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Himachal: हाईकोर्ट ने कहा- आवेदन के समय करना होगा आरक्षण का दावा, बाद में नहीं मिलेगा लाभ

संवाद न्यूज एजेंसी, शिमला। Published by: Krishan Singh Updated Fri, 19 Dec 2025 10:18 AM IST
सार

प्रदेश हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि कोई उम्मीदवार आवेदन करते समय आरक्षण का लाभ नहीं चुनता है, तो चयन प्रक्रिया शुरू होने या असफल होने के बाद वह पिछड़ी श्रेणी के आधार पर नियुक्ति का दावा नहीं कर सकता।

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High Court said that the claim for reservation must be made at the time of application; the benefit will not
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि कोई उम्मीदवार आवेदन करते समय आरक्षण का लाभ नहीं चुनता है, तो चयन प्रक्रिया शुरू होने या असफल होने के बाद वह पिछड़ी श्रेणी के आधार पर नियुक्ति का दावा नहीं कर सकता। न्यायाधीश रंजन शर्मा की अदालत ने पाया कि विज्ञापन में ओबीसी के लिए आरक्षण का प्रावधान होने के बावजूद, याचिकाकर्ता ने सामान्य श्रेणी के उम्मीदवार के रूप में आवेदन किया था। आवेदन के साथ कोई ओबीसी प्रमाणपत्र भी संलग्न नहीं किया गया था। एक बार जब याचिकाकर्ता ने स्वयं ओबीसी उम्मीदवार के रूप में आरक्षण का लाभ नहीं लेने का विकल्प चुना और सामान्य श्रेणी में भाग लेकर असफल हो गई, तो उसके पास वापस मुड़ने और ओबीसी पद पर नियुक्ति का दावा करने का न तो कोई अधिकार है और न ही कोई आधार।

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बता दें कि याचिकाकर्ता बलजिंदर कौर ने अदालत में प्रतिवादी की नियुक्ति को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता का तर्क था कि वह अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणी से संबंध रखती है, इसलिए 2010 के विज्ञापन के अनुसार उसे ओबीसी आरक्षित पद पर नियुक्ति दी जानी चाहिए थी। कोर्ट ने पाया कि जिस उम्मीदवार को ओबीसी श्रेणी के तहत नियुक्त किया गया था, उसके पास आवश्यक योग्यता और वैध प्रमाणपत्र दोनों थे, इसलिए उनकी नियुक्ति पूरी तरह वैध है। उम्मीदवारों को अपनी श्रेणी का चुनाव और संबंधित दस्तावेज आवेदन जमा करते समय ही प्रस्तुत करने होंगे।

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पीएमजीएसवाई में संकरे पुल को हटा बनेगा डबल लेन पुल
प्रदेश में यातायात व्यवस्था को सुदृढ़ करने और संकरे पुल बॉटलनेक की समस्या को समाप्त करने के लिए सरकार ने निर्माण कार्यों में तेजी लाई है। हाईकोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने अधिशासी अभियंता की ओर से जारी 17 दिसंबर 2025 का पत्र रिकॉर्ड पर प्रस्तुत किया। इस पत्र में पुराने संकरे पुल को हटाकर आधुनिक डबल लेन पुल बनाने की विस्तृत योजना साझा की गई है। बताया गया कि यह नया पुल भारत सरकार की प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई-III) में स्वीकृत योजना का हिस्सा है। इस महत्वपूर्ण परियोजना की कुल लागत 375.66 लाख रुपये है। वर्तमान सड़क को 5/7 मीटर से बढ़ाकर 7/10 मीटर किया जा रहा है ताकि भविष्य में बढ़ते ट्रैफिक दबाव को झेला जा सके। अदालत को सूचित किया गया कि पुल निर्माण का कार्य पहले ही आवंटित किया जा चुका है और इसे 19 जुलाई 2026 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधवलिया और न्यायाधीश जियालाल भारद्वाज की खंडपीठ ने राज्य सरकार को इस संबंध में एक औपचारिक हलफनामा दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। मामले की अगली सुनवाई अब 9 जनवरी 2026 को होगी।

20 साल से कार्यरत माली को नियमित करने के दिए आदेश
 हाईकोर्ट ने 20 साल से कार्यरत माली को नियमित करने के दिए आदेश दिए हैं। अदालत ने फैसले में कहा कि यदि कोई कर्मचारी सरकारी संस्थान में लंबे समय से सेवाएं दे रहा है तो उसका वेतन किस फंड से आ रहा है, यह उसकी नियमितीकरण की पात्रता को रोकने का आधार नहीं हो सकता। न्यायाधीश संदीप शर्मा की अदालत ने उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें याचिकाकर्ता का दावा खारिज किया गया। अदालत ने आदेश दिया कि याचिकाकर्ता को 8 वर्ष की निरंतर सेवा पूरी करने के बाद माली के पद पर नियमित किया जाए। याचिकाकर्ता ने अदालत आने में देरी की, इसलिए 9 साल का पिछला बकाया नहीं मिलेगा, लेकिन इस अवधि को वरिष्ठता और अन्य लाभों के लिए गिना जाएगा। वित्तीय लाभ याचिका दायर करने की तिथि से 3 वर्ष पूर्व से देय होंगे। अदालत ने सरकार के तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता पिछले 20 वर्षों से सरकारी संस्थान की देखरेख में काम कर रहा है। इतने लंबे समय तक सेवा लेने के बाद उसे नियमित न करना शोषण के समान है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वेतन चाहे पीटीए फंड से दिया गया हो या सरकारी खजाने से कर्मचारी की सेवा सरकारी संस्थान के लिए थी। अदालत ने पूर्व में सैनी राम बनाम हिमाचल राज्य मामले का हवाला देते हुए कहा कि केवल वेतन का स्रोत नियमितीकरण तय नहीं कर सकता। याचिकाकर्ता सुरेंद्र कुमार वर्तमान में राजकीय डिग्री कॉलेज देहरी कांगड़ा में माली के पद पर कार्यरत हैं।

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