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Devshayani Ekadashi 2025 Vrat Katha: आज एकादशी पर जरूर करें इस कथा का पाठ, श्रीहरि विष्णु बरसाएंगे कृपा

धर्म डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: श्वेता सिंह Updated Sun, 06 Jul 2025 08:10 AM IST
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सार

Devshayani EKadashi Katha: देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु योगनिद्रा में जाते हैं और चातुर्मास का आरंभ होता है। इस व्रत का पूर्ण फल पाने के लिए पद्म पुराण में वर्णित कथा का पाठ अनिवार्य माना गया है।
 

Devshayani Ekadashi 2025 Vrat Katha To Please Lord Vishnu in hindi
चातुर्मास 2025 - फोटो : adobe stock

विस्तार
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DevShayani Ekadashi Vrat Katha: आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं, और यही दिन चातुर्मास की शुरुआत का संकेत होता है। माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार महीने के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं और इस दौरान सृष्टि का संचालन भगवान शिव अपने रुद्र अवतार के रूप में करते हैं।

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इस एकादशी का व्रत रखने वाले श्रद्धालुओं के लिए पद्म पुराण में वर्णित व्रत कथा का पाठ करना अत्यंत आवश्यक बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि जब तक इस पावन कथा का श्रवण या पाठ नहीं किया जाता, तब तक व्रत अधूरा रहता है और इसका पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता। अगर आप इस व्रत का पालन कर रहे हैं, तो इसकी कथा का पाठ जरूर करें। आइए यहां पढ़ते हैं देवशयनी एकादशी की सम्पूर्ण कथा ।
Devshayani Ekadashi 2025: देवशयनी एकादशी आज, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और मंत्र

Devshayani Ekadashi 2025 Vrat Katha To Please Lord Vishnu in hindi
देवशयनी एकादशी व्रत कथा - फोटो : adobe stock

देवशयनी एकादशी व्रत कथा
सतयुग की बात है। उस समय राजा मांधाता नामक एक चक्रवर्ती सम्राट पृथ्वी पर राज करते थे। वे अत्यंत धर्मनिष्ठ, न्यायप्रिय और प्रजा के सुख के लिए समर्पित शासक थे। उनके राज्य में हर ओर खुशहाली थी। खेत हरे-भरे थे, नदियाँ लबालब बहती थीं और प्रजा संतुष्ट थी। एक बार राज्य में लगातार तीन वर्षों तक वर्षा नहीं हुई। धरती बंजर हो गई, जल के स्रोत सूख गए और धीरे-धीरे पूरे राज्य में भीषण अकाल फैल गया। भोजन का संकट गहराने लगा और प्रजा भूख-प्यास से त्रस्त हो उठी। प्रजा ने हर संभव उपाय किए। यज्ञ, व्रत, तप, हवन और दान आदि धार्मिक क्रियाएं कीं, लेकिन वर्षा नहीं हुई। हताश होकर वे राजा मांधाता के पास पहुँचे और अपनी व्यथा सुनाई।

राजा मांधाता को यह देखकर गहरा दुख हुआ। उन्होंने स्वयं से प्रश्न किया कि मैंने तो हमेशा धर्म का पालन किया, फिर ऐसा अकाल क्यों? क्या मुझसे कोई त्रुटि हो गई है, जिसके कारण राज्य को इतना बड़ा दंड झेलना पड़ रहा है? उनका हृदय व्याकुल हो उठा और उन्होंने तय किया कि जब तक समाधान नहीं मिलेगा, तब तक चैन से नहीं बैठेंगे। राजा अपनी सेना और कुछ विश्वासी सेवकों के साथ जंगल की ओर प्रस्थान कर गए। कई दिन की यात्रा के बाद वे ब्रह्मा जी के पुत्र महर्षि अंगिरा के आश्रम पहुँचे।

महर्षि अंगिरा ने राजा का स्नेहपूर्वक स्वागत किया और उनसे आने का कारण पूछा। राजा ने हाथ जोड़कर कहा, “हे ऋषिवर! मैंने सदा धर्म का पालन किया है, प्रजा की सेवा की है। फिर भी मेरे राज्य में वर्षा नहीं हो रही है। कृपा करके इस संकट से उबरने का मार्ग बताइए।” महर्षि अंगिरा ने ध्यान लगाकर कहा, “हे राजन, यह सतयुग है। यहाँ तक कि छोटे से भी पाप का बड़ा दंड मिलता है। राज्य में कोई सूक्ष्म दोष या अधर्म का प्रभाव हो सकता है। इसका निवारण करने के लिए तुम आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को व्रत करो। यह एकादशी देवशयनी एकादशी कहलाती है। इस दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा में जाते हैं। यदि तुम श्रद्धा से इस व्रत को करो और इसकी पवित्र कथा का पाठ करो, तो निश्चय ही वर्षा होगी।”

राजा मांधाता ने महर्षि की आज्ञा को सिर झुकाकर स्वीकार किया और आश्रम में ही देवशयनी एकादशी का व्रत रखा। उन्होंने विधिपूर्वक पूजा की, कथा का श्रवण किया और रात्रि को जागरण करते हुए भगवद्भक्ति में लीन हो गए। व्रत के प्रभाव से वही हुआ जिसकी आशा थी। अगले दिन आकाश में बादल घिर आए, बिजली चमकी और मूसलधार वर्षा होने लगी। पूरा राज्य जल से भर गया। नदियाँ बह चलीं, खेत लहलहा उठे और प्रजा के चेहरों पर फिर से मुस्कान लौट
आई। राजा ने महर्षि अंगिरा को कृतज्ञता पूर्वक प्रणाम किया और अपने राज्य लौटकर जनकल्याण में जुट गए।

इस कथा से स्पष्ट होता है कि देवशयनी एकादशी का व्रत केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि श्रद्धा, तप और ईश्वर पर विश्वास की परीक्षा है। इस दिन कथा का पाठ करना अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस व्रत को विधिपूर्वक करता है, उसके समस्त कष्ट दूर होते हैं, पाप नष्ट होते हैं और अंत में उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। जब भी आप देवशयनी एकादशी का व्रत करें, इस पवित्र कथा का श्रवण अवश्य करें। बिना कथा के व्रत अधूरा माना जाता है। यह व्रत केवल पुण्य ही नहीं देता, बल्कि जीवन में शांति, समृद्धि और भगवद् कृपा भी प्रदान करता है।




डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं, ज्योतिष, पंचांग, धार्मिक ग्रंथों आदि पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है।
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