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Gita Shlok: गीता के इन उपदेशों से खुलते हैं सफलता के मार्ग, हर मुश्किल होगी आसान

धर्म डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: सोनिया चौहान Updated Tue, 25 Nov 2025 07:47 AM IST
सार

Bhagavad Gita: भगवद गीता हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है जिसमें जीवन के विभिन्न पहलुओं, जैसे कर्म, भक्ति और ज्ञान पर गहन चर्चा की गई है। हजारों वर्षों पुरानी भगवद गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि आत्मिक और मानसिक संघर्षों के समाधान का गहरा विज्ञान भी है।गीता में भगवान कृष्ण ने मनुष्य को सफलता के सूत्र बताए हैं। 

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Bhagavad Gita Shlok For Success Many Benefits If Adopted In Life Gita Ke Safalta Mantra
भगवद गीता श्लोक - फोटो : adobe stock

Bhagavad Gita Shlok For Success: हिंदू धर्म में गीता को अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके जरिए व्यक्ति जीवन जीने की कला और समस्याओं का निवारण करना सीखता है। इस भागदौड़ भरे दौर में हम सभी किसी न किसी रूप में तनाव, बेचैनी और गुस्से का सामना करते हैं। माना जाता है कि भगवान कृष्ण ने गीता का पाठ अर्जुन को तब पढ़ाया था, जब उनके कदम युद्ध के लिए डगमगाने लगे थे। फिर श्रीकृष्ण की बातों को सुनकर अर्जुन अपने लक्ष्य को पूरा करने की ओर अग्रसर हुए। तभी से ऐसा माना गया है कि जीवन की विपरीत परिस्थितियों में मनुष्य को हमेशा गीता के उपदेशों का स्मरण करना चाहिए। गीता में भगवान कृष्ण ने मनुष्य को सफलता के सूत्र बताए हैं। 

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Bhagavad Gita Shlok For Success Many Benefits If Adopted In Life Gita Ke Safalta Mantra
भगवद गीता श्लोक - फोटो : freepik
गीता के सफलता मंत्र

हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्।

तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥


इसका श्लोक का अर्थ है कि, यदि तुम युद्ध में मारे जाओगे, तो तुम्हें स्वर्ग मिलेगा। यदि तुम जीत जाओगे,  तो तुम पृथ्वी का राज्य और उसके सुख का भोग करोगे। इसलिए, हे कौन्तेय (अर्जुन), उठो और दृढ़ निश्चय के साथ युद्ध के लिए तैयार हो जाओ। 

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भगवद गीता - फोटो : Freepik
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ 


इसका श्लोक का अर्थ है कि, आपका अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फल पर नहीं। इसलिए तुम्हें कर्म के फल के लिए चिंतित नहीं होना चाहिए और न ही कर्म न करने में आसक्त होना चाहिए। 

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भगवद गीता श्लोक - फोटो : adobe stock
अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति।

नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः।।


इसका श्लोक का अर्थ है कि, जो अज्ञानी (जिसमें ज्ञान न हो), अश्रद्धालु (जिसमें विश्वास न हो) और संशयात्मा (संदेह करने वाला) है, वह नष्ट हो जाता है। ऐसे व्यक्ति के लिए न यह लोक है, न परलोक और न सुख है।  

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भगवद गीता श्लोक - फोटो : freepik
ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।

सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥


इसका श्लोक का अर्थ है कि, जो मनुष्य विषयों (इंद्रिय-सुखों) पर लगातार चिंतन करता है, उसे उन विषयों में आसक्ति (लगाव) हो जाती है। आसक्ति से इच्छा (काम) पैदा होती है, और जब वह इच्छा पूरी नहीं होती तो क्रोध उत्पन्न होता है।

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