्नी ने उसे अपने साथ रहने की अनुमति दी और अपने पुत्र की तरह उसका पालन-पोषण करने लगी।
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Pradosh Vrat
- फोटो : अमर उजाला
कुछ समय बाद पुजारी की पत्नी अपने दोनों पुत्रों के साथ शांडिल्य ऋषि के आश्रम गईं, जहां उन्होंने भगवान शिव के प्रदोष व्रत की कथा सुनी और व्रत का पालन करने लगीं। एक दिन दोनों पुत्र वन में घूमने गए। पुजारी का बेटा घर लौट आया, लेकिन राजकुमार वन में ही रुक गया। वहीं उसकी भेंट गंधर्व कन्या अंशुमती से हुई। वह घर देर से लौटा, और अगले दिन पुनः उसी स्थान पर पहुंचा, जहां अंशुमती अपने माता-पिता के साथ थी। कन्या के माता-पिता ने राजकुमार को देखकर उसे पहचान लिया और उनकी योग्यता को देखते हुए अपनी पुत्री का विवाह उससे करने का प्रस्ताव रखा। शिवजी की कृपा से राजकुमार ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया, और दोनों का विवाह संपन्न हुआ।
Pradosh Vrat
- फोटो : अमर उजाला
विवाह के बाद राजकुमार ने एक शक्तिशाली गंधर्व की सहायता से विदर्भ पर आक्रमण किया और विजयी होकर राज्य का शासक बन गया। राजा बनने के बाद उसने पुजारी की पत्नी और उसके पुत्र को अपने महल में बुलाया और उनका आदर-सत्कार किया।कुछ समय बाद अंशुमती ने राजकुमार से उसके जीवन की कहानी पूछी। तब राजकुमार ने अपने कठिन समय और प्रदोष व्रत की महिमा के बारे में बताया। यह मान्यता है कि प्रदोष व्रत करने से समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं और व्यक्ति को सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
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Pradosh Vrat
- फोटो : अमर उजाला
प्रदोष व्रत में करें इन नियमों का पालन
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेख लोक मान्यताओं पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है।
- व्रत के दिन प्रातः काल स्नान करके सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करें और व्रत का संकल्प लें।
- पूजा स्थल को स्वच्छ कर भगवान शिव का पंचामृत से अभिषेक करें।
- शिव परिवार की पूजा कर भगवान शिव को बेल पत्र, पुष्प, धूप-दीप आदि अर्पित करें।
- व्रत कथा का पाठ करें और शिव आरती व शिव चालीसा का पाठ अवश्य करें।
- पूजा के बाद ही व्रत का पारण करें।
- इस प्रकार, प्रदोष व्रत के शुभ अवसर पर विधि पूर्वक पूजा-अर्चना करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और भक्तों को भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।
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डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेख लोक मान्यताओं पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है।

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