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जगरांव में कूड़ा राज: अफसरों की नाकामी से सड़ रहा शहर, सफाई कर्मियों ने बंद किया कूड़ा उठाना
अतुल मल्होत्रा, जगरांव
Published by: अंकेश ठाकुर
Updated Sun, 28 Dec 2025 02:25 PM IST
सार
जगरांव नगर कौंसिल की नाकामी अब सड़कों तक सीमित नहीं रही, बल्कि सीधे कौंसिल दफ्तर की चारदीवारी के भीतर सड़ांध मारने लगी है। कचरा निपटाने की न कोई नीति है, न जमीन और न कोई प्लान।
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नगर कौंसिल दफ्तर जगरांव के बाहर कूड़े का ढेर।
- फोटो : संवाद
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विस्तार
लुधियाना के जगरांव शहर में कूड़े का संकट अब विस्फोटक मोड़ पर पहुंच चुका है। आने वाले दिनों में हालात और भयावह होने तय हैं। क्योंकि सफाई कर्मचारियों ने कूड़ा उठाने से इनकार कर दिया है। सफाई कर्मियों का कहना है कि जब तक कूड़ा फेंकने के लिए ठोस जगह नहीं दी जाती, तब तक वे कूड़ा नहीं उठाएंगे। नतीजा जगरांव धीरे-धीरे खुले में सड़ने की ओर बढ़ रहा है।
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जगरांव नगर कौंसिल की नाकामी अब सड़कों तक सीमित नहीं रही, बल्कि सीधे कौंसिल दफ्तर की चारदीवारी के भीतर सड़ांध मारने लगी है। कचरा निपटाने की न कोई नीति है, न जमीन और न कोई प्लान। इसी प्रशासनिक निकम्मेपन के चलते नगर कौंसिल अधिकारी इस कदर बौखला गए कि पूरे शहर का कचरा उठाकर अपने ही दफ्तर में ढेर करना शुरू कर दिया। हालात ऐसे बना दिए गए कि नगर कौंसिल कार्यालय नहीं, बल्कि कूड़े का गोदाम नज़र आने लगा।
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कौंसिल परिसर में लगे कूड़े के पहाड़ों से उठती बदबू ने आसपास रहने वालों का जीना मुहाल कर दिया। कौंसिल के पीछे बने अस्पताल में मरीज इलाज कराने आए थे, लेकिन उन्हें इलाज से ज़्यादा बदबू झेलनी पड़ी। प्रशासन की इस घोर लापरवाही के खिलाफ जब डॉक्टरों और अस्पताल स्टाफ का सब्र टूट गया, तो उन्होंने धरना लगाकर कौंसिल परिसर में कूड़ा फेंकने पर मजबूरी में रोक लगवाई। इसके बाद नगर कौंसिल की मुसीबत और बढ़ गई। सफाई कर्मचारियों ने भी खुला ऐलान कर दिया कि अगर कूड़े के लिए जगह नहीं मिली, तो पूरा शहर यूं ही सड़ेगा।
पंजाब सफाई सेवक यूनियन के जिला अध्यक्ष अरुण गिल ने नगर कौंसिल और उच्च अधिकारियों पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि शहर में कचरे की समस्या को लेकर जनता पहले ही सड़कों पर उतर चुकी है। सेकेंडरी पॉइंट्स बंद होने के बाद अधिकारियों ने समस्या का समाधान निकालने की बजाय सिर्फ जुबानी आदेशों के सहारे नगर कौंसिल परिसर में कूड़ा फेंकना शुरू कर दिया। उन्होंने साफ कहा कि यह समाधान नहीं, बल्कि बदबू का स्थानांतरण है।
वहीं दूसरी ओर, शहरवासियों के तीखे विरोध के बाद भले ही कौंसिल के अंदर कूड़ा डालने पर रोक लग गई हो, लेकिन इसके बाद नगर कौंसिल की असलियत और ज़्यादा उजागर हो गई। मजबूरी में सफाई कर्मचारियों ने घर-घर से कचरा उठाना बंद कर दिया। नालियां और गड्ढे चाहे साफ किए जा रहे हों, लेकिन सड़कों पर फैलता कूड़ा नगर कौंसिल की पूरी नाकामी का जिंदा सबूत बन चुका है।
अरुण गिल ने दो टूक चेतावनी दी कि अगर अगले दो से चार दिन में नगर कौंसिल के वरिष्ठ अधिकारी नींद से नहीं जागे, कचरे के लिए ठोस इंतज़ाम नहीं हुए और बंद पड़े कूड़ा पॉइंट्स तुरंत चालू नहीं किए गए, तो पूरी सफाई व्यवस्था ठप कर दी जाएगी। इसके बाद शहर में फैलने वाली गंदगी, बीमारियों और अराजकता की सीधी जिम्मेदारी नगर कौंसिल के अफसरों और नगर प्रशासन की होगी।
इस मौके पर स्वच्छता संघ के सचिव राजिंदर कुमार, अध्यक्ष सनी सुंदर, प्रदीप कुमार, संदीप कुमार, सुरजीत सिंह, बिक्रम गिल सिंह समेत बड़ी संख्या में सफाई कर्मचारी मौजूद रहे।
शहर में जगह-जगह लगे कूड़े के पहाड़ किसी और के नहीं, बल्कि नगर कौंसिल अधिकारियों की नाकामी की पहचान हैं। अधिकारियों ने शहर चमकाने की बजाय सिर्फ फाइलें चमकाने का खेल जारी रखा। कूड़े की रीसाइक्लिंग, गीले-सूखे कचरे की छंटनी और वैज्ञानिक निपटारे की व्यवस्था बनाने में नगर कौंसिल पूरी तरह फेल साबित हुई।
पूर्व कौंसिल प्रधान जतिंदरपाल राणा का कहना है कि अगर गीले कचरे से खाद और बायोगैस बनाई जाती और सूखे कचरे का रीसाइक्लिंग होता, तो जगराओं कब का कचरा-मुक्त शहर बन चुका होता। लेकिन अफसर कूड़े पर समाधान खोजने की बजाय कूड़े पर ही खेल खेलते रहे, और आज पूरा शहर इसकी कीमत बदबू, बीमारी और बेहाल ज़िंदगी के रूप में चुका रहा है।