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जानिए कैसे बनीं रानी गुंडिचा भगवान की मौसी, इसलिए हर साल मिलने जाते हैं श्री जगन्नाथ
धर्म डेस्क, अमर उजाला
Published by: विनोद शुक्ला
Updated Thu, 03 Jul 2025 03:59 PM IST
सार
Jagannath Rath Yatra 2025:
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जगन्नाथ रथ यात्रा
- फोटो : पीटीआई
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विस्तार
Jagannath Rath Yatra 2025: पुरी में हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की रथयात्रा निकलती है,जो इस साल 27 जून से प्रारम्भ हो चुकी है। श्रीमंदिर से उन्हें रथ पर विराजमान कर श्रद्धालु हाथों से खींचकर श्री गुंडिचा मंदिर ले जाते हैं, जो लगभग 2.6 किलोमीटर दूर स्थित है। यह मंदिर भगवान की मौसी का घर माना जाता है और यही से रथयात्रा का गूढ़ रहस्य शुरू होता है।
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राजा इंद्रद्युम्न का संकल्प और रानी गुंडिचा का तप
उत्कल (ओडिशा) के राजा इंद्रद्युम्न ने श्रीमंदिर का निर्माण कराया, लेकिन मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा के लिए योग्य पुरोहित की खोज हुई। देवर्षि नारद ने बताया कि केवल ब्रह्मा ही यह कार्य कर सकते हैं। राजा ब्रह्मलोक जाने को तैयार हो गए, लेकिन नारद मुनि ने चेतावनी दी कि धरती पर लौटने तक कई युग बीत जाएंगे। रानी गुंडिचा ने तब तक समाधि लेकर तप करने का संकल्प लिया, और राज्य व्यवस्था विद्यापति व ललिता को सौंप दी गई। जब राजा लौटे, मंदिर रेत में दबा मिला। राजा ब्रह्मा जी को साथ लेकर जब धरती पर लौटे तो कई सदियां बीत चुकी थीं। अब पुरी पर राजा गालु माधव का शासन था। श्रीमंदिर रेत में दबा हुआ था। एक तूफान के बाद उसका भाग प्रकट हुआ और खुदाई शुरू हुई। तभी इंद्रद्युम्न भी लौटे, जिससे विवाद की स्थिति बन गई। हनुमान जी संत रूप में आए और सब ठीक किया । राजा इंद्रद्युम्न ने मंदिर का गर्भगृह खोजकर सच्चाई सिद्ध की।
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रानी की समाधि टूटी, भक्तों ने देवी माना
रानी गुंडिचा को पति के लौट आने का आभास हुआ और उनकी समाधि टूटी। जब उन्होंने आंखें खोलीं तो सामने श्रद्धा से भरे एक युवा दंपति को देखा। वे उन्हें देवी मानते थे, लेकिन रानी ने स्वयं को उनकी पूर्वज बताया और मंदिर जाने की इच्छा प्रकट की। रानी मंदिर पहुंचीं, जहां राजा और रानी का पुनर्मिलन हुआ और गालु माधव ने भी सच्चाई स्वीकार कर ली।
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भगवान ने रानी को दी ‘मौसी’ की उपाधि
ब्रह्मा जी ने यज्ञ करवाकर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की प्राण प्रतिष्ठा राजा-रानी के हाथों से करवाई। भगवान ने राजा को कई वरदान दिए और रानी गुंडिचा से कहा, “आपने मां की तरह प्रतीक्षा की है, इसलिए आप मेरी मौसी हैं। मैं हर वर्ष आपके पास आऊंगा।” तब से रथयात्रा की परंपरा आरंभ हुई। रानी का तपस्थल 'गुंडिचा मंदिर' कहलाया और शक्तिपीठ समान मान्यता प्राप्त हुई।इस तरह गुंडिचा देवी बनीं भगवान जगन्नाथ की मौसी और हर वर्ष भगवान की रथयात्रा उन्हीं से मिलने के लिए निकलती है। यह कथा भगवान और भक्त के त्याग, प्रेम और सेवा की अनुपम मिसाल है।
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