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Satish Poonia: हरियाणा में जीत के शिल्पकार रहे सतीश पूनिया का फिर तिरस्कार! सियासी भविष्य पर उठ रहे सवाल
सार
Satish Poonia News: हरियाणा में भाजपा के प्रभारी सतीश पूनिया का अब क्या होगा? क्या उन्हें हरियाणा की जीत पर पुरस्कार मिलेगा या तिरस्कार ही उनका नसीब बन चुका है? यह सवाल अब राजस्थान की सियासत में चर्चा का विषय बन गया है।
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ग्राफिक्स-
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
राजस्थान भाजपा के बड़े नेताओं में शुमार सतीश पूनिया हरियाणा में पार्टी की जीत के शिल्पकार रहे। इसके बाद भी वह फिर से हाशिये पर जाते दिख रहे हैं। चुनावों में जीत के बाद पूनिया तत्काल राजस्थान रवाना हो गए। नए मंत्रिमंडल गठन में भी उनकी भूमिका न के बराबर ही है। इससे उनके राजनीतिक भविष्य पर सवाल उठने लगे हैं। क्या उन्हें झुंझुनूं विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनावों में उतारा जाएगा? यह सवाल इस समय सियासी गलियारों में खूब चर्चा का विषय बना हुआ है।
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राजस्थान में जब अशोक गहलोत मुख्यमंत्री थे, तब 2019 में सतीश पूनिया को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। 2023 के विधानसभा चुनावों से ठीक सात महीने पहले पार्टी ने नेता बदला और सीपी जोशी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया। पूनिया को आमेर विधानसभा सीट से उतारा गया था, जहां उन्हें कांग्रेस के प्रशांत शर्मा ने 9,092 वोट से हराया। इसके बाद पूनिया को लोकसभा चुनावों के दौरान चर्चा उठी कि उन्हें अजमेर से टिकट दिया जा सकता है, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। उन्हें हरियाणा का प्रभारी बना दिया गया। वहां नतीजा बहुत अच्छा नहीं रहा था और कांग्रेस ने वापसी करते हुए पांच सीटों पर जीत हासिल की थी। लगा था कि पूनिया के साथ सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। उन्हें विधानसभा चुनावों में भी प्रभारी बनाया गया। अब की बार भाजपा की रणनीति काम कर गई और 90 सीटों वाले सदन में 48 सीटों के साथ बहुमत वाली सरकार बनने जा रही है।
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क्या हुआ हरियाणा की जीत के बाद
हरियाणा में जिस दिन नतीजे आए, उसी दिन शाम को पूनिया राजस्थान लौट आए। प्रदेश प्रभारी होने के बावजूद नई सरकार की गठन प्रक्रिया में उनकी राय को महत्व नहीं दिया जा रहा है। इन दो घटनाक्रमों की वजह से सियासी अटकलों का बाजार गरमा गया कि पूनिया का सियासी भविष्य क्या होगा? विधानसभा चुनावों के बाद उन्हें राजस्थान में कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिलने की उम्मीद तो कम ही बताई जा रही थी। हरियाणा की जीत से उम्मीद बंधी थी, लेकिन पूनिया ने खुद कहा कि "मेरी तो एक प्रतिशत भी चुनाव लड़ने की इच्छा नहीं है। पार्टी ने मुझे जो काम दे रखा है हरियाणा के प्रभारी के नाते, मैं उसको शिद्दत से पूरा करूं, यह मेरी प्राथमिकता है।" एक तरह से उन्होंने संभावनाओं से ही इनकार कर दिया। नतीजे आने के बाद एक-दो दिन पूनिया सुर्खियों में रहे और फिर खबरों से गायब हो गए।
क्या अंदरूनी राजनीति का हुए शिकार?
सतीश पूनिया के बारे में राजनीतिक पंडितों की राय है कि उन्हें पार्टी के भीतर की आंतरिक गुटबाजी का नुकसान हुआ है। डॉ. किरोड़ीलाल मीणा ने उन पर असहयोग का आरोप लगाया था। जब पूनिया समर्थकों को लग रहा था कि विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी का नेतृत्व उनके पास रहेगा, तब उन्हें तिरस्कार का सामना करना पड़ा। उन्हें उप-नेता प्रतिपक्ष बनाया गया था लेकिन तब उन्होंने कहा था कि 'यह कोई संवैधानिक पद नहीं है। इसके बाद भी उन्हें यह पद स्वीकार है।' जब हरियाणा के प्रभारी रहते हुए मिली जीत का श्रेय मिलने की बारी आई तो यह कहा जाने लगा है कि चुनाव तो केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने अपने नियंत्रण में लड़वाए हैं। पूनिया की सहभागिता महज सांकेतिक रह गई थी।