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Samvad: '13 देशों के मुक्केबाजों को बाहर करता गया', गांव का चंदू कैसे बना पैरालंपिक चैंपियन? पढ़ें पूरी कहानी
स्पोर्ट्स डेस्क, अमर उजाला, देहरादून
Published by: स्वप्निल शशांक
Updated Sun, 04 Aug 2024 06:56 PM IST
सार
गोली लगने की घटना के बाद मुरलीकांत को आईएनएचएस अश्विनी में भर्ती कराया गया। हमले की वजह से उनकी कमर के निचले हिस्से ने काम करना बंद कर दिया था। कहा जाता है कि उनकी याददाश्त भी चली गई थी। माना जाने लगा था कि वह सामान्य जीवन नहीं जी पाएंगे। हालांकि, उन्होंने फिर खेलों में देश का नाम रोशन किया और पैरालंपिक में गोल्ड जीता।
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मुरलीकांत पेटकर
- फोटो : Amar Ujala
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विस्तार
देहरादून में अमर उजाला संवाद का आयोजन हुआ। इसमें 'चंदू चैंपियन' यानी मुरलीकांत पेटकर भी शामिल हुए। उन्होंने अपनी कहानी बताई और बचपन से लेकर पैरालंपिक चैंपियन बनने तक के सफर के बारे में बताया। उन्होंने जर्मनी के हीडलबर्ग में 1972 के ग्रीष्मकालीन पैरालिंपिक में स्वर्ण पदक जीता था। इसके अलावा 50 मीटर फ्रीस्टाइल तैराकी स्पर्धा में 37.33 सेकंड का समय लेकर विश्व रिकॉर्ड बनाया था। साल 1972 में जर्मनी में हुए समर पैरालंपिक खेलों में उन्होंने भाग लिया और स्विमिंग में विश्व रिकॉर्ड कायम किया। उन्होंने 37.33 सेकेंड में स्विमिंग पूरी करके देश का नाम रोशन किया था और स्वर्ण पदक जीता था। 2018 में मुरलीकांत को पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। आइए उनकी कहानी, उन्हीं की जुबानी सुनते हैं...
'बचपन से जिद्दी था'
मुरली ने कहा- मैं बचपन से जिद्दी था। अभी जब आपने चंदू चैंपियन देखा तो कुश्ती में जो पहला ओलंपिक पदक आया था वो मेरे घर से काफी नजदीक था। केडी जाधव को रिसीव करने काफी लोग पहुंचे थे। मेरा भाई भी मुझे लेकर साइकिल पर स्टेशन पर पहुंचा। तब समझ आया कि खिलाड़ी का सम्मान होता है। मेरे भाई ने बोला दुनिया में कुछ अच्छा कर तो नाम होगा। तभी मैंने ठान लिया कि मैं भी ओलंपिक गोल्ड लाऊंगा। जब घर पहुंचा तो मेरे घरवालों ने पूछा कि क्यों गए थे। उसी दिन स्कूल में मेरे टीचर ने पूछा कि तू क्या बनेगा तो मैंने कहा कि मैं ओलंपिक गोल्ड लाऊंगा। कुछ बच्चों ने बोला कि तू क्या गिल्ली डंडा में गोल्ड लाएगा। चंदू कहकर चिढ़ाने लगे। बस मुझे यहीं से जज्बा मिला। मैंने कुश्ती की प्रैक्टिस करनी शुरू की। कोच ने कहा कि तू क्या कुश्ती लड़ेगा, तू तो बच्चा है। बचपन से मैं कुश्ती की प्रैक्टिस कर रहा हूं। कुश्ती इवेंट में मुझे एक पैसा मुझे इनाम के तौर पर मिला था और वो मेरी जिंदगी का पहला गोल्ड मेडल था। मैं दूसरे गांव के सरपंच के लड़के के साथ भी कुश्ती लड़ा और मैं जीत गया। फिर दूसरे गांव के साथ हमारी लड़ाई चली और मैं उस गांव से भाग गया और मिलीट्री जॉइन कर लिया।
'हॉकी खिलाड़ी से मुक्केबाज बनने की कहानी'
मुरली ने कहा- मैं जो कुश्ती कर के पुणे पहुंचा और वहां सेना को जॉइन किया। इतनी कम उम्र में सेना में पहुंच गया। मैं पहले हॉकी खेलता था। एक दिन मेरा सेलेक्शन हॉकी नेशनल्स के लिए होना था। हालांकि, अचानक मेरा सेलेक्शन नहीं हुआ और ये संदेश आया। तो मैं बहुत दुखी हुआ था और मैं रोने लगा। तभी मेरा प्रशिक्षक मेरे पास आया और बोले- ए चंदू क्यों रो रहा है? मत रो। ये सामने क्या चल रहा है। मैंने कहा बॉक्सिंग चल रहा है। तो प्रशिक्षक ने कहा- सुनो बॉक्सिंग एक ऐसा खेल है, जिसमें दांत तोड़ कर मेडल लो या फिर दांत देकर मेडल लो। तो उसी दिन मैंने हॉकी छोड़ दिया और बॉक्सिंग चालू किया। मुक्केबाजी में 1964 में जब टोक्यो में एक टूर्नामेंट हुआ तब तक मैं मुक्केबाजी में इतना अच्छा हो चुका था कि लोग मुझे बेंगलुरु और मद्रास में छोटा टाइगर के नाम से जानते थे। 1964 में मैं जापान गया खेलने के लिए और 13 देशों के मुक्केबाज को बाहर करता गया। फिर 14वें देश का मुक्केबाज युगांडा का मुक्केबाज था और उसने मुझे ऐसा मुक्का मारा की मैं बेहोश हो गया। मैंने घमंड नहीं किया और हार गया तो वो भी मैं बता रहा हूं।
किस तरह युद्ध में घायल हुए मुरलीकांत?
मुरली ने कहा- इस टूर्नामेंट के बाद टीम हमारी वापस भारत पहुंची। फिर आर्मी ने मुझसे पूछा कि आपको क्या करना है? तो मैंने कहा कि मैं बॉक्सिंग करूंगा। तो उन्होंने कहा नहीं आपको मिलीट्री का जॉब है और पहले अपनी ड्यूटी निभाइए। तो मैंने बोला कि मुझे कश्मीर की पोस्टिंग मिल गई और मैं वहां एक साल सर्विस किया। 1965 में एक दिन वहां युद्ध शुरू हो गया। वो ऐसी लड़ाई शुरू हुई कि शाम चार बजे सिटी बजने लगी। सबको तैयार रहने के लिए कहा गया। हालांकि, कुछ लोग तैयार नहीं हो पाए। सबको लगा कि चाय के लिए साइरन बजी है और जवान कप लेकर खड़े हो गए। तभी बम गिरा और कई जवान घायल हुए और शहीद हुए। तो ऐसे लड़ाई चालू हुआ। तब हमलोग बंकर में प्रैक्टिस करते थे शूटिंग की। एक बार मैं और एक गुरुंग सर प्रैक्टिस कर रहे थे और दो टारगेट पर निशाना साध चुके थे। इसके लिए हम दोनों ने हाथ मिलाया तभी बंकर पर हवाई हमला हुआ और गुरुंग सर का हाथ मेरे हाथों में आ गया। मैं भी बंकर में दब गया। हालांकि, मैंने हिम्मत नहीं हारी और चिल्लाता रहा कि कोई तो हमें बचा लो। फिर कुछ देर बाद मुझे कुछ लोगों ने बंकर से निकाला और गुरुंग सर को अस्पताल भेज दिया गया। मैं उसी स्थिति में युद्ध में शामिल हो गया। लड़ाई में उस समय मुझे नौ गोली लगी। मैं पहाड़ से रोड पर गिरा और रोड पर आर्मी टैंकर मेरे ऊपर से गुजर गया और मैं बेहोश हो गया। दो साल मुझे ठीक होने में लगे थे।
2018 में पद्मश्री से किए गए सम्मानित
गोली लगने की घटना के बाद मुरलीकांत को आईएनएचएस अश्विनी में भर्ती कराया गया। हमले की वजह से उनकी कमर के निचले हिस्से ने काम करना बंद कर दिया था। कहा जाता है कि उनकी याददाश्त भी चली गई थी। माना जाने लगा था कि वह सामान्य जीवन नहीं जी पाएंगे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक दिन बेड से नीचे गिरने के बाद उनकी याददाश्त वापस आई थी। साल 1969 में आर्मी से रिटायर हुए।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, पूर्व भारतीय क्रिकेटर विजय मर्चेंट एक एनजीओ चलाते थे। उन्होंने मुरलीकांत को पैरालंपिक खेलों तक पहुंचाया। साल 1972 में जर्मनी में हुए समर पैरालंपिक खेलों में उन्होंने भाग लिया और स्विमिंग में विश्व रिकॉर्ड कायम किया। उन्होंने 37.33 सेकेंड में स्विमिंग पूरी करके देश का नाम रोशन किया था। इससे पहले उन्होंने स्कॉटलैंड में कॉमनवेल्थ पैरालंपिक खेलों में भाग लिया था। इस दौरान उन्होंने 50 मीटर फ्रीस्टाइल स्विमिंग में स्वर्ण जीता था। इसके अलावा जैवलिन थ्रो में रजत और शॉटपुट में कांस्य पदक जीता। 2018 में मुरलीकांत को पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।
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मुरली ने कहा- मैं बचपन से जिद्दी था। अभी जब आपने चंदू चैंपियन देखा तो कुश्ती में जो पहला ओलंपिक पदक आया था वो मेरे घर से काफी नजदीक था। केडी जाधव को रिसीव करने काफी लोग पहुंचे थे। मेरा भाई भी मुझे लेकर साइकिल पर स्टेशन पर पहुंचा। तब समझ आया कि खिलाड़ी का सम्मान होता है। मेरे भाई ने बोला दुनिया में कुछ अच्छा कर तो नाम होगा। तभी मैंने ठान लिया कि मैं भी ओलंपिक गोल्ड लाऊंगा। जब घर पहुंचा तो मेरे घरवालों ने पूछा कि क्यों गए थे। उसी दिन स्कूल में मेरे टीचर ने पूछा कि तू क्या बनेगा तो मैंने कहा कि मैं ओलंपिक गोल्ड लाऊंगा। कुछ बच्चों ने बोला कि तू क्या गिल्ली डंडा में गोल्ड लाएगा। चंदू कहकर चिढ़ाने लगे। बस मुझे यहीं से जज्बा मिला। मैंने कुश्ती की प्रैक्टिस करनी शुरू की। कोच ने कहा कि तू क्या कुश्ती लड़ेगा, तू तो बच्चा है। बचपन से मैं कुश्ती की प्रैक्टिस कर रहा हूं। कुश्ती इवेंट में मुझे एक पैसा मुझे इनाम के तौर पर मिला था और वो मेरी जिंदगी का पहला गोल्ड मेडल था। मैं दूसरे गांव के सरपंच के लड़के के साथ भी कुश्ती लड़ा और मैं जीत गया। फिर दूसरे गांव के साथ हमारी लड़ाई चली और मैं उस गांव से भाग गया और मिलीट्री जॉइन कर लिया।
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'हॉकी खिलाड़ी से मुक्केबाज बनने की कहानी'
मुरली ने कहा- मैं जो कुश्ती कर के पुणे पहुंचा और वहां सेना को जॉइन किया। इतनी कम उम्र में सेना में पहुंच गया। मैं पहले हॉकी खेलता था। एक दिन मेरा सेलेक्शन हॉकी नेशनल्स के लिए होना था। हालांकि, अचानक मेरा सेलेक्शन नहीं हुआ और ये संदेश आया। तो मैं बहुत दुखी हुआ था और मैं रोने लगा। तभी मेरा प्रशिक्षक मेरे पास आया और बोले- ए चंदू क्यों रो रहा है? मत रो। ये सामने क्या चल रहा है। मैंने कहा बॉक्सिंग चल रहा है। तो प्रशिक्षक ने कहा- सुनो बॉक्सिंग एक ऐसा खेल है, जिसमें दांत तोड़ कर मेडल लो या फिर दांत देकर मेडल लो। तो उसी दिन मैंने हॉकी छोड़ दिया और बॉक्सिंग चालू किया। मुक्केबाजी में 1964 में जब टोक्यो में एक टूर्नामेंट हुआ तब तक मैं मुक्केबाजी में इतना अच्छा हो चुका था कि लोग मुझे बेंगलुरु और मद्रास में छोटा टाइगर के नाम से जानते थे। 1964 में मैं जापान गया खेलने के लिए और 13 देशों के मुक्केबाज को बाहर करता गया। फिर 14वें देश का मुक्केबाज युगांडा का मुक्केबाज था और उसने मुझे ऐसा मुक्का मारा की मैं बेहोश हो गया। मैंने घमंड नहीं किया और हार गया तो वो भी मैं बता रहा हूं।
किस तरह युद्ध में घायल हुए मुरलीकांत?
मुरली ने कहा- इस टूर्नामेंट के बाद टीम हमारी वापस भारत पहुंची। फिर आर्मी ने मुझसे पूछा कि आपको क्या करना है? तो मैंने कहा कि मैं बॉक्सिंग करूंगा। तो उन्होंने कहा नहीं आपको मिलीट्री का जॉब है और पहले अपनी ड्यूटी निभाइए। तो मैंने बोला कि मुझे कश्मीर की पोस्टिंग मिल गई और मैं वहां एक साल सर्विस किया। 1965 में एक दिन वहां युद्ध शुरू हो गया। वो ऐसी लड़ाई शुरू हुई कि शाम चार बजे सिटी बजने लगी। सबको तैयार रहने के लिए कहा गया। हालांकि, कुछ लोग तैयार नहीं हो पाए। सबको लगा कि चाय के लिए साइरन बजी है और जवान कप लेकर खड़े हो गए। तभी बम गिरा और कई जवान घायल हुए और शहीद हुए। तो ऐसे लड़ाई चालू हुआ। तब हमलोग बंकर में प्रैक्टिस करते थे शूटिंग की। एक बार मैं और एक गुरुंग सर प्रैक्टिस कर रहे थे और दो टारगेट पर निशाना साध चुके थे। इसके लिए हम दोनों ने हाथ मिलाया तभी बंकर पर हवाई हमला हुआ और गुरुंग सर का हाथ मेरे हाथों में आ गया। मैं भी बंकर में दब गया। हालांकि, मैंने हिम्मत नहीं हारी और चिल्लाता रहा कि कोई तो हमें बचा लो। फिर कुछ देर बाद मुझे कुछ लोगों ने बंकर से निकाला और गुरुंग सर को अस्पताल भेज दिया गया। मैं उसी स्थिति में युद्ध में शामिल हो गया। लड़ाई में उस समय मुझे नौ गोली लगी। मैं पहाड़ से रोड पर गिरा और रोड पर आर्मी टैंकर मेरे ऊपर से गुजर गया और मैं बेहोश हो गया। दो साल मुझे ठीक होने में लगे थे।
2018 में पद्मश्री से किए गए सम्मानित
गोली लगने की घटना के बाद मुरलीकांत को आईएनएचएस अश्विनी में भर्ती कराया गया। हमले की वजह से उनकी कमर के निचले हिस्से ने काम करना बंद कर दिया था। कहा जाता है कि उनकी याददाश्त भी चली गई थी। माना जाने लगा था कि वह सामान्य जीवन नहीं जी पाएंगे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक दिन बेड से नीचे गिरने के बाद उनकी याददाश्त वापस आई थी। साल 1969 में आर्मी से रिटायर हुए।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, पूर्व भारतीय क्रिकेटर विजय मर्चेंट एक एनजीओ चलाते थे। उन्होंने मुरलीकांत को पैरालंपिक खेलों तक पहुंचाया। साल 1972 में जर्मनी में हुए समर पैरालंपिक खेलों में उन्होंने भाग लिया और स्विमिंग में विश्व रिकॉर्ड कायम किया। उन्होंने 37.33 सेकेंड में स्विमिंग पूरी करके देश का नाम रोशन किया था। इससे पहले उन्होंने स्कॉटलैंड में कॉमनवेल्थ पैरालंपिक खेलों में भाग लिया था। इस दौरान उन्होंने 50 मीटर फ्रीस्टाइल स्विमिंग में स्वर्ण जीता था। इसके अलावा जैवलिन थ्रो में रजत और शॉटपुट में कांस्य पदक जीता। 2018 में मुरलीकांत को पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।