अरावली पर सियासी घमासान: ‘90 प्रतिशत खत्म होने का दावा भ्रामक’, अशोक गहलोत पर यह क्या बोल गए राजेंद्र राठौड़?
Aravalli Hills Controversy: अरावली को लेकर चल रही राजनीति के बीच भाजपा नेता राजेंद्र राठौड़ ने 90 प्रतिशत अरावली खत्म होने के दावे को तथ्यहीन बताया। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों, वैज्ञानिक मैपिंग और कड़े नियमों से अरावली पूरी तरह सुरक्षित है।
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राजस्थान में अरावली का मुद्दा अब सियासी रण के क्षेत्र में बदल चुका है। अरावली की परिभाषा को लेकर राजनीति आरोप-प्रत्यारोप और बयानों की बाढ़ आ गई है। अशोक गहलोत के सेव अरावली कैंपेन के जवाब में रविवार को बीजेपी के वरिष्ठ नेता राजेंद्र राठौड़ ने प्रेस कांफ्रेंस की। उन्होंने अरावली को लेकर अशोक गहलोत द्वारा किए जा रहे दावों को पूरी तरह असत्य और भ्रामक बताया है। राठौड़ ने कहा कि 90 प्रतिशत अरावली समाप्त हो जाएगी जैसी बातें तथ्यहीन हैं और जनता को गुमराह करने का प्रयास मात्र हैं।
‘गहलोत के सेव अरावली कैंपेन को कांग्रेस में ही समर्थन नहीं’
राठौड़ ने कहा कि 18 दिसंबर 2025 को पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा “Save Aravalli” के नाम से सोशल मीडिया पर शुरू किए गए अभियान में स्वयं कांग्रेस के शीर्ष नेताओं का समर्थन नजर नहीं आया। न कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, न राहुल गांधी, न मल्लिकार्जुन खरगे और न ही सचिन पायलट ने अपनी प्रोफाइल पिक्चर बदली। इससे स्पष्ट है कि यह अभियान पर्यावरण संरक्षण से अधिक राजनीतिक दिखावा है। उन्होंने बताया कि वास्तविक स्थिति यह है कि अरावली क्षेत्र का लगभग 25 प्रतिशत हिस्सा हिरसा अभ्यारण्य, राष्ट्रीय उद्यान और आरक्षित वनों में शामिल है, जहां खनन पूरी तरह प्रतिबंधित है। इसके अलावा, पूरे अरावली क्षेत्र में से केवल लगभग 2.56 प्रतिशत क्षेत्र ही सीमित, नियंत्रित और कड़े नियमों के तहत खनन के दायरे में आता है।
‘सस्टेनेबल माइनिंग मैनेजमेंट प्लान के बाद ही खनन हो सकता है’
राजेंद्र राठौड़ ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि जब तक इंडियन काउंसिल ऑफ फॉरेस्टरी रिसर्च एंड एजुकेशन (ICFRE) द्वारा अरावली क्षेत्र की विस्तृत वैज्ञानिक मैपिंग और सस्टेनेबल माइनिंग मैनेजमेंट प्लान तैयार नहीं हो जाता, तब तक कोई नया खनन पट्टा जारी नहीं किया जा सकता। ऐसे में अरावली के नष्ट होने की बात करना पूरी तरह निराधार है।
उन्होंने कहा कि 100 मीटर के मानदंड को लेकर भ्रांतियां फैलाई जा रही हैं। राठौड़ ने कहा कि यह मानदंड केवल ऊंचाई तक सीमित नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्वीकृत परिभाषा के अनुसार 100 मीटर या उससे ऊंची पहाड़ियों, उनकी ढलानों और दो पहाड़ियों के बीच 500 मीटर के क्षेत्र में आने वाली सभी भू-आकृतियां खनन पट्टे से पूरी तरह बाहर रखी गई हैं, चाहे उनकी ऊंचाई कुछ भी हो। उन्होंने इसे पहले से अधिक सख्त और वैज्ञानिक व्यवस्था बताया। उन्होंने सर्वे ऑफ इंडिया के विश्लेषण का हवाला देते हुए बताया कि कमेटी की परिभाषा लागू होने पर अरावली क्षेत्र में खनन बढ़ने के बजाय और अधिक सख्ती आएगी।
राजस्थान के राजसमंद में 98.9 प्रतिशत, उदयपुर में 99.89 प्रतिशत, गुजरात के साबरकांठा में 89.4 प्रतिशत और हरियाणा के महेंद्रगढ़ में 75.07 प्रतिशत पहाड़ी क्षेत्र खनन से प्रतिबंधित रहेगा। इसके अलावा राष्ट्रीय उद्यान, इको-सेंसिटिव जोन, रिजर्व और प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट तथा वेटलैंड्स में खनन पूरी तरह बंद है।
राठौड़ ने बताया कि वर्तमान में अरावली क्षेत्र के 37 जिलों में कुल भौगोलिक क्षेत्र का केवल 0.19 प्रतिशत (277.89 वर्ग किलोमीटर) हिस्सा ही कानूनी खनन पट्टों के अंतर्गत है, जिसमें लगभग 90 प्रतिशत खनन राजस्थान, 9 प्रतिशत गुजरात और 1 प्रतिशत हरियाणा में सीमित है। इसलिए 90 प्रतिशत अरावली हिल्स के खत्म होने की बात कानूनी और भौगोलिक रूप से पूरी तरह असत्य है।
उन्होंने केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव के बयान का भी उल्लेख किया, जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया है कि सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से अरावली पर्वतमाला पर कोई आंच नहीं आएगी और केंद्र सरकार अरावली की सुरक्षा को लेकर पूरी तरह प्रतिबद्ध है। राठौड़ ने कहा कि अरावली न पहले खतरे में थी, न आज है और न आगे होगी। न्यायालय के आदेश, सरकारी रिकॉर्ड और वैज्ञानिक तथ्य इस बात की पुष्टि करते हैं कि अरावली सुरक्षित है और रहेगी।
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‘अरावली को माफियाओं को सौंपना चाहती है भाजपा’
अरावली विवाद पर भाजपा के आरोपों को लेकर कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी पलटवार किया है। उन्होंने अरावली मुद्दे पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव व राजेंद्र राठौड़ के बयानों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वे भाजपा सरकार की खनन माफिया से मिलीभगत और गलत नीतियों पर पर्दा डालने के लिए अनर्गल आरोप लगा रहे हैं, जबकि सच्चाई सरकारी दस्तावेजों में दर्ज है।
2010 बनाम 2024: 100 मीटर परिभाषा का सच क्या है?
गहलोत ने कहा कि यह सत्य है कि 2003 में तत्कालीन राज्य सरकार को विशेषज्ञ समिति (एक्सपर्ट कमिटी) ने आजीविका और रोजगार के दृष्टिकोण से '100 मीटर' की परिभाषा की सिफारिश की थी, जिसे राज्य सरकार ने एफिडेविट के माध्यम से 16 फरवरी 2010 को माननीय सुप्रीम कोर्ट के सामने रखा। लेकिन माननीय सुप्रीम कोर्ट ने इसे महज तीन दिन बाद 19 फरवरी 2010 को ही खारिज कर दिया था। हमारी सरकार ने न्यायपालिका के आदेश का पूर्ण सम्मान करते हुए इसे स्वीकार किया और फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (FSI) से मैपिंग करवाई।
हमारी कांग्रेस सरकार ने पहली बार अरावली में अवैध खनन पकड़ने के लिए गंभीर प्रयास करते हुए 'रिमोट सेंसिंग' (Satellite Imagery) का उपयोग करने के निर्देश दिए। 15 जिलों में सर्वे के लिए 7 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया। राज्य सरकार ने अवैध खनन को रोकने की सीधी जिम्मेदारी SP (पुलिस अधीक्षक) और जिला कलेक्टर को सौंपी। खान विभाग के साथ पुलिस को भी कार्रवाई के अधिकार दिए गए, जिससे अवैध खनन पर लगाम लगी। सवाल यह है कि जो परिभाषा सुप्रीम कोर्ट में 14 साल पहले 2010 में ही 'खारिज' हो चुकी थी, उसी परिभाषा का 2024 में राजस्थान की मौजूदा भाजपा सरकार ने समर्थन करते हुए केन्द्र सरकार की समिति से सिफारिश क्यों की? क्या यह किसी का दबाव था या इसके पीछे कोई बड़ा खेल है?
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‘कांग्रेस राज में खनन माफियाओं पर रखी सख्ती’
गहलोत ने यह भी दावा किया कि कांग्रेस के राज में खनन माफियाओं पर सख्ती रखी गई। उन्होंने कहा कि हमारी कांग्रेस सरकार (2019-2024) ने अवैध खनन कर्ताओं से 464 करोड़ रुपये का जुर्माना वसूला, जो कि पिछली भाजपा सरकार (2013-2018) द्वारा वसूले गए 200 करोड़ रुपये से दोगुने से भी अधिक है।
गहलोत ने कहा कि हमारी कांग्रेस सरकार ने पिछले 5 वर्षों में 4,206 FIR दर्ज कर माफियाओं की कमर तोड़ी थी। वहीं, वर्तमान सरकार के पहले साल के आंकड़े बताते हैं कि कार्रवाई की गति धीमी पड़ गई है, जिससे माफियाओं के हौसले बुलंद हो रहे हैं। कांग्रेस सरकार ने पिछले 5 वर्षों में 4,206 FIR दर्ज कर माफिया की कमर तोड़ी जिनमें पहले तीन वर्षों में ही (2019-20 में 930, 2020-21 में 760 और 2021-22 में 1,305) FIR दर्ज कर खनन माफियाओं को कानून के कठघरे में खड़ा किया। वहीं, मौजूदा भाजपा सरकार (2024-25) पहले साल में केवल 508 FIR दर्ज कर पाई है। FIR की संख्याओं में यह गिरावट दिखाती है कि भाजपा सरकार खनन माफिया के प्रति नरम है, जिससे खनन माफिया के हौसले फिर से बुलंद हो रहे हैं।
‘राजस्थान को रेगिस्तान बनने से बचाएं’
गहलोत ने कहा कि अरावली केवल पहाड़ नहीं, बल्कि राजस्थान की जीवनरेखा है जो थार मरुस्थल को बढ़ने से रोकती है। केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव जी स्वयं इसी प्रदेश से आते हैं, उनसे अपेक्षा थी कि वे अरावली के संरक्षक बनेंगे, न कि विनाशक। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार खेजड़ली में हमारे पूर्वजों ने श्रीमती अमृता देवी के नेतृत्व में पेड़ों एवं प्रकृति के लिए बलिदान दिया था एवं उसी भावना के साथ हमें अरावली को बचाना होगा।