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पंजाब के खेतों से गायब हो रही सरसों: 17 लाख एकड़ से कम होकर 1.25 लाख एकड़ तक सिमटा रकबा, क्या है कारण
सुरिंदर पाल, अमर उजाला, जालंधर (पंजाब)
Published by: निवेदिता वर्मा
Updated Mon, 15 Dec 2025 03:03 PM IST
सार
हरित क्रांति के अग्रणी राज्य पंजाब के सरसों की खुशबू से पहचाने जाने वाले कई इलाके अब इस फसल से दूर होते जा रहे हैं। सरकारी आंकड़ों से साफ है कि पंजाब में सरसों (रैपसीड–मस्टर्ड) की खेती लगातार सीमित होती जा रही है जिसका सीधा असर न केवल किसानों की आमदनी पर बल्कि देश की खाद्य तेल आत्मनिर्भरता पर भी पड़ रहा है।
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सरसों की खेती
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
मक्की दी रोटी और सरसों दा साग के ट्रेंड वाले पंजाब से सरसों की खेती में कमी आ रही है। किसानों का अब गेहूं और चावल उगाने पर अधिक जोर है।
मक्की को किसान फिर से प्राथमिकता देने लगे हैं लेकिन सरसों की खेती से दूरी बना रहे हैं। इससे खाद्य तेल में आत्मनिर्भर बनने के प्रयासों को भी झटका लगा है। सरसों की कटाई के बाद इसकी संभाल मुश्किल होती है जिस कारण किसानों को नुकसान झेलना पड़ता है। साथ अधिक नमी के कारण भी फसल खराब हो जाती है। इस घाटे से बचने के लिए किसानों दूसरी फसलों की तरफ रुख कर रहे हैं।
इस बदले ट्रेंड ने पंजाब के फूड कल्चर के साथ ही कृषि को भी प्रभावित किया है। हरियाणा हरित क्रांति के प्रभाव से निकलने में कामयाब रहा है लेकिन पंजाब अभी भी धान व गेहूं के चक्र से नहीं निकल पाया है।
किसान नेता बलवंत सिंह का तर्क है कि कम लाभ व ज्यादा जोखिम है। एमएसपी का लाभ सीमित है। सरकारी खरीद की गारंटी नहीं है। मंडी में अक्सर एमएसपी से नीचे भाव मिलते हैं। ऐसे में किसान सुरक्षित विकल्प के रूप में गेहूं या मक्का को प्राथमिकता दे रहे है। समय-समय पर राज्य सरकार धान–गेहूं चक्र से बाहर निकलने के लिए मक्का, दलहन और सब्जियों को बढ़ावा दे रही है लेकिन सरसों को स्पष्ट नीति समर्थन नहीं मिल पा रहा। न तो बीज पर बड़ा प्रोत्साहन है और न ही प्रोसेसिंग यूनिट्स का भरोसा। पिछले कुछ वर्षों में राज्य में 12 हजार हेक्टेयर से अधिक कृषि भूमि घट चुकी है जिससे कम लाभ वाली फसलें सबसे पहले प्रभावित हो रही हैं।
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मक्की को किसान फिर से प्राथमिकता देने लगे हैं लेकिन सरसों की खेती से दूरी बना रहे हैं। इससे खाद्य तेल में आत्मनिर्भर बनने के प्रयासों को भी झटका लगा है। सरसों की कटाई के बाद इसकी संभाल मुश्किल होती है जिस कारण किसानों को नुकसान झेलना पड़ता है। साथ अधिक नमी के कारण भी फसल खराब हो जाती है। इस घाटे से बचने के लिए किसानों दूसरी फसलों की तरफ रुख कर रहे हैं।
इस बदले ट्रेंड ने पंजाब के फूड कल्चर के साथ ही कृषि को भी प्रभावित किया है। हरियाणा हरित क्रांति के प्रभाव से निकलने में कामयाब रहा है लेकिन पंजाब अभी भी धान व गेहूं के चक्र से नहीं निकल पाया है।
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1.25 लाख एकड़ से भी कम हुआ रकबा
पंजाब में किसी समय 17 लाख एकड़ पर सरसों की खेती होती थी लेकिन अब आंकड़ा 1.25 लाख एकड़ से भी कम है। हालांकि हरियाणा में 21 लाख व राजस्थान में 75 लाख एकड़ में सरसों की खेती होती है। पंजाब में सरसों का रकबा दिन प्रतिदिन कम होता जा रहा है जबकि कई जिलों में किसान फिर से सरसों छोड़कर गेहूं, मक्का और आलू जैसी फसलों की ओर लौट गए।किसान नेता बलवंत सिंह का तर्क है कि कम लाभ व ज्यादा जोखिम है। एमएसपी का लाभ सीमित है। सरकारी खरीद की गारंटी नहीं है। मंडी में अक्सर एमएसपी से नीचे भाव मिलते हैं। ऐसे में किसान सुरक्षित विकल्प के रूप में गेहूं या मक्का को प्राथमिकता दे रहे है। समय-समय पर राज्य सरकार धान–गेहूं चक्र से बाहर निकलने के लिए मक्का, दलहन और सब्जियों को बढ़ावा दे रही है लेकिन सरसों को स्पष्ट नीति समर्थन नहीं मिल पा रहा। न तो बीज पर बड़ा प्रोत्साहन है और न ही प्रोसेसिंग यूनिट्स का भरोसा। पिछले कुछ वर्षों में राज्य में 12 हजार हेक्टेयर से अधिक कृषि भूमि घट चुकी है जिससे कम लाभ वाली फसलें सबसे पहले प्रभावित हो रही हैं।