Shimla: शहर में पीलिया फैलने के मामले में नाै साल बाद जेई समेत चार पर तय होंगे आरोप
शिमला में साल 2016 में पीलिया के कारण हुई मौतों के मामले में एफआईआर होने के करीब नौ साल बाद चार आरोपियों के खिलाफ आरोप तय होंगे।

विस्तार
हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में साल 2016 में पीलिया के कारण हुई मौतों के मामले में एफआईआर होने के करीब नौ साल बाद चार आरोपियों के खिलाफ आरोप तय होंगे। इसमें दो कनिष्ठ अभियंता, एक ठेकेदार और एक सुपरवाइजर शामिल हैं। विशेष न्यायाधीश (वन) अजय मेहता की अदालत ने आरोपियों के खिलाफ उक्त अपराधों के लिए आरोप तय करने के लिए 28 नवंबर 2025 की तारीख तय की है। अदालत ने टिप्पणी की यह सच है कि यह नहीं कहा जा सकता कि आरोपियों का इरादा मृत्यु कारित (ऐसे कार्य से है जो किसी की मृत्यु का कारण बनता हो) करने का था लेकिन लापरवाही को नजर अंदाज नहीं कर सकते।

यह मामला आरोपियों के किए उस कृत्य से संबंधित है जिसके कारण ग्यारह लोगों की जान चली गई। अदालत ने माना कि आईपीसी की धारा 269, 270, 277, 336, 304 और जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम 1974 की धारा 43 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए आरोपियों के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनाने के लिए रिकॉर्ड में पर्याप्त आधार मौजूद हैं। इसलिए आरोपी आईपीएच के तत्कालीन कनिष्ठ अभियंता पुनीत कुमार और रूपलाल गौतम, प्लांट के ठेकेदार अक्षय डोगर और सुपरवाइजर मनोज वर्मा के खिलाफ आरोप तय करने का मामला बनता है। अभियोजन पक्ष ने आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किए। हैं। यह मामला 2015-16 में शिमला शहर में पीलिया रोग फैलने से संबंधित है।
शहर में पीलिया के मामलों में वृद्धि के बाद नगर निगम शिमला के तत्कालीन उप महापौर टिकेंद्र सिंह पंवर की अध्यक्षता में बैठक हुई। इसमें पीलिया के कारणों का पता लगाने के लिए एक समित्ति का गठन किया। एमसी के मुख्य चिकित्सा अधिकारी सहित पार्षदों और विशेषज्ञों की एक समिति ने घटनास्थल का दौरा कर पाया कि मल्याणा स्थित एसटीपी (सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट) का संचालन ठीक से नहीं हो रहा है। एसटीपी से निकलने वाला अपशिष्ट अश्वनी खड्ड में जा रहा है, जहां से पीने के लिए पानी (कवालग पंपिंग स्टेशन के माध्यम से कसुम्पटी) उठाया जा रहा है। यहां से निकलने वाला अपशिष्ट हेपेटाइटिस के मामलों में वृद्धि का कारण पाया गया। इसके बाद उप महापौर ने शिकायत दर्ज करवाई। इसी आधार पर वर्तमान प्राथमिकी दर्ज कर मामले की जांच की गई। शहर में पीलिया रोग से ग्यारह लोगों की मौत हो गई और लगभग 1417 लोग इससे प्रभावित हुए थे।
पुणे लैब की रिपोर्ट में मिले थे हेपेटाइटिस ए और ई वायरस
जांच के दौरान विभिन्न स्थानों से पांच अपशिष्ट नमूने एकत्र किए गए। पहला मल्याणा एसटीपी के अंतिम आउटलेट से, दूसरा मल्याणा नाले से, तीसरा मल्याणा नाले में मिलने से पहले जगरोटी नाले से, चौथा अश्वनी खड्ड से और पांचवां एसटीपी बली के आउटलेट से। अश्वनी खड्ड (लिफ्ट वाटर सप्लाई स्कीम) से साफ पानी के नमूने नहीं लिए जा सके यह 2 जनवरी 2016 को बंद था। नमूनों को रासायनिक विश्लेषण के लिए राष्ट्रीय जीव विषाणु विज्ञान संस्थान, पुणे, महाराष्ट्र भेजा गया। प्राप्त परिणामों से पहले, दूसरे, चौथे और पांचवें नमूनों में हेपेटाइटिस ए और ई वायरस की उपस्थिति का संकेत मिला। तीसरे नमूने में कोई वायरस नहीं था।
पर्याप्त उपचार के बिना पानी किया वितरित
जांच में पाया गया कि ठेकेदार निर्धारित नियमों और शतों के अनुसार एसटीपी को संचालित करने में विफल रहा। एसटीपी से अनुपचारित अपशिष्टों को छोड़ दिया जो अश्वनी खड्ड के पानी में मिल गया और आगे एलडब्ल्यूएसएस अश्वनी खड्ड में तैनात आईपीएच के कर्मचारियों ने अनुचित तरीके से उपचारित पानी को कसुम्पटी स्वच्छ जल टैंक में पहुंचाया जहां से एमसी शिमला की ओर से पानी प्रभावित क्षेत्रों में वितरित किया था। इस कारण पीलिया फैल गया। आरोप लगे हैं कि वाल्व रिसाब ठेकेदार और अधिकारियों की जानकारी में था लेकिन उन्होंने इसे ठीक करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया।