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Mohini Ekadashi 2025: जब अमृत बचाने भगवान विष्णु बने मोहिनी, जानिए मोहिनी अवतार की रोचक कथा

धर्म डेस्क, अमर उजाला Published by: विनोद शुक्ला Updated Tue, 06 May 2025 11:33 AM IST
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सार

08 मई को मोहिनी एकादशी है। इस एकादशी पर भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया था।भगवान विष्णु ने चालाकी से सबसे पहले देवताओं को अमृत पिलाना शुरू किया और असुरों को भ्रम में रखा

Mohini Ekadashi 2025 Kab hai Date Know Importance Significance And Katha on Auspicious Day
मोहिनी एकादशी व्रत कथा - फोटो : adobe stock
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Mohini Ekadashi 2025: हिंदू पंचांग के अनुसार मोहिनी एकादशी वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है और व्रत करने से पापों से मुक्ति तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। वैदिक पंचांग के अनुसार, वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 07 मई को सुबह 10 बजकर 19 मिनट पर शुरू होगी। इस तिथि का समापन अगले दिन यानी 08 मई को दोपहर 12 बजकर 29 मिनट पर होगा। सनातन धर्म में उदया तिथि का खास महत्व है। ऐसे में मोहिनी एकादशी 08 मई को मनाई जाएगी।
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भगवान राम ने भी किया था यह व्रत
इस दिन भगवान विष्णु के अवतार प्रभु श्रीराम और विष्णुजी के मोहिनी स्वरूप का पूजन-अर्चन किया जाता है। पदम पुराण के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण, युधिष्ठिर को मोहिनी एकादशी का महत्व समझाते हुए कहते हैं कि महाराज !त्रेता युग में महर्षि वशिष्ठ के कहने से परम प्रतापी श्रीराम ने इस व्रत को किया। यह व्रत सब प्रकार के दुखों का निवारण करने वाला, सब पापों को हरने वाला व्रतों में उत्तम व्रत है। इस व्रत के प्रभाव से प्राणी भगवान विष्णु की कृपा से सभी प्रकार के मोह बंधनों और पापों से छूटकर अंत में वैकुण्ठ धाम को जाते हैं।
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मोहिनी अवतार की पौराणिक कथा
मोहिनी एकादशी की कथा समुद्र मंथन की घटना से जुड़ी हुई है। जब देवताओं और असुरों ने मिलकर अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया, तब अंततः अमृत कलश निकला। यह देखकर असुरों ने बलपूर्वक अमृत छीन लिया और देवताओं को वंचित कर दिया।

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देवताओं की रक्षा और संतुलन बनाए रखने के लिए भगवान विष्णु ने एक अद्भुत योजना बनाई। उन्होंने एक सुंदर, मोहक स्त्री का रूप धारण किया, जिसे मोहिनी कहा गया। मोहिनी रूप इतना आकर्षक था कि असुर उसे देखकर मोहित हो गए और अमृत वितरण का कार्य उसी के हवाले कर दिया।

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मोहिनी रूप में भगवान विष्णु ने चालाकी से सबसे पहले देवताओं को अमृत पिलाना शुरू किया और असुरों को भ्रम में रखा। इस दौरान एक असुर स्वर्भानु ने देवता का रूप धारण कर अमृत पीने का प्रयास किया और देवताओं की पंक्ति में जाकर बैठ गया। जैसे ही वह अमृत पीने लगा, भगवान सूर्य और चंद्र ने उसकी पहचान कर ली और संकेत किया। उसी क्षण भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। परंतु स्वर्भानु ने अमृत का एक बूंद पी ली थी, इसलिए वह अमर हो गया। उसका सिर राहु और धड़ केतु नाम से विख्यात हुआ और कालांतर में यह दोनों नवग्रहों में गिने गए।

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