Mahashivratri 2025: भोलेनाथ को प्रसन्न और उनकी विशेष कृपा पाने के लिए महाशिवरात्रि का दिन सबसे खास है। मान्यता है कि इस तिथि पर महादेव की पूजा-अर्चना करने से साधक के सभी दुखों का अंत होता है और उसके मन से डर भय भी समाप्त होते हैं। धार्मिक ग्रंथों में महाशिवरात्रि को शिव और पार्वती के मिलन का दिन कहा जाता है, इसलिए यह पर्व सुहागिन महिलाओं के लिए अधिक महत्वपूर्ण है। कहते हैं महाशिवरात्रि के पर्व पर भोलेनाथ और देवी पार्वती की उपासना से वैवाहिक जीवन सुखमय बनता है और रिश्तों में भी मधुरता बनी रहती है। इस दौरान योग्य वर प्राप्ति के लिए कन्याएं भी निर्जला व्रत रखती हैं। इस साल 26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि है। इस तिथि पर श्रवण नक्षत्र और परिध योग बन रहा है। इस योग में भोलेनाथ को बेलपत्र और जल चढ़ाने से वह प्रसन्न होते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि महादेव को बेलपत्र और जल क्यों चढ़ाया जाता है? अगर नहीं तो आइए जानते हैं।
Mahashivratri 2025: आखिर क्यों चढ़ाया जाता है महादेव को बेलपत्र और जल ?
Mahashivratri 2025: हिंदू धर्म में भोलेनाथ को प्रसन्न और उनकी विशेष कृपा के लिए महाशिवरात्रि का दिन सबसे खास माना जाता है।
- ब्रह्म मुहूर्त- 26 फरवरी को प्रात: काल में 05:17 से लेकर 06:05 मिनट तक
- रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - शाम 06:29 से रात 09 बजकर 34 मिनट तक
- रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - रात 09:34 से 27 फरवरी सुबह 12 बजकर 39 मिनट तक
- रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - 27 फरवरी को रात 12:39 से सुबह 03 बजकर 45 मिनट तक
- रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 27 फरवरी को सुबह 03:45 से 06 बजकर 50 मिनट तक
मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम् ।
तदिदं कल्पितं देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
श्रीभगवते साम्बशिवाय नमः । स्नानीयं जलं समर्पयामि।
इसलिए चढ़ाया जाता है भोलेनाथ को जल और बेलपत्र
महाशिवरात्रि की पूजा में हमेशा भोलेनाथ को बेलपत्र अर्पित किया जाता है। कहते हैं कि समुद्र मंथन के समय कालकूट नाम का विष निकला था। इस विष के प्रभाव से सभी देवता और जीव-जंतु व्याकुल होने लगे थे। इसके बाद पूरी सृष्टि की सुरक्षा के लिए सभी देवताओं और असुरों ने महाकाल की उपासना की और उनसे सुरक्षा की प्रार्थना की। मान्यता है कि देवताओं और असुरों की प्रार्थना के बाद भगवान शिव ने इस विष को अपनी हथेली पर रखकर ग्रहण कर किया था और विष के प्रभाव से बचने के लिए भोलेनाथ ने अपने कंठ में ही विष को रखा था।
विष के प्रभाव से महादेव का मस्तिष्क गरम हो गया। इस दौरान शंकर जी के मस्तिष्क की गरमी खत्म करने के लिए सभी ने उनपर जल उड़ेलना शुरू कर दिया। इसके साथ ही ठंडी तासीर होने के कारण उन्हें बेलपत्र भी चढ़ाया गया। तभी से भोलेनाथ को जल और बेलपत्र चढ़ाने की परंपरा मानी जाती है। कहते हैं कि यदि सच्चे भाव और प्रेम से महाकाल को बेलपत्र और जल अर्पित किया जाए, तो जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेख लोक मान्यताओं पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है।

कमेंट
कमेंट X