Shradh Paksha 2025: भारतीय संस्कृति में श्राद्ध पक्ष केवल एक कर्मकांड नहीं, बल्कि अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता प्रकट करने का अवसर है। अफसोस की बात है कि आजकल बहुत से लोग इसे मात्र एक जिम्मेदारी मानकर निभाते हैं। पंडित को बुला लिया, भोजन बनवाया, दक्षिणा दे दी और समझ लिया कि कर्तव्य पूरा हो गया। लेकिन श्राद्ध का असली अर्थ इससे कहीं गहरा है।
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पितृ पक्ष का महत्व
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श्राद्ध शब्द का अर्थ ही है श्रद्धा से किया गया कार्य। यह हमें यह याद दिलाता है कि हमारी पहचान, संस्कार और परंपराएं हमारे पितरों की ही देन हैं। उन्हें याद करना और उनके प्रति आभार व्यक्त करना ही श्राद्ध का वास्तविक उद्देश्य है। दुर्भाग्यवश समाज में यह धारणा गहराई तक बैठ गई है कि श्राद्ध पक्ष अशुभ समय होता है। लोग मानते हैं कि इन दिनों विवाह, गृह प्रवेश या नई खरीददारी नहीं करनी चाहिए। पर सच्चाई यह है कि यह कोई अशुभ समय नहीं, बल्कि अपने पूर्वजों के स्मरण और आत्मचिंतन का अवसर है। इन 16 दिनों को इसलिए विशेष माना गया है ताकि परिवार अपनी ऊर्जा और समय किसी अन्य उत्सव में न लगाकर पितरों की याद में समर्पित कर सके।
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पितृ पक्ष का महत्व
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श्राद्ध का महत्व तभी पूरा होता है जब हम औपचारिकताओं से आगे बढ़कर इसे भावनाओं से जोड़ते हैं। जिस दिन श्राद्ध हो, उस दिन केवल भोजन बनाना और दान करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि पूरे मन से अपने पूर्वजों को याद करना आवश्यक है। उनके जीवन से जुड़ी अच्छी बातें अपने बच्चों को सुनानी चाहिए। इससे बच्चों में पारिवारिक जुड़ाव और संस्कार पनपते हैं। वास्तव में यह पर्व हमें अपने अतीत से जोड़ता है और भविष्य को दिशा देता है।
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पितृ पक्ष का महत्व
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श्राद्ध केवल पितरों को स्मरण करने का अवसर नहीं, बल्कि समाज के प्रति जिम्मेदारी निभाने का भी माध्यम है। हमारे पूर्वजों ने हमेशा यही सिखाया कि जरूरतमंदों की सहायता करो। इसलिए इस समय ब्राह्मण भोजन, अन्नदान, गौ सेवा या गरीबों की मदद करना अत्यंत पुण्यकारी माना गया है। यह हमें यह एहसास कराता है कि जीवन केवल अपने लिए नहीं, बल्कि समाज और मानवता के लिए भी होना चाहिए।
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पितृ पक्ष का महत्व
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श्राद्ध का संदेश बहुत स्पष्ट है, जीवन क्षणभंगुर है, परंतु स्मृतियाँ और संस्कार अमर रहते हैं। आज जब हम अपने पितरों को याद करते हैं और उनके मूल्यों को आगे बढ़ाते हैं, तभी श्राद्ध का सच्चा उद्देश्य पूरा होता है। इसे अशुभ मानना केवल भ्रांति है। वास्तव में यह एक ऐसा पर्व है जो हमें अपनी जड़ों से जोड़ता है और कृतज्ञता का भाव जगाता है। अतः श्राद्ध को औपचारिकता नहीं, बल्कि श्रद्धा और प्रेम से मनाना ही इसका असली स्वरूप है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं, ज्योतिष, पंचांग, धार्मिक ग्रंथों आदि पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है।
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