Rajasthan News: भीलवाड़ा में सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल, मुसलमान बेटे ने किया हिंदू मां का अंतिम संस्कार
Rajasthan News: असगर अली खान ने बताया कि कोरोना काल में भी वे शांति देवी की देखभाल करते रहे और उनकी बीमारी का इलाज करवाते रहे। अब उन्होंने संकल्प लिया है कि शांति देवी की अस्थियां त्रिवेणी संगम या मातृकुंडिया में विसर्जित करेंगे।

विस्तार
सांप्रदायिक भेदभाव से परे इंसानियत की एक अनमोल तस्वीर सोमवार को भीलवाड़ा में देखने को मिली। गांधी नगर के जंगी चौक में रहने वाली 67 वर्षीय शांति देवी का निधन हो गया। परिवार के नाम पर कोई सदस्य जीवित नहीं बचा था, लेकिन उनके अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी उठाई एक मुस्लिम युवक असगर अली खान ने, जिन्हें शांति देवी अपने बेटे की तरह मानती थीं।

मां-बेटे जैसा रहा रिश्ता
शांति देवी की तीनों बेटियों और एक बेटे का पहले ही निधन हो चुका था। वे अकेले जीवन बिता रही थीं। मोहल्ले में रहने वाले असगर अली खान को वे अपने बेटे जैसा स्नेह देती थीं। असगर ने बताया कि बचपन से ही शांति देवी ने उन्हें मां की तरह प्यार दिया। वे रोज उनका हालचाल पूछतीं और खाने-पीने का ध्यान रखतीं। असगर भावुक होकर बोले कि आज उनके अंतिम संस्कार के समय मुझे लगा जैसे मेरी अपनी मां मुझसे बिछड़ गई।
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मुस्लिम युवकों ने दिया कंधा और निभाई हिंदू रीति-रिवाज
अंतिम संस्कार के समय असगर अली खान अकेले नहीं थे। उनके साथ मोहल्ले के मुस्लिम युवक अशफाक कुरैशी, शाकिर पठान, फिरोज कुरैशी, आबिद कुरैशी, अशफाक पठान, इनायत और जाबिद कुरैशी सहित कई साथी मौजूद थे। सभी ने मिलकर शांति देवी की अर्थी को कंधा दिया और हिंदू परंपरा के अनुसार उनका अंतिम संस्कार किया। इस मौके पर कई मुस्लिम महिलाएं भी मौजूद थीं, जो शांति देवी को अपनी मां जैसा मानती थीं। अंतिम विदाई के दौरान माहौल भावुक हो उठा और आंखों से आंसू छलक पड़े।
मां के ऋण को चुकाने का संकल्प
असगर अली खान ने बताया कि कोरोना काल में भी वे शांति देवी की देखभाल करते रहे और उनकी बीमारी का इलाज करवाते रहे। अब उन्होंने संकल्प लिया है कि शांति देवी की अस्थियां त्रिवेणी संगम या मातृकुंडिया में विसर्जित करेंगे। यह कदम न केवल उनके रिश्ते की गहराई को दर्शाता है, बल्कि यह भी साबित करता है कि इंसानियत और ममता किसी धर्म या जाति की मोहताज नहीं होती।
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