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तुमसे है उजाला: जैविक खेती और महिला किसानों को सशक्त बनाने के लिए कदम बढ़ा रहीं प्रियंका सिंह
लाइफस्टाइल डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: श्रुति गौड़
Updated Sun, 04 May 2025 12:18 PM IST
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सार
प्रियंका सिंह देहरादून की कृषि अधिकारी हैं। वह जैविक खेती और महिला किसानों को सशक्त बनाने के लिए काम कर रही हैं। प्रियंका कहती हैं, “अगर सही मार्गदर्शन और स्थिर नीतियां हों तो कृषि में न केवल आर्थिक बदलाव संभव है, बल्कि समाज की स्थिति को भी बेहतर बनाया जा सकता है।”

प्रियंका सिंह
- फोटो : अमर उजाला

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विस्तार
उत्तराखंड की हरी-भरी वादियों में बसे खूबसूरत शहर रानीखेत में जन्मीं और राज्य की राजधानी देहरादून को अपनी कर्मभूमि बनाने वाली प्रियंका सिंह आज किसानों के लिए प्रेरणास्रोत बन चुकी हैं। वह उत्तराखंड की एक समर्पित कृषि अधिकारी हैं, जो अपने अभिनव विचारों और मजबूत नेतृत्व के दम पर न केवल किसानों की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ कर रही हैं, बल्कि महिला किसानों को भी सशक्त भी बना रही हैं।
प्रकृति के बीच बीता बचपन
प्रियंका का बचपन एक ऐसे माहौल में बीता, जहां प्रकृति और पौधों से उनका गहरा जुड़ाव था। उनके पिता उमाशंकर सिंह बागवानी विभाग (हॉर्टीकल्चर) में डिप्टी डायरेक्टर थे। वह हमेशा घर में पर्यावरण संरक्षण, पौधों की देखभाल और प्राकृतिक संतुलन की बातें करते थे। प्रियंका बताती हैं, “बचपन से ही मुझे पेड़-पौधों से प्यार करना, पर्यावरण को समझना और उसकी रक्षा करना सिखाया गया।” प्रियंका ने बचपन से ही ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को खेतों में कड़ी मेहनत करते देखा और महसूस किया कि उन्हें नई कृषि तकनीकों के बारे में कोई जानकारी नहीं है। इसी के साथ उनके मन में बीजारोपण हुआ कि उन्हें इसी दिशा में काम करना है।
प्रियंका ने प्रांतीय सिविल सेवा (पीसीएस) परीक्षा पास की और सरकार की प्रशासनिक सेवा में शामिल हो गईं। इसके बाद उन्होंने कृषि को अधिक टिकाऊ, समावेशी और लाभकारी बनाने की दिशा में काम करना शुरू किया। उन्होंने अपने कार्यों का केंद्र बनाया जैविक खेती, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन और फसल विविधीकरण को।
प्रियंका ने जैविक खेती को प्रोत्साहित करने और प्राकृतिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों का उपयोग बढ़ाने के लिए किसानों को प्रशिक्षित किया। इससे न केवल मृदा का स्वास्थ्य बेहतर हुआ, बल्कि खाद्य सुरक्षा भी सुनिश्चित हुई। उन्होंने जैविक उत्पादों के विपणन को लेकर भी किसानों को जागरूक किया, ताकि वे अपने उत्पादों को बेहतर मूल्य पर बेच सकें। इस पहल से किसानों की आय में वृद्धि हुई और वे आत्मनिर्भर बनने की दिशा में अग्रसर हुए।
प्रियंका ने फसल विविधीकरण को किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीति के रूप में प्रस्तुत किया। पारंपरिक रूप से उत्तराखंड के किसान मुख्य रूप से गेहूं और चावल जैसी एक ही फसल पर निर्भर रहते थे। प्रियंका ने किसानों को विभिन्न प्रकार की फसलें उगाने के लिए प्रेरित किया, जैसे कि दलहन, तिलहन, औषधीय पौधे और फल, ताकि वे मौसम की अनिश्चितताओं से बच सकें।
लगातार उठा रहीं कदम
प्रियंका ने महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कई कदम उठाए। उन्होंने महिलाओं को कृषि के विभिन्न पहलुओं में प्रशिक्षित किया और उन्हें नेतृत्व में आने का मौका दिया। इससे महिला किसानों को कृषि में अपने योगदान को पहचानने और उनकी क्षमता को पूरी तरह से उपयोग करने का अवसर मिला। प्रियंका के नेतृत्व में कई महिला किसान, सहकारी समितियों में शामिल हुईं, जिससे उनका आर्थिक और सामाजिक स्तर बढ़ा।
प्रियंका ने टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं बनाईं, जिनसे न केवल किसानों की आय बढ़ी, बल्कि पर्यावरण की भी रक्षा हुई। उन्होंने जल संचयन, जलवायु अनुकूलन और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए जागरूकता अभियान चलाए। इससे किसानों को प्राकृतिक संसाधनों का संतुलित उपयोग करने की दिशा में मदद मिली। प्रियंका कहती हैं, “अगर सही मार्गदर्शन और स्थिर नीतियां हों तो कृषि में न केवल आर्थिक बदलाव संभव है, बल्कि समाज की स्थिति को भी बेहतर बनाया जा सकता है।”
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प्रकृति के बीच बीता बचपन
प्रियंका का बचपन एक ऐसे माहौल में बीता, जहां प्रकृति और पौधों से उनका गहरा जुड़ाव था। उनके पिता उमाशंकर सिंह बागवानी विभाग (हॉर्टीकल्चर) में डिप्टी डायरेक्टर थे। वह हमेशा घर में पर्यावरण संरक्षण, पौधों की देखभाल और प्राकृतिक संतुलन की बातें करते थे। प्रियंका बताती हैं, “बचपन से ही मुझे पेड़-पौधों से प्यार करना, पर्यावरण को समझना और उसकी रक्षा करना सिखाया गया।” प्रियंका ने बचपन से ही ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को खेतों में कड़ी मेहनत करते देखा और महसूस किया कि उन्हें नई कृषि तकनीकों के बारे में कोई जानकारी नहीं है। इसी के साथ उनके मन में बीजारोपण हुआ कि उन्हें इसी दिशा में काम करना है।
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प्रियंका ने प्रांतीय सिविल सेवा (पीसीएस) परीक्षा पास की और सरकार की प्रशासनिक सेवा में शामिल हो गईं। इसके बाद उन्होंने कृषि को अधिक टिकाऊ, समावेशी और लाभकारी बनाने की दिशा में काम करना शुरू किया। उन्होंने अपने कार्यों का केंद्र बनाया जैविक खेती, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन और फसल विविधीकरण को।
प्रियंका ने जैविक खेती को प्रोत्साहित करने और प्राकृतिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों का उपयोग बढ़ाने के लिए किसानों को प्रशिक्षित किया। इससे न केवल मृदा का स्वास्थ्य बेहतर हुआ, बल्कि खाद्य सुरक्षा भी सुनिश्चित हुई। उन्होंने जैविक उत्पादों के विपणन को लेकर भी किसानों को जागरूक किया, ताकि वे अपने उत्पादों को बेहतर मूल्य पर बेच सकें। इस पहल से किसानों की आय में वृद्धि हुई और वे आत्मनिर्भर बनने की दिशा में अग्रसर हुए।
प्रियंका ने फसल विविधीकरण को किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीति के रूप में प्रस्तुत किया। पारंपरिक रूप से उत्तराखंड के किसान मुख्य रूप से गेहूं और चावल जैसी एक ही फसल पर निर्भर रहते थे। प्रियंका ने किसानों को विभिन्न प्रकार की फसलें उगाने के लिए प्रेरित किया, जैसे कि दलहन, तिलहन, औषधीय पौधे और फल, ताकि वे मौसम की अनिश्चितताओं से बच सकें।
लगातार उठा रहीं कदम
प्रियंका ने महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कई कदम उठाए। उन्होंने महिलाओं को कृषि के विभिन्न पहलुओं में प्रशिक्षित किया और उन्हें नेतृत्व में आने का मौका दिया। इससे महिला किसानों को कृषि में अपने योगदान को पहचानने और उनकी क्षमता को पूरी तरह से उपयोग करने का अवसर मिला। प्रियंका के नेतृत्व में कई महिला किसान, सहकारी समितियों में शामिल हुईं, जिससे उनका आर्थिक और सामाजिक स्तर बढ़ा।
प्रियंका ने टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं बनाईं, जिनसे न केवल किसानों की आय बढ़ी, बल्कि पर्यावरण की भी रक्षा हुई। उन्होंने जल संचयन, जलवायु अनुकूलन और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए जागरूकता अभियान चलाए। इससे किसानों को प्राकृतिक संसाधनों का संतुलित उपयोग करने की दिशा में मदद मिली। प्रियंका कहती हैं, “अगर सही मार्गदर्शन और स्थिर नीतियां हों तो कृषि में न केवल आर्थिक बदलाव संभव है, बल्कि समाज की स्थिति को भी बेहतर बनाया जा सकता है।”
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