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Banswara News: वागड़ क्षेत्र का जलियांवाला बाग है 'मानगढ़ धाम', जानें राजस्थान के इस अद्भुत इलाके का इतिहास
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, बांसवाड़ा
Published by: बांसवाड़ा ब्यूरो
Updated Mon, 17 Nov 2025 04:23 PM IST
सार
वागड़ इलाके का जलियांवाला बाग कहा जाने वाला मानगढ़ धाम अपने आप में इतिहास की कई कहानियों को समेटे हुए है। राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात और अन्य राज्यों से हजारों की संख्या में लोग यहां पहुंचते हैं। जानें ऐसा क्या है खास
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मानगढ़ की धूणी पर भजन-कीर्तन करते भक्त
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विस्तार
प्रदेश के वागड़ क्षेत्र में अनेक प्राचीन स्थल हैं, जो श्रद्धा, संस्कृति और पर्यटन की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। इन्हीं में से एक है मानगढ़ धाम, जिसे आदिवासी समाज अपनी आस्था और शौर्य का पावन प्रतीक मानता है। यह स्थान केवल धार्मिक भावना से ही नहीं, बल्कि आदिवासियों की अमर शहादत की स्मृतियों से भी भरा हुआ है।
राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात और अन्य राज्यों से हजारों की संख्या में गोविंद गुरु के अनुयायी यहां पहुंचकर शहीद भीलों को नमन करते हैं। सामाजिक सुधारक गोविंद गुरु ने इस क्षेत्र में कुरीतियों के खिलाफ सम्प सभा नामक संस्था बनाई थी और समाज को एकजुट करने का संदेश दिया था।
बांसवाड़ा मुख्यालय से लगभग 65 किलोमीटर दूर राजस्थान-गुजरात सीमा स्थित मानगढ़ धाम प्रेरणा, आस्था और इतिहास का सशक्त केंद्र है। राजस्थान सरकार ने धाम के विकास के लिए संग्रहालय और अन्य संरचनाएं भी निर्मित की हैं।
क्या है इतिहास?
17 नवंबर 1913 (मार्गशीर्ष पूर्णिमा) को मानगढ़ पहाड़ी पर घटित घटना को इतिहास में आदिवासी शहादत की सबसे बड़ी घटनाओं में गिना जाता है। गोविंद गुरु के नेतृत्व में आयोजित भक्त सम्मेलन और धूणी हवन के दौरान लगभग 2 से 3 हजार लोग पहाड़ी पर एकत्रित हुए थे।
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ब्रिटिश सरकार को आशंका हुई कि यहां किसी बड़े आंदोलन की तैयारी हो रही है। इसके बाद पहाड़ी को चारों ओर से घेर लिया गया और सुबह अचानक तोपों व राइफलों से हमला शुरू कर दिया गया। इस हमले में 1500 से अधिक आदिवासी भक्त शहीद हो गए, इसलिए इसे वागड़ का जलियांवाला बाग भी कहा जाता है।
गोविंद गुरु सहित लगभग 900 भीलों को गिरफ्तार किया गया। पहले उन्हें मृत्युदंड सुनाया गया
लेकिन बाद में इसे आजीवन कारावास में बदल दिया गया। यह घटना आदिवासी क्षेत्र ही नहीं, बल्कि पूरे देश में स्वतंत्रता आंदोलन को नई गति देने वाली साबित हुई।
आज भी धधकती है धूणी
हर वर्ष मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर मानगढ़ धाम में विशाल मेला लगता है, जिसमें राजस्थान, गुजरात और मध्यप्रदेश से भील-भक्त बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है, धूणी में हवन होता है और गोविंद गुरु की वाणी व उपदेशों का भावपूर्ण गायन किया जाता है।
राजस्थान सरकार ने पिछले वर्षों में मानगढ़ धाम को धार्मिक, सांस्कृतिक और पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए करोड़ों रुपये के कार्य करवाए हैं। जिनमें शहीद स्मारक, संग्रहालय, गोविंद गुरु की विशाल प्रतिमा, धूणी स्थल का सौंदर्यीकरण आदि शामिल हैं। इन सभी विकास कार्यों ने मानगढ़ धाम को न सिर्फ ऐतिहासिक, बल्कि राष्ट्रीय गौरव के केंद्र के रूप में स्थापित कर दिया है।
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बांसवाड़ा मुख्यालय से लगभग 65 किलोमीटर दूर राजस्थान-गुजरात सीमा स्थित मानगढ़ धाम प्रेरणा, आस्था और इतिहास का सशक्त केंद्र है। राजस्थान सरकार ने धाम के विकास के लिए संग्रहालय और अन्य संरचनाएं भी निर्मित की हैं।
क्या है इतिहास?
17 नवंबर 1913 (मार्गशीर्ष पूर्णिमा) को मानगढ़ पहाड़ी पर घटित घटना को इतिहास में आदिवासी शहादत की सबसे बड़ी घटनाओं में गिना जाता है। गोविंद गुरु के नेतृत्व में आयोजित भक्त सम्मेलन और धूणी हवन के दौरान लगभग 2 से 3 हजार लोग पहाड़ी पर एकत्रित हुए थे।
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ब्रिटिश सरकार को आशंका हुई कि यहां किसी बड़े आंदोलन की तैयारी हो रही है। इसके बाद पहाड़ी को चारों ओर से घेर लिया गया और सुबह अचानक तोपों व राइफलों से हमला शुरू कर दिया गया। इस हमले में 1500 से अधिक आदिवासी भक्त शहीद हो गए, इसलिए इसे वागड़ का जलियांवाला बाग भी कहा जाता है।
गोविंद गुरु सहित लगभग 900 भीलों को गिरफ्तार किया गया। पहले उन्हें मृत्युदंड सुनाया गया
लेकिन बाद में इसे आजीवन कारावास में बदल दिया गया। यह घटना आदिवासी क्षेत्र ही नहीं, बल्कि पूरे देश में स्वतंत्रता आंदोलन को नई गति देने वाली साबित हुई।
आज भी धधकती है धूणी
हर वर्ष मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर मानगढ़ धाम में विशाल मेला लगता है, जिसमें राजस्थान, गुजरात और मध्यप्रदेश से भील-भक्त बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है, धूणी में हवन होता है और गोविंद गुरु की वाणी व उपदेशों का भावपूर्ण गायन किया जाता है।
राजस्थान सरकार ने पिछले वर्षों में मानगढ़ धाम को धार्मिक, सांस्कृतिक और पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए करोड़ों रुपये के कार्य करवाए हैं। जिनमें शहीद स्मारक, संग्रहालय, गोविंद गुरु की विशाल प्रतिमा, धूणी स्थल का सौंदर्यीकरण आदि शामिल हैं। इन सभी विकास कार्यों ने मानगढ़ धाम को न सिर्फ ऐतिहासिक, बल्कि राष्ट्रीय गौरव के केंद्र के रूप में स्थापित कर दिया है।