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पंजाब के तीन शहरों को पवित्र नगरी का दर्जा: नोटिफिकेशन जारी, श्रद्धालुओं के आने-जाने के लिए शटल बस

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, चडीगढ़ Published by: अंकेश ठाकुर Updated Sun, 21 Dec 2025 01:53 PM IST
सार

पंजाब सरकार ने राज्य के तीन प्रमुख धार्मिक शहरों को पवित्र नगरी का दर्जा दिया है। सरकार की तरफ से आधिकारिक नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया है। अमृतसर, आनंदपुर साहिब और तलवंडी साबो को आधिकारिक रूप से पवित्र नगरी घोषित कर दिया है। 

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Amritsar Anandpur Sahib and Talwandi Sabo granted status of holy cities
अमृतसर स्थित श्री हरमंदिर साहिब - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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पंजाब सरकार ने प्रदेश के तीनों तख्तों अमृतसर, आनंदपुर साहिब और तलवंडी साबो को आधिकारिक रूप से पवित्र नगरी घोषित कर दिया है। इस संबंध में रविवार को अधिसूचना जारी कर दी गई है। मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा कि अब इन तीन शहरों का संपूर्ण विकास होगा। तीन तख्तों के लिए श्रद्धालुओं के आने-जाने के लिए ई-रिक्शा और शटल बस सेवा सरकार की तरफ से चलाई जाएगी। उन्होंने कहा कि बहुत पहले यह हो जाना चाहिए था जो अब आप सरकार ने किया है।

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अमृतसर, आनंदपुर साहिब और तलवंडी साबो पंजाब में सिखों की आस्था के बड़े केंद्र हैं। सिख पंथ के पांच तख्तों में तीन इन्हीं शहरों में हैं। अमृतसर में श्री अकाल तख्त साहिब, श्री आनंदपुर साहिब में स्थित श्री केसगढ़ साहिब और तलवंडी साबो स्थित श्री दमदमा साहिब। इनके आध्यात्मिक गलियारे अब पवित्र नगरी कहलाएंगे। 
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पंजाब सरकार ने हाल ही में इन्हें यह दर्जा दिया है। इन क्षेत्रों में मांस-मछली, बीड़ी-सिगरेट, तंबाकू और शराब के सेवन व बिक्री पर पूरी तरह पाबंदी होगी। इन गलियारों में जितने भी होटल व रेस्तरां हैं वहां भी ये वस्तुएं नहीं परोसी जाएंगी। यह प्रस्ताव श्री आनंदपुर साहिब में हुए पंजाब विधानसभा के विशेष सत्र में सर्वसम्मति से पारित हुआ। सिखों के नौवें गुरु श्री तेग बहादुर जी के 350वें शहीदी वर्ष पर पारित हुए इस प्रस्ताव के कई मायने हैं। ऐसे में अब सरकार ने तीनों शहरों को पवित्र नगरी बनाने के लिए नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया है।

क्या-क्या हुआ पूरी तरह बंद? 

-मांस-मछली और नॉनवेज रेस्तरां। 
-शराब के ठेके, बार, वाइन शॉप। 
-सिगरेट, बीड़ी, गुटखा, तंबाकू उत्पाद। 
-हुक्का बार और सभी प्रकार के नशीले पदार्थ। 

और क्या-क्या बदलेगा? 

-पवित्र गलियारों में निर्माण और ऊंची इमारतों पर नियंत्रण होगा। 
-अवैध कारोबार और अनुचित गतिविधियों पर सख्ती से पाबंदी लग सकेगी। 
-धार्मिक पर्यटन में वृद्धि होगी और स्थानीय कारोबार को बढ़ावा मिलेगा। 
-सुरक्षा के लिए अतिरिक्त पुलिस चौकियां और स्मार्ट मॉनिटरिंग सिस्टम तैयार होगा। 
-केंद्र से विशेष फंडिंग और परियोजनाओं को मंजूरी मिलने की संभावनाएं बढ़ेंगी। 

अंतर-धार्मिक समिति गठित होगी
पवित्र शहरों में सामाजिक सौहार्द और धार्मिक मर्यादा को बनाए रखने के लिए एक अंतर-धार्मिक सलाहकार समिति का गठन किया जाएगा। इसमें सिख, हिंदू, मुस्लिम, ईसाई और अन्य समुदायों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। यह समिति पवित्र क्षेत्रों में दिशा-निर्देशों और मर्यादाओं की निगरानी करेगी। 
 

तीनों पवित्र शहर आस्था, इतिहास और परंपराओं के केंद्र

1. अमृतसर: श्री हरिमंदिर साहिब की पावन धरती 
अमृतसर की पहचान श्री हरिमंदिर साहिब से है जो खुले घर की अवधारणा पर आधारित है। यहां हर धर्म और जाति का व्यक्ति का खुले मन से स्वागत होता है। इसके चारों द्वार भी इसी भावना को जाहिर करते हैं। तीर्थस्थल का केंद्र अमृत सरोवर है जिसमें स्नान को आत्मिक शुद्धि का प्रतीक माना जाता है। नाम जपो, किरत करो, वंड-छको की परंपरा को जीवन का आधार माना जाता है।
-गुरुद्वारा परिसर में चलने वाला लंगर हर दिन लाखों लोगों को भोजन कराता है। यह समानता, सेवा और मानवता का अनुपम उदाहरण।
-श्री हरिमंदिर साहिब परिसर में स्थित श्री अकाल तख्त सिख धर्म के पांच तख्तों में सर्वोच्च है। यहां समुदाय से जुड़े अनेक महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाते हैं। यहां से जारी आदेश देश-विदेश में बैठे हर सिख के लिए सर्वमान्य है। 
-यहां कई ऐतिहासिक स्थल है। इन स्थानों का संबंध सिख इतिहास, गुरुओं के जीवन और साहित्यिक विरासत से है।
-वैसाखी, बंदी छोड़ दिवस, शहीदी दिवस सहित कई अवसरों पर लाखों श्रद्धालु यहां नतमस्तक होने के लिए पहुंचते हैं।  

2. श्री आनंदपुर साहिब: खालसा पंथ की जन्मभूमि
-श्री आनंदरपुर साहिब वीरता, बलिदान और आध्यात्मिक परंपराओं का केंद्र है। 30 मार्च 1699 को दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने यहां खालसा पंथ की स्थापना की थी। यहीं पांच प्यारों को अमृत छकाकर पहला खालसा रूप दिया गया।
-यहां स्थित किला आनंदगढ़ साहिब को सिखों की रक्षा, पराक्रम और आत्म-सम्मान का प्रतीक माना जाता है।
-यहां गुरु साहिब ने जपजी साहिब, चंडी दी वार, अकाल उस्तत जैसे महान ग्रंथों की रचना की। 
-1705 के चमकौर युद्ध और आगे के संघर्षों की शुरुआत इसी पवित्र धरती से हुई। यह स्थान धार्मिक स्वतंत्रता की लड़ाई का प्रतीक है। -पांच तख्तों में एक श्री केसगढ़ साहिब लाखों सिखों की आस्था का केंद्र है। 

3. तलवंडी साबो: गुरु की काशी
-श्री तलवंडी साबो ज्ञान, अध्यात्म और ग्रंथ संपादन की पवित्र भूमि है। सिख धर्म के पांच तख्तों में से एक श्री दमदमा साहिब यहीं स्थित है। 
-1705–06 के दौरान श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने यहां लगभग दस माह ठहरकर श्री गुरु ग्रंथ साहिब का अंतिम और अधिकृत संस्करण तैयार कराया। इसी कारण इसे गुरु की काशी भी कहा जाता है। 
-तलवंडी साबो लंबे समय तक सिख शिक्षा और विद्वता का केंद्र रहा। यहां गुरबाणी, इतिहास, भाषाओं और शास्त्रों की शिक्षा दी जाती थी।
-यहां बिताए समय में श्री गुरु साहिब ने सिख समुदाय को संगठित किया और कठिन दौर में नई शक्ति प्रदान की। यह स्थान ईश्वर-भक्ति, सत्य और त्याग के संदेशों का केंद्र है। 
-हर वर्ष यहां बैसाखी मेला और जोड़ मेला लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।

तीनों पवित्र शहर आस्था, इतिहास और परंपराओं के केंद्र

1. अमृतसर: श्री हरिमंदिर साहिब की पावन धरती 
अमृतसर की पहचान श्री हरिमंदिर साहिब से है जो खुले घर की अवधारणा पर आधारित है। यहां हर धर्म और जाति का व्यक्ति का खुले मन से स्वागत होता है। इसके चारों द्वार भी इसी भावना को जाहिर करते हैं। तीर्थस्थल का केंद्र अमृत सरोवर है जिसमें स्नान को आत्मिक शुद्धि का प्रतीक माना जाता है। नाम जपो, किरत करो, वंड-छको की परंपरा को जीवन का आधार माना जाता है।
-गुरुद्वारा परिसर में चलने वाला लंगर हर दिन लाखों लोगों को भोजन कराता है। यह समानता, सेवा और मानवता का अनुपम उदाहरण।
-श्री हरिमंदिर साहिब परिसर में स्थित श्री अकाल तख्त सिख धर्म के पांच तख्तों में सर्वोच्च है। यहां समुदाय से जुड़े अनेक महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाते हैं। यहां से जारी आदेश देश-विदेश में बैठे हर सिख के लिए सर्वमान्य है। 
-यहां कई ऐतिहासिक स्थल है। इन स्थानों का संबंध सिख इतिहास, गुरुओं के जीवन और साहित्यिक विरासत से है।
-वैसाखी, बंदी छोड़ दिवस, शहीदी दिवस सहित कई अवसरों पर लाखों श्रद्धालु यहां नतमस्तक होने के लिए पहुंचते हैं।  

2. श्री आनंदपुर साहिब: खालसा पंथ की जन्मभूमि
-श्री आनंदरपुर साहिब वीरता, बलिदान और आध्यात्मिक परंपराओं का केंद्र है। 30 मार्च 1699 को दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने यहां खालसा पंथ की स्थापना की थी। यहीं पांच प्यारों को अमृत छकाकर पहला खालसा रूप दिया गया।
-यहां स्थित किला आनंदगढ़ साहिब को सिखों की रक्षा, पराक्रम और आत्म-सम्मान का प्रतीक माना जाता है।
-यहां गुरु साहिब ने जपजी साहिब, चंडी दी वार, अकाल उस्तत जैसे महान ग्रंथों की रचना की। 
-1705 के चमकौर युद्ध और आगे के संघर्षों की शुरुआत इसी पवित्र धरती से हुई। यह स्थान धार्मिक स्वतंत्रता की लड़ाई का प्रतीक है। -पांच तख्तों में एक श्री केसगढ़ साहिब लाखों सिखों की आस्था का केंद्र है। 

3. तलवंडी साबो: गुरु की काशी
-श्री तलवंडी साबो ज्ञान, अध्यात्म और ग्रंथ संपादन की पवित्र भूमि है। सिख धर्म के पांच तख्तों में से एक श्री दमदमा साहिब यहीं स्थित है। 
-1705–06 के दौरान श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने यहां लगभग दस माह ठहरकर श्री गुरु ग्रंथ साहिब का अंतिम और अधिकृत संस्करण तैयार कराया। इसी कारण इसे गुरु की काशी भी कहा जाता है। 
-तलवंडी साबो लंबे समय तक सिख शिक्षा और विद्वता का केंद्र रहा। यहां गुरबाणी, इतिहास, भाषाओं और शास्त्रों की शिक्षा दी जाती थी।
-यहां बिताए समय में श्री गुरु साहिब ने सिख समुदाय को संगठित किया और कठिन दौर में नई शक्ति प्रदान की। यह स्थान ईश्वर-भक्ति, सत्य और त्याग के संदेशों का केंद्र है। 
-हर वर्ष यहां बैसाखी मेला और जोड़ मेला लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।
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