{"_id":"65185d1b57a41719c003393a","slug":"asian-games-2023-palak-guliya-did-not-become-a-disciple-of-pt-usha-so-she-became-shooter-palak-guliya-story-2023-09-30","type":"story","status":"publish","title_hn":"Asian Games: पीटी उषा की शिष्या नहीं बनीं तो शूटर बन गईं पलक, पिछले एशियाई खेलों तक निशानेबाजी शुरू नहीं की थी","category":{"title":"Sports","title_hn":"खेल","slug":"sports"}}
Asian Games: पीटी उषा की शिष्या नहीं बनीं तो शूटर बन गईं पलक, पिछले एशियाई खेलों तक निशानेबाजी शुरू नहीं की थी
हेमंत रस्तोगी, अमर उजाला ब्यूरो, नई दिल्ली
Published by: स्वप्निल शशांक
Updated Sat, 30 Sep 2023 11:42 PM IST
सार
बेटी की हौसला बढ़ाने के लिए हांगझोऊ गए जोगिंदर बताते हैं कि वह चाहते थे कि उषा खुद को पलक को टे्रनिंग दें, लेकिन ऐसा संभव नहीं था। इसके बाद उन्होंने उसकी एथलेटिक्स छुड़वा दी। जोगिंदर बताते हैं कि जिस स्कूल में पलक पढ़ती थीं। वहां शूटिंग रेंज भी थी।
विज्ञापन
पलक गुलिया
- फोटो : सोशल मीडिया
विज्ञापन
विस्तार
बेटी पलक को खिलाड़ी बनाने के लिए पिता जोगिंदर गुलिया झज्झर छोड़कर गुड़गांव आ बसे। पलक केहिस्से में पहला खेल एथलेटिक्स आया। वह छोटी उम्र में ही स्प्रिंट रेसों में अच्छा करने लग गईं। यहां तक अपने से उम्र में बड़ी एथलीटों को भी पीछे छोड़ने लग गईं। पिता खुश थे कि बेटी एथलेटिक्स में अच्छा कर रही है। कुछ समय बाद जिन एथलीटों को पलक पछाड़ रही थी, उनसे पीछे रहकर उदास रहने लगी। एक दिन पिता ने दौड़ के बाद बेटी को रोते देखा। उन्होंने कारण पूछा तो पिता के होश उड़ गए।
जिन सीनियर एथलीटों के साथ पलक दौड़ती थी, वे उनसे कहती थीं कि तुम्हें हमसे पीछे रहना है। तुम्हारी वजह से हमें कोच से डांट नहीं पड़नी चाहिए। इसके बाद पिता ने पलक को स्टेडियम से निकालकर दिग्गज पीटी उषा के पास कोझीकोड भेजने का फैसला लिया। सारी तैयारियां हो गई थीं। अंत में पिता को बताया गया कि उषा राष्ट्रीय शिविर में हैं और टोक्यो ओलंपिक के लिए एथलीटों को तैयार कर रही हैं। इसके बाद उन्होंने पलक को इस खेल से ही बाहर निकाल लिया।
बेटी का हौसला बढ़ाने पहुंच गए हांगझोऊ
बेटी की हौसला बढ़ाने के लिए हांगझोऊ गए जोगिंदर बताते हैं कि वह चाहते थे कि उषा खुद को पलक को टे्रनिंग दें, लेकिन ऐसा संभव नहीं था। इसके बाद उन्होंने उसकी एथलेटिक्स छुड़वा दी। जोगिंदर बताते हैं कि जिस स्कूल में पलक पढ़ती थीं। वहां शूटिंग रेंज भी थी। शुरुआत में पलक को शूटिंग केे अलावा लॉन टेनिस भी दिलाया गया। इन दोनों खेलों में से एक को पलक को चुनना था। जोङ्क्षगंदर के मुताबिक उनकी बेटी बेहद शांत है। वह ज्यादा बात नहीं करती है। इसका उदाहरण उन्होंने शुक्रवार को स्वर्ण जीतने के बाद दिया। पलक ने न तो कोई जश्न मनाया और न ही किसी तरह की प्रतिक्रिया दी।
कोरोना के दौर में निशानेबाजी को गंभीरता से लिया
इन सारी बातों को देखने के बाद पलक ने 2018-19 में शूटिंग को अपनाया। कोरोना दौर में उसने इस खेल को गंभीरता से लिया और यहां से उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा। जोगिंदर बताते हैं कि अंतरराष्ट्रीय कंपटीशन को छोड़कर वह हमेशा उसके साथ जाते हैं। उनकी शक्ल देखने से ही बेटी को हौसला मिलता है। यही कारण है कि वह यहां आए। जोङ्क्षगंदर के मुताबिक अगर स्टेडियम में सीनियर एथलीट पलक को परेशान नहीं करते और पीटी उषा उसे कोचिंग के लिए मिल जातीं तो फिर उनकी बेटी एथलेटिक्स ही करती।
Trending Videos
जिन सीनियर एथलीटों के साथ पलक दौड़ती थी, वे उनसे कहती थीं कि तुम्हें हमसे पीछे रहना है। तुम्हारी वजह से हमें कोच से डांट नहीं पड़नी चाहिए। इसके बाद पिता ने पलक को स्टेडियम से निकालकर दिग्गज पीटी उषा के पास कोझीकोड भेजने का फैसला लिया। सारी तैयारियां हो गई थीं। अंत में पिता को बताया गया कि उषा राष्ट्रीय शिविर में हैं और टोक्यो ओलंपिक के लिए एथलीटों को तैयार कर रही हैं। इसके बाद उन्होंने पलक को इस खेल से ही बाहर निकाल लिया।
विज्ञापन
विज्ञापन
बेटी का हौसला बढ़ाने पहुंच गए हांगझोऊ
बेटी की हौसला बढ़ाने के लिए हांगझोऊ गए जोगिंदर बताते हैं कि वह चाहते थे कि उषा खुद को पलक को टे्रनिंग दें, लेकिन ऐसा संभव नहीं था। इसके बाद उन्होंने उसकी एथलेटिक्स छुड़वा दी। जोगिंदर बताते हैं कि जिस स्कूल में पलक पढ़ती थीं। वहां शूटिंग रेंज भी थी। शुरुआत में पलक को शूटिंग केे अलावा लॉन टेनिस भी दिलाया गया। इन दोनों खेलों में से एक को पलक को चुनना था। जोङ्क्षगंदर के मुताबिक उनकी बेटी बेहद शांत है। वह ज्यादा बात नहीं करती है। इसका उदाहरण उन्होंने शुक्रवार को स्वर्ण जीतने के बाद दिया। पलक ने न तो कोई जश्न मनाया और न ही किसी तरह की प्रतिक्रिया दी।
कोरोना के दौर में निशानेबाजी को गंभीरता से लिया
इन सारी बातों को देखने के बाद पलक ने 2018-19 में शूटिंग को अपनाया। कोरोना दौर में उसने इस खेल को गंभीरता से लिया और यहां से उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा। जोगिंदर बताते हैं कि अंतरराष्ट्रीय कंपटीशन को छोड़कर वह हमेशा उसके साथ जाते हैं। उनकी शक्ल देखने से ही बेटी को हौसला मिलता है। यही कारण है कि वह यहां आए। जोङ्क्षगंदर के मुताबिक अगर स्टेडियम में सीनियर एथलीट पलक को परेशान नहीं करते और पीटी उषा उसे कोचिंग के लिए मिल जातीं तो फिर उनकी बेटी एथलेटिक्स ही करती।