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Janmashtami: पांच हजार साल पुराने विग्रह, क्या सच में हैं श्री कृष्ण के वास्तविक स्वरूप? जानें क्या है रहस्य

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, जयपुर Published by: सौरभ भट्ट Updated Sat, 16 Aug 2025 08:03 AM IST
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सार

पौराणिक मान्यता के अनुसार, ये तीनों विग्रह मिलकर भगवान कृष्ण का संपूर्ण स्वरूप दर्शाते हैं। वज्रनाभ ने अपनी दादी के बताए अनुसार इन्हें बनवाया था, जिनमें चरण, वक्षस्थल-बाहु और मुख-मंडल क्रमशः तीन अलग-अलग विग्रहों में भगवान के समान हैं। इन विग्रहों का इतिहास 5000 साल पुराना बताया जाता है।

This is how Krishna truly looked - three idols over 5000 years old are said to perfectly resemble his form
मदन मोहन जी, गोपीनाथ जी और गोविंद देव जी - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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आज जन्माष्टमी है। राजस्थान में जयपुर और करौली में भगवान कृष्ण के कई स्वरूपों की पूजा होती है, लेकिन सबसे ज्यादा महत्व भगवान कृष्ण के तीन विग्रहों का है, जिन्हें लेकर एक पौराणिक मान्यता है। यह विग्रह जयपुर और करौली में प्रतिष्टित हैं। इसमें जयपुर के गोविंद देव जी, गोपीनाथ जी और करौली के मदन मोहन जी के विग्रह शामिल हैं। पौराणिक मान्यता है कि ये तीन विग्रह मिलकर साक्षात भगवान श्री कृष्ण का स्वरूप बनाते हैं। ऐसा माना जाता है कि एक दिन में सूर्य उदय से लेकर सूर्यास्त तक इन तीनों विग्रह का दर्शन करने से भगवान कृष्ण के दर्शन होते हैं और हर मनोकामना पूर्ण होती है।
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हालांकि जयपुर के दोनों विग्रहों वृंदावन से यहां लाया गया था। ये जयपुर में बनकर तैयार नहीं हुए। बताया जाता है कि करौली में विराजमान मदन मोहन के विग्रह के चरण भगवान श्रीकृष्ण से मिलते हैं। जयपुर के गोपीनाथ जी विग्रह के वक्षस्थल और बाहु भगवान के स्वरूप से मिलते हैं और गोविन्द देवजी का विग्रह हूबहू भगवान श्रीकृष्ण के मुख मण्डल और नयन से मेल खाता है। वास्तव में भगवान कृष्ण का स्वरूप और रंग ठीक इसी प्रकार का था। राजधानी जयपुर में भगवान श्री कृष्ण के कई प्रमुख विग्रह हैं। जिनमें गोविंद देव जी, गोपीनाथ जी, राधा दामोदर जी, कृष्ण बलराम, आनंद कृष्ण बिहारी और ब्रिज निधि जैसे मंदिरों शामिल हैं।
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ये हैं तीन विग्रहों की कहानी
गोपीनाथ जी मंदिर के महंत सिदधार्थ गोस्वामी ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने ये तीनों विग्रह बनवाए थे। बताया जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण की बहू और वज्रनाभ की दादी ने भगवान श्रीकृष्ण को देखा था। दादी के बताए अनुसार वज्रनाभ ने उत्तम कारीगरों से विग्रह तैयार करवाया। शुरुआत में जो विग्रह तैयार हुआ, उसे देखकर वज्रनाभ की दादी ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण के पांव और चरण तो उनके जैसे ही हैं, लेकिन अन्य बनावट भगवान से नहीं मिलती। फिर दूसरा विग्रह बनवाया गया, जिसे देखकर दादी ने कहा कि इसके वक्षस्थल और बाहु भगवान स्वरुप हैं, लेकिन बाकी हिस्सा मेल नहीं खाता। फिर तीसरा विग्रह बनवाया गया। उसे देखकर वज्रनाभ की दादी ने घूंघट कर लिया और कहा कि भगवान श्रीकृष्ण का नयनाभिराम मुखारबिन्द ठीक भगवान के समान है। भगवान श्रीकृष्ण के तीनों विग्रह के निर्माण का इतिहास है, वैसे ही भगवान के विग्रहों को आतताइयों से सुरक्षित बचाए रखने और इन्हें दोबारा विराजित करने का इतिहास खास है। गोविन्द देवजी, गोपीनाथ जी और मदन मोहन जी का विग्रह करीब 5000 साल पुराना बताया जाता है। 10वीं शताब्दी में मुस्लिम शासक महमूद गजनवी के आक्रमण बढ़े, तो भगवान श्रीकृष्ण के इन विग्रहों को धरती में छुपाकर उस जगह पर संकेत चिह्न अंकित कर दिए गए। कई वर्षाें तक मुस्लिम शासन रहने के कारण पुजारी और भक्त इन विग्रह के बारे में भूल गए। 16वीं सदी में चैतन्य महाप्रभु ने अपने दो शिष्यों रूप गोस्वामी और सनातन गोस्वामी को वृन्दावन भेजा। उन्होंने भूमि में छुपे भगवान के विग्रह को ढूंढकर एक कुटी में प्राण-प्रतिष्ठित किया। आमेर के राजा मानसिंह ने इन मूर्तियों की पूजा-अर्चना की। वहीं इतिहासकार देवेंद्र कुमार भगत ने बताया कि 1590 में वृन्दावन में लाल पत्थरों का एक सप्तखण्डी भव्य मंदिर बनाकर भगवान के विग्रह को यहां विराजित किया। बाद में उड़ीसा से राधारानी का विग्रह श्री गोविन्द देवजी के साथ प्रतिष्ठित किया गया। लेकिन मुगल शासक औरंगजेब ने ब्रजभूमि के सभी मंदिरों और मूर्तियों को तोड़ने का हुक्म दिया। तो पुजारी शिवराम गोस्वामी और भक्त गोविन्द देवजी, राधारानी और अन्य विग्रहों को लेकर जंगल में जा छिपे। बाद में आमेर के मिर्जा राजा जयसिंह के पुत्र रामसिंह के संरक्षण में ये विग्रह भरतपुर के कामां में लाए गए। यहां राजा मानसिंह ने आमेर घाटी (कनक वृंदावन) में गोविन्द देवजी के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा किया।

नाथद्वारा मंदिर-गोवर्धन पर्वत धारण किए हुए

(मंदिर श्री नाथजी)
राजस्थान के उदयपुर से करीब 48 किलोमीटर दूर नाथद्वारा शहर में  श्रीनाथजी मंदिर मंदिर है। इसे वैष्णव संप्रदाय का सबसे प्रमुख तीर्थस्थल माना जाता है। श्रीनाथजी कृष्ण के एक रूप का प्रतीक हैं, जब उन्होंने एक भुजा उठाकर गोवर्धन पर्वत उठाया था। यह प्रतिमा एक काले संगमरमर के आकार की है, जिसमें भगवान बायाँ हाथ उठाए और दायां हाथ मुट्ठी में बाँधकर कमर पर रखे हुए हैं, और उनके होठों के नीचे एक बड़ा हीरा जड़ा हुआ है। विग्रह के साथ  दो गाय, एक सिंह, एक सांप, दो मोर और एक तोते की आकृतियां उत्कीर्ण हैं और उसके पास तीन ऋषि स्थापित हैं।

जगत शिरोमणी- मीरा मंदिर

(जगत शिरोमणी मीरा मंदिर-आमेर)

जयपुर के आमेर में स्थित है जगत शिरोमणि मंदिर, जिससे मीरा बाई मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर भगवान कृष्ण और मीरा बाई को समर्पित है। यह जयपुर का सबसे प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण साल 1599 से 1608 ईस्वी के बीच हुआ था।

 
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