अरब में विदेशी रेत आयात के कारण: नाकाफी साबित हो रहे सऊदी-UAE जैसे देशों के रेगिस्तान, बाहर से मंगा रहे बालू
आपको पता है कि सऊदी अरब और UAE जैसे रेतीले देश रेत में ढेरों होने के बावजूद ऑस्ट्रेलिया और समुद्री स्रोतों से रेत मंगाते हैं। अजीब लगा ना ये सुनकर? लेकिन यह सच है। इसका बड़ा कारण इन देशों में चल रहे बड़े और अरबों के प्रोजेक्टस में कंक्रीट की जरूरत है। खैर, मन में ये सवाल खड़ा होना आवश्यक है कि आखिर रेत तो रेत होती है तो फिर दूसरे देशों से आयात क्यों? आइए जानते है।
विस्तार
'कोल भेजना न्यूकैसल', यह कहावत इंग्लैंड के 16वीं सदी की है, जिसका मतलब है किसी जगह पर उस चीज को भेजना जहां वह पहले से ही बहुत है। लेकिन कभी-कभी ये पैराडॉक्स असली दुनिया में भी दिखते हैं। जैसे कि सऊदी अरब और UAE जैसे रेतीले देश, ऑस्ट्रेलिया, चीन और बेल्जियम जैसे देशों से रेत आयात कर रहे हैं। सुनने में अजीब लगता है, है ना? आखिर रेगिस्तान में तो रेत की कमी नहीं है, तो आखिर क्यों ये रेगिस्तानी देश दूसरे देशों से रेत आयात करते हैं। क्या वजह है जो रेतों का ढेर होने के बाद भी इनका रेत खुद इनके काम नहीं आता? आइए जानते हैं।
अच्छा, इसकी बड़ी और आसान वजह पहले ऐसे समझ सकते है कि रेगिस्तानी रेत बहुत गोल और चिकनी होती है, क्योंकि यह हजारों वर्षों तक हवा और धूल से घिस चुकी होती है। ये कंक्रीट बनाने के लिए बिल्कुल सही नहीं है। बता दें कि कंक्रीट तीन चीजों से बनता है। सीमेंट, जो पानी से मिलकर ‘गोंद’ का काम करता है। पानी, जो सीमेंट के साथ रासायनिक प्रतिक्रिया करता है और फिर एग्रिगेट (संयुक्त कण), इसमें कंकड़ और रेत आती है। यह कंक्रीट का 60-80% हिस्सा बनाता है।
क्यों रेगिस्तानी रेत से नहीं बनता कंक्रीट?
दुनिया में पाए जाने वाले सभी रेत कंक्रीट बनाने के लिए सही नहीं होते है। खासकर रेगिस्तानी रेत। इस बात को ऐसे समझा जा सकता है कि कंक्रीट में इस्तेमाल होने वाली रेत कोनेदार और खुरदरी होनी चाहिए ताकि सीमेंट उसमें अच्छे से चिपक सके। दूसरी ओर रेगिस्तानी रेत बिलकुल चिकनी गेंदों जैसी है।
ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि कंक्रीट में रेगिस्तानी रेत का इस्तेमाल करना वैसा ही है जैसे 'गोल-गोल मार्बल से ईंट का घर बनाने की कोशिश'। इसलिए सऊदी अरब और UAE जैसे देश नदी, झील और समुद्र के किनारे की रेत मंगाते हैं। ये रेत कोनेदार और मजबूत होती है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, दुनिया में हर साल लगभग 50 बिलियन टन रेत इस्तेमाल होती है। लेकिन इसका सिर्फ एक हिस्सा ही कंक्रीट के लिए इस्तेमाल हो सकता है।
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ऑस्ट्रेलिया रेत का बड़ा सप्लायर
ऑस्ट्रेलिया ने खुद को उच्च गुणवत्ता वाली निर्माण रेत का प्रमुख एक्सपोर्टर बना लिया है। 2023 में, ऑस्ट्रेलिया ने लगभग $273 मिलियन की रेत एक्सपोर्ट की और सऊदी अरब इसके बड़े आयातकों में से था। ऐसे में सऊदी अरब के लिए यह जरूरी है क्योंकि देश में नियोम, द रेड सी प्रोजेक्ट, किद्दिया जैसे अरबों डॉलर के प्रोजेक्ट चल रहे हैं। इन प्रोजेक्ट्स में सिर्फ रेत ही नहीं, बल्कि सर्वोत्तम गुणवत्ता वाली कंक्रीट चाहिए। रेगिस्तानी रेत इस काम के लिए उपयुक्त नहीं है।
सऊदी के विजन 2030 और निर्माण सामग्री की जरूरत
सऊदी के लिए रेत का आयात इसलिए भी आवश्यक है, क्योंकि सऊदी अरब की विजन 2030 योजना, जो तेल पर निर्भरता कम कर देश को आधुनिक और विविध अर्थव्यवस्था वाली बनाना चाहती है, बड़े प्रोजेक्ट्स पर केंद्रित है। इसमें नियोम सिटी, द लाइन और अन्य परियोजनाएं हैं। ये प्रोजेक्ट्स विशेष निर्माण सामग्री चाहते हैं, इसलिए रेत आयात करना जरूरी है।
क्या है बाकी खाड़ी देशों की कहानी?
अच्छा एक और गौर करने वाली है कि रेत का आयात करने वाला सऊदी अरब अकेला देश नहीं है। UAE और कतर जैसी अन्य खाड़ी देश भी रेगिस्तान होते हुए भी रेत विदेश से मंगाते हैं। उदाहरण के लिए, बुर्ज खलीफा (828 मीटर) के लिए इतने सारे कंक्रीट की जरूरत थी कि उसमें रेगिस्तानी रेत काम नहीं आई। इसलिए ऑस्ट्रेलिया से उच्च गुणवत्ता वाली रेत मंगाई गई। दूसरी ओर सबसे आवश्यक बात ये है कि UAE में रेत का इस्तेमाल सिर्फ इमारतों में नहीं, बल्कि कांच बनाने, आर्टिफिशियल आइलैंड्स बनाने और पर्यटन स्थलों की समुद्री रेत की आपूर्ति के लिए भी होता है।
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दुनिया भर में 'रेत संकट' भी चरम पर
गौरतलब है कि इस आयात पर निर्भरता सिर्फ सऊदी अरब की समस्या नहीं है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने चेतावनी दी है कि दुनिया रेत संकट का सामना कर रही है। बिना नियमन के रेत निकालना पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है। जैसे कि नदियों का कटाव, जैव विविधता का नुकसान। ऐसे में कुछ देशों ने एम-रेत (निर्मित रेत) और रीसाइकिल्ड कंस्ट्रक्शन वेस्ट को इस्तेमाल करना शुरू किया है। सऊदी अरब भी इन विकल्पों पर विचार कर रहा है, लेकिन अभी विदेश से आयात आवश्यक है।
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