October Masik Shivratri 2025: मासिक शिवरात्रि भगवान शिव को समर्पित व्रत है। इस दिन श्रद्धापूर्वक महादेव की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति के जीवन से समस्त दुखों का अंत होता है। साथ ही साधक के मन से नकारात्मक विचार भी दूर होते हैं। शास्त्रों के मुताबिक यह तिथि शिव जी को प्रसन्न और उनकी असीम कृपा पाने के लिए बेहद शुभ है। जो भक्त सच्चे मन से इस दिन भगवान शिव का व्रत रखते हैं, उनकी सभी इच्छाएं महादेव पूरी करते हैं। यही नहीं जीवन में शांति व समृद्धि का वास भी होता है।
October Masik Shivratri 2025: 19 या 20 अक्तूबर कब है मासिक शिवरात्रि ? जानें तिथि, योग और पूजा विधि
October Masik Shivratri 2025: मासिक शिवरात्रि भगवान शिव को समर्पित व्रत है। इस दिन श्रद्धापूर्वक महादेव की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति के जीवन से समस्त दुखों का अंत होता है। साथ ही साधक के मन से नकारात्मक विचार भी दूर होते हैं।
अक्तूबर मासिक शिवरात्रि 2025
- पंचांग के मुताबिक चतुर्दशी तिथि का प्रारम्भ 19 अक्तूबर को दोपहर 1 बजकर 51 मिनट पर होगा।
- इसका समापान अगले दिन 20 अक्तूबर को दोपहर 3 बजकर 44 मिनट पर है।
- तिथि के मुताबिक 19 अक्तूबर 2025 को कार्तिक माह की मासिक शिवरात्रि का व्रत रखा जाएगा।
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शुभ योग
मासिक शिवरात्रि के दिन उत्तरा फाल्गुनी और हस्त नक्षत्र का संयोग बन रहा है। इसके अलावा ऐन्द्र योग का संयोग पूरे दिन रहेगा। वहीं चंद्रमा कन्या राशि में गोचर करेंगे। ऐसे में पूजा-पाठ करना शुभ रहेगा।
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पूजा विधि
- मासिक शिवरात्रि के दिन पूजा के लिए शिव और पार्वती की एक साफ चौकी पर मूर्ति स्थापित करें।
- इसके बाद शिव परिवार को वस्त्र अर्पित करें।
- फिर जल, दूध, दही, शहद से शिवलिंग पर अभिषेक करें।
- अब शमी का फूल और बेलपत्र शिव जी को अर्पित करें।
- महादेव को चंदन लगाएं और कुछ फल चढ़ाएं।
- शुद्ध देसी घी से दीपक जलाकर प्रभु को मिठाई का भोग लगाएं।
- मासिक शिवरात्रि की व्रत कथा पढ़ें।
- देवी पार्वती को श्रृंगार का समान दें।
- अब भगवान शिव और देवी पार्वती की आरती करें और सफेद चीजों का दान करें।
जय शिव ओंकारा ऊँ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥
ऊँ जय शिव...॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे॥
ऊँ जय शिव...॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे॥
ऊँ जय शिव...॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी॥
ऊँ जय शिव...॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥
ऊँ जय शिव...॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता॥
ऊँ जय शिव...॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका॥
ऊँ जय शिव...॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी॥
ऊँ जय शिव...॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे॥
ऊँ जय शिव...॥
जय शिव ओंकारा हर ऊँ शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा॥ ऊँ जय शिव ओंकारा...॥

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