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मां की गोद का विकल्प नहीं: HC ने कहा-यह शिशु का प्राकृतिक आश्रय, नन्ही मासूम की कस्टडी मां को साैंपने के आदेश

विवेक शर्मा, अमर उजाला, चंडीगढ़ Published by: चंडीगढ़ ब्यूरो Updated Thu, 18 Dec 2025 07:25 PM IST
सार

रूबी रानी ने एडवोकेट अमृतपाल सिंह संधू के माध्यम से बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल की थी। याचिका में आरोप लगाया गया था कि पति और ससुराल पक्ष ने उसे वैवाहिक घर से निकाल दिया और 23 दिन की नवजात बेटी को जबरन अपने पास रख लिया।

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Punjab Haryana highcourt ordered to hand over custody of minor girl to her mother
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि पांच वर्ष से कम आयु के बच्चे के कल्याण के लिए मां की देखभाल सबसे उपयुक्त होती है। 
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कोर्ट ने कहा कि पिता की भावनाएं हमेशा मजबूत होती हैं लेकिन बच्चे की इतनी कम उम्र में वे मां से ज्यादा नहीं हो सकती। मां की गोद का कोई विकल्प नहीं हो सकता। कोर्ट ने नाबालिग बच्ची की कस्टडी उसकी मां को सौंपने के आदेश दिया है।

रूबी रानी ने एडवोकेट अमृतपाल सिंह संधू के माध्यम से बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल की थी। याचिका में आरोप लगाया गया था कि पति और ससुराल पक्ष ने उसे वैवाहिक घर से निकाल दिया और 23 दिन की नवजात बेटी को जबरन अपने पास रख लिया। याचिकाकर्ता का कहना था कि बच्ची की कस्टडी अवैध रूप से पिता के पास है जबकि वह स्वयं उसकी प्राकृतिक अभिभावक है। 
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कोर्ट ने कहा कि हिंदू माइनॉरिटी एंड गार्जियनशिप एक्ट, 1956 की धारा 6 के अनुसार पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चे की कस्टडी सामान्यतः मां के पास ही होनी चाहिए। इस उम्र में बच्चे को मां के स्नेह, संरक्षण और देखभाल की सबसे अधिक आवश्यकता होती है और उसे इससे वंचित करना उसके शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विकास के लिए हानिकारक हो सकता है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यद्यपि पिता भी प्राकृतिक अभिभावक है लेकिन इतनी कम उम्र में बच्चे के हित सर्वोपरि हैं। बिना किसी असाधारण परिस्थिति के मां से कस्टडी छीनी नहीं जा सकती। इस मामले में ऐसी कोई परिस्थिति सामने नहीं आई, जिससे मां को कस्टडी से वंचित किया जा सके।

15 जनवरी को बच्ची को सौंपने के आदेश

अदालत ने राज्य के अधिकारियों को निर्देश दिए कि नाबालिग बच्ची को 15 जनवरी 2026 को बठिंडा जिला अदालत के एडीआर सेंटर में प्रस्तुत कर मां रूबी रानी को सौंपा जाए। साथ ही पिता और उसके परिजनों को निर्धारित समय पर बच्ची से मिलने की अनुमति भी दी गई है। कोर्ट ने यह स्वतंत्रता भी दी कि कोई भी पक्ष उचित कानूनी उपाय के लिए फैमिली कोर्ट का रुख कर सकता है जहां कस्टडी से जुड़ा मामला शीघ्र निपटाने का प्रयास किया जाए।
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