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Cloudburst: हिमाचल और उत्तराखंड में डेढ़ गुना बढ़ गईं बादल फटने की घटनाएं

रोशन ठाकुर, संवाद न्यूज एजेंसी, कुल्लू Published by: Krishan Singh Updated Sat, 09 Jul 2022 03:20 PM IST
सार

पिछले एक दशक में हिमाचल और उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाएं डेढ़ गुना बढ़ गई हैं। जलवायु परिवर्तन में बदलाव के कारण आने वाले वर्षों में बादल फटने की आपदाएं अधिक बढ़ने की संभावना है।

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Cloudburst incidents increased by one and a half times in Himachal, Uttarakhand
बादल फटने के बाद का मंजर। - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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बादल फटने की घटना के लिए हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड सबसे अधिक संवेदनशील हैं। यहां साल दर साल बादल फटने की घटनाएं बढ़ रही हैं। बरसात के मौसम में दोनों राज्यों में बादल फटना आम बात होने लगी है। पिछले एक दशक में हिमाचल और उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाएं डेढ़ गुना बढ़ गई हैं। जलवायु परिवर्तन में बदलाव के कारण आने वाले वर्षों में बादल फटने की आपदाएं अधिक बढ़ने की संभावना है। बादल फटने की घटना तब होती है, जब तापमान बढ़ने से भारी मात्रा में नमी वाले बादल एक जगह इकट्ठा हो जाते हैं। ऐसा होने से मौजूद पानी की बूंदें आपस में मिल जाती हैं और बूंदों का भार इतना ज्यादा हो जाता है कि बादल की डेंसिटी (घनत्व) बढ़ जाती है।

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इसी कारण अचानक तेज बारिश होने से पहाड़ों पर बादल फटते हैं। हिमाचल और उत्तराखंड की पहाड़ियों में क्षेत्रीय जलचक्र में बदलाव आना भी बादल फटने का कारण है। बादल पानी के रूप में परिवर्तित होकर तेजी से बरसना शुरू हो जाते हैं। जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान अल्मोड़ा के पर्यावरणीय आकलन एवं जलवायु परिवर्तन के विभाग अध्यक्ष वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. जेसी कुनियाल ने कहा कि जलवायु परिवर्तन से हिमालय क्षेत्रों में बादल फटने की तीव्रता बढ़ रही है। जलवायु परिवर्तन में आ रहे बदलाव के पीछे जंगलों में आग लगना, पेड़ों को कटान, कूड़े-कचरे को खुले में जलाना, पर्यटन स्थलों में अधिक संख्या में वाहनों का आना तथा जंगल में अवैध निर्माण मुख्य कारण है। 
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जान-माल के नुकसान से कैसे बचें
बादल फटने के दौरान जान-माल का भारी नुकसान होता है। यह नुकसान कम करने के लिए मौसम विज्ञान केंद्र कई तरह के सुझाव देता है। बारिश के मौसम में ढलानों पर नहीं रहना चाहिए। बरसात के दिनों में नदी और नालों के किनारों में नहीं रहना चाहिए। पौधरोपण कर जलवायु परिवर्तन को संतुलित किया जा सकता है। 

घाटी में लगाए जाने चाहिए ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन 
हिमाचल के केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला में पर्यावरण विज्ञान विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अनुराग ने कहा कि कुल्लू घाटी सहित हिमालय क्षेत्र जो बादल फटने के लिए अति संवेदनशील हैं, उन जगहों पर ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन स्थापित किए जाने चाहिए। इसकी मदद से रोजाना मौसम की जानकारी मिलेगी। भारी बारिश के साथ ओलावृष्टि की संभावनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सकेगा और समय रहते किसी भी घटना से होने वाले जानमाल को रोका जा सके। 

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