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Year Ender 2025: युद्ध, सत्ता परिवर्तन और टैरिफ… दुनिया की 10 सबसे बड़ी खबरें जिन पर सबसे ज्यादा हुई चर्चा

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला Published by: शिवम गर्ग Updated Mon, 29 Dec 2025 06:12 AM IST
सार

साल 2025 अब अपने आखिरी पड़ाव पर है। यह वर्ष पूरी दुनिया के लिए कई मायनों में बेहद अहम रहा। इस दौरान जहां कुछ सकारात्मक बदलाव देखने को मिले, वहीं कई ऐसी घटनाएं भी हुईं जिन्होंने वैश्विक स्तर पर चिंता बढ़ाई। दुनिया के कई हिस्सों में पूरे साल युद्ध और तनाव की स्थिति बनी रही। आइए नजर डालते हैं उन 10 बड़ी खबरों पर जिन्होंने साल 2025 में वैश्विक मंच पर सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरीं...

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Year Ender 2025: Top 10 Biggest World News of 2025 That Changed Global Politics, Economy and Society in Hindi
दुनिया की 10 सबसे बड़ी खबरें - फोटो : Amar Ujala Graphics

साल 2025 अब अपनी समाप्ति की ओर बढ़ रहा है। ये साल दुनिया के लिए कई मायनों में अहम साबित हुआ है। पूरी दुनिया में 2025 में कई सारी अच्छी तो कई बुरी घटनाएं भी देखने को मिलीं। एक और दुनिया के कई हिस्सों में जंग के हालात बने रहे। तो वहीं, यह साल सिर्फ घटनाओं का नहीं, बल्कि पूरी वैश्विक सोच के बदलने का साल रहा। आइए जानते हैं दुनिया की ऐसी 10 सबसे बड़ी खबरें, जिन्होंने साल 2025 में अंतरराष्ट्रीय मंच पर ज्यादा सुर्खियां बटोरी...

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ट्रंप, पुतिन और जेलेंस्की (फाइल) - फोटो : एएनआई

यूक्रेन-रूस युद्ध: चौथे साल में भी नहीं थमी आग
साल 2025 यूक्रेन-रूस युद्ध के लिए बेहद निर्णायक साबित हुआ। तीन साल से अधिक समय से जारी इस संघर्ष ने 2025 में और गंभीर रूप ले लिया, जिसका असर सिर्फ युद्ध क्षेत्र तक सीमित नहीं रहा, बल्कि कूटनीति, वैश्विक अर्थव्यवस्था और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा पर भी साफ नजर आया। साल की शुरुआत से ही दोनों देशों के बीच लड़ाई तेज हो गई। रूस ने यूक्रेन के ऊर्जा ढांचे, बिजली ग्रिड और सैन्य ठिकानों को निशाना बनाते हुए बड़े पैमाने पर ड्रोन और मिसाइल हमले किए। कीव, खारकीव और ओडेसा जैसे प्रमुख शहरों पर बार-बार हुए हवाई हमलों से आम नागरिकों को भारी नुकसान उठाना पड़ा। जवाब में यूक्रेन ने भी रूस के सीमावर्ती इलाकों और रणनीतिक ठिकानों पर ड्रोन हमले तेज कर दिए। साल के मध्य तक हालात ऐसे हो गए कि यह युद्ध लंबे समय तक खिंचने वाले संघर्ष में तब्दील हो गया, जहां किसी भी पक्ष को निर्णायक बढ़त नहीं मिल सकी।

इस दौरान यूक्रेन को अमेरिका, यूरोपीय संघ और नाटो देशों से लगातार सैन्य और आर्थिक सहायता मिलती रही। उन्नत एयर डिफेंस सिस्टम, आधुनिक हथियार और वित्तीय मदद ने यूक्रेन को मोर्चे पर टिके रहने में सहारा दिया। वहीं, पश्चिमी देशों ने रूस पर नए आर्थिक प्रतिबंध लगाए, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था पर दबाव और बढ़ गया। इसके जवाब में रूस ने चीन, ईरान और कुछ अन्य देशों के साथ व्यापारिक और रणनीतिक सहयोग को मजबूत करने की कोशिश की।

शांति की दिशा में भी 2025 में कई प्रयास किए गए। अमेरिका और यूरोपीय देशों की पहल पर मियामी, बर्लिन और जिनेवा में अनौपचारिक वार्ताएं हुईं। यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने स्पष्ट किया कि उनका देश शांति चाहता है, लेकिन अपनी संप्रभुता से कोई समझौता नहीं करेगा। हालांकि, दोनों पक्षों के बीच गहरे अविश्वास और जमीनी हालात के चलते साल भर कोई ठोस शांति समझौता नहीं हो सका।

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डोनाल्ड ट्रंप, अमेरिकी राष्ट्रपति - फोटो : ANI

डोनाल्ड ट्रंप ने दूसरी बार पदभार ग्रहण किया
20 जनवरी 2025 को डोनाल्ड ट्रंप ने 47वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ली और ऐसा करने वाले वे इतिहास के दूसरे अमेरिकी राष्ट्रपति बने। इससे पहले ट्रंप 2016 से 2020 तक अमेरिका के राष्ट्रपति रह चुके हैं। नवंबर 2024 में हुए अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप को 312 इलेक्टोरल वोट्स और हैरिस को 226 इलेक्टोरल वोट्स मिले थे। चुनाव में बहुमत के लिए किसी प्रत्याशी को 270 इलेक्टोरल वोट्स की जरूरत होती है। वहीं 7 जनवरी को ट्रंप की जीत की आधिकारिक घोषणा की गई थी। इस दौरान अमेरिकी संसद कैपिटल हिल के संयुक्त सत्र में इलेक्टोरल कॉलेज के वोट गिने गए। यह प्रक्रिया उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की अध्यक्षता में हुई थी। पदभार ग्रहण करते ही उन्होंने तत्काल और निर्णायक कार्रवाई करते हुए अपने पूर्ववर्ती की नीतियों को पलटने के लिए कई कार्यकारी आदेश जारी किए। उनके पहले कार्यों में 2021 के कैपिटल हमले से जुड़े व्यक्तियों को क्षमादान देना और संघीय स्तर पर भर्तियों पर रोक लगाना शामिल था।

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गाजा में मानवीय संकट - फोटो : एएनआई / अमर उजाला ग्राफिक्स

गाजा संकट: 2025 में भी जारी रहा इस्राइल-हमास संघर्ष
साल 2025 में गाजा पट्टी एक बार फिर इस्राइल-हमास संघर्ष का केंद्र बनी रही। युद्धविराम की तमाम कोशिशों के बावजूद हिंसा थम नहीं सकी। इस्राइल ने गाजा में हवाई और जमीनी सैन्य कार्रवाई जारी रखी, जबकि हमास और उससे जुड़े संगठनों ने रॉकेट हमलों से जवाब दिया। अस्पतालों में दवाओं और ईंधन की भारी कमी रही, जबकि पानी, भोजन और बिजली जैसी बुनियादी जरूरतें भी संकट में रहीं। बड़ी संख्या में लोग अपने घर छोड़ने को मजबूर हुए, जिनमें महिलाएं और बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित रहे। संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ और कई अरब देशों ने बार-बार युद्धविराम की अपील की और मानवीय सहायता के लिए सुरक्षित गलियारे खोलने की मांग की। अमेरिका ने इस्राइल की सुरक्षा को लेकर अपना रुख बनाए रखा, लेकिन साथ ही नागरिकों की सुरक्षा पर जोर दिया। वहीं, ईरान और उसके समर्थक गुटों की भूमिका को लेकर भी क्षेत्रीय तनाव बढ़ता रहा, जिससे पूरे मध्य पूर्व में अस्थिरता का माहौल बना रहा।

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जेन-जी प्रदर्शनकारी - फोटो : PTI

Gen Z का असर: 2025 में युवाओं ने बदले सत्ता समीकरण
साल 2025 में दुनिया भर में जेन-जी यानी 1997 के बाद जन्मी पीढ़ी ने यह दिखा दिया कि राजनीति अब सिर्फ पारंपरिक नेताओं तक सीमित नहीं रही। सोशल मीडिया कैंपेन, छात्र आंदोलनों और बढ़ती चुनावी भागीदारी के जरिए युवाओं ने न सिर्फ अपनी बात रखी, बल्कि कई देशों में सरकारों को फैसले बदलने पर मजबूर भी किया। इस साल बांग्लादेश में बेरोजगारी, महंगाई और चुनावी पारदर्शिता को लेकर छात्रों के विरोध प्रदर्शन तेज हुए। इन आंदोलनों का असर यह रहा कि सरकार को नीतिगत सुधार करने पड़े और कैबिनेट में भी बदलाव करना पड़ा।

वहीं सितंबर, 2025 में नेपाल में ओली सरकार ने सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने का एलान किया। इसकी वजह से जेन-जी युवाओं का गुस्सा भड़क उठा। हालांकि, केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ हिंसक प्रदर्शनों की अकेली वजह सोशल मीडिया पर प्रतिबंध नहीं, देश की सत्ता पर बुजुर्ग नेताओं का कब्जा और भ्रष्टाचार के आरोप भी कारण रहे। इन हिंसक विरोध प्रदर्शनों की वजह से प्रधानमंत्री ओली को इस्तीफा देना पड़ा। फिलहाल नेपाल में पूर्व सीजेआई सुशीला कार्की के नेतृत्व में एक अंतरिम सरकार बनी है। इस अंतरिम सरकार ने नेपाल में 2026 के मार्च महीने में आम चुनाव कराने का फैसला लिया है।

इसके अलावा श्रीलंका में आर्थिक संकट के बाद युवाओं का गुस्सा शांत नहीं हुआ और उनके दबाव में समय से पहले चुनाव कराए गए, जिनसे सत्ता परिवर्तन हुआ। जबकि यूरोप में फ्रांस और पोलैंड में जलवायु परिवर्तन, शिक्षा और रोजगार जैसे मुद्दों पर युवा आंदोलनों का सीधा असर चुनावी नतीजों पर दिखा। वहीं, चिली और कोलंबिया में युवाओं के समर्थन से सुधारवादी सरकारें और मजबूत होकर सामने आईं।

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