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Sharadiya Navratri: सुंधामाता मंदिर में सप्तमी पर होगा नवचंडी यज्ञ, अष्टमी की बजाय विशेष पूजा की परंपरा

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, जालौर Published by: जालौर ब्यूरो Updated Sat, 27 Sep 2025 05:12 PM IST
सार

Sundhamata Temple: पौराणिक मान्यता के अनुसार, सुंधामाता को अघटेश्वरी चामुंडा नाम से जाना जाता है। यहां देवी की पूजा सिर के रूप में होती है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि सच्चे मन से आने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं माता पूरी करती हैं।

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Shardiya Navratri 2025: Navchandi Yagya on Saptami at Sundhamata Temple Know About Tradition
सुंधामाता मंदिर - फोटो : Sundhamata Temple
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विस्तार
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जालौर जिले की जसवंतपुरा तहसील क्षेत्र में स्थित सुंधापर्वत की ऊंची पहाड़ियों पर विराजमान सुंधामाता मंदिर आस्था का प्रमुख केंद्र है। नवरात्रि के अवसर पर यहां लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं। इस मंदिर की विशिष्टता यह है कि यहां नवचंडी यज्ञ अष्टमी के बजाय सप्तमी को संपन्न होता है।

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अघटेश्वरी चामुंडा माता की पूजा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, सुंधामाता को अघटेश्वरी चामुंडा नाम से जाना जाता है। यहां देवी की पूजा सिर के रूप में होती है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि सच्चे मन से आने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं माता पूरी करती हैं। खास मान्यता यह भी है कि तोतले बच्चों को माता का प्रसाद खिलाने से उनकी वाणी सुधर जाती है।
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1319 में हुई थी मंदिर की स्थापना
इतिहासकारों के अनुसार, मंदिर की स्थापना जालौर के शासक चाचिगदेव ने संवत् 1319 में अक्षय तृतीया के दिन की थी। प्रारंभिक काल में यहां शराब और बलि की परंपरा थी, लेकिन 1976 में मालवाड़ा के ठाकुर दुर्जनसिंह ने इन परंपराओं को समाप्त कर सात्विक पूजा की शुरुआत की। इसके बाद मंदिर ट्रस्ट ने धर्मशाला, भोजनशाला, पेयजल और अन्य यात्री सुविधाएं उपलब्ध कराईं।

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ऊंचाई पर बसा धाम और रोपवे की सुविधा
समुद्र तल से 1220 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था और रोमांच दोनों का अनुभव कराता है। 2007 से यहां रोपवे की सुविधा उपलब्ध है, जो तलहटी से लगभग 800 मीटर ऊंचाई तक श्रद्धालुओं को पहुंचाती है। रोपवे में करीब दो दर्जन ट्रॉलियां संचालित होती हैं।
 
नवरात्रि पर विशेष सजावट और आयोजन
मंदिर ट्रस्ट अध्यक्ष ईश्वरसिंह देवल ने बताया कि नवरात्रि को लेकर मंदिर को रंग-बिरंगी रोशनी और फूलों से सजाया गया है। साथ ही यात्रियों के लिए सभी आवश्यक व्यवस्थाएं की गई हैं। नवरात्रि और दीपावली से लेकर लाभ पंचमी तक मंदिर परिसर में विशाल मेले का आयोजन होता है, जिसमें राजस्थान सहित गुजरात, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों से बड़ी संख्या में भक्त पहुंचते हैं।

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