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Amar Ujala Samvad 2023: शूटर रोंजन सोढ़ी के मन में अब भी ओलंपिक मेडल न जीत पाने की कसक, 'संवाद' में कही यह बात
स्पोर्ट्स डेस्क, अमर उजाला, देहरादून
Published by: स्वप्निल शशांक
Updated Mon, 19 Jun 2023 06:21 PM IST
सार
अमर उजाला 'संवाद' कार्यक्रम में भारतीय डबल ट्रैप शूटर रोंजन सोढ़ी ने अलग-अलग ओलंपिक से जुड़े अपने अनुभव साझा किए।
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रंजन सोढ़ी
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
अमर उजाला 'संवाद' कार्यक्रम में भारतीय डबल ट्रैप शूटर रोंजन सोढ़ी ने 2012 लंदन ओलंपिक से जुड़े अपने अनुभव साझा किए। 'जिद्द और जुनून' सत्र के दौरान रोंजन ने बताया कि कैसे एक घटना ने उनसे मेडल छीन लिया था। आइये जानते हैं...
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'खेल छोड़ने के बाद हमारे पास क्रिकेटर की तरह मौके नहीं'
अमर उजाला ने जब रोंजन से पूछा कि लंदन ओलंपिक की कसक आपके मन में होगी। ओलंपिक का क्या अनुभव रहा? जवाब में रोंजन ने कहा- ओलंपिक का खेल बहुत मुश्किल होता है। यह क्रिकेट की तरह नहीं होता। यहां चार साल में एक मौका मिलता है और तीन ही पदक होते हैं। क्रिकेट में आज हार गए तो कल दूसरा मैच खेलेंगे। हमारे पास तो अगर स्वर्ण, रजत और कांस्य न हो तो कुछ नहीं मिलता। क्रिकेट में रिटायर होने के बाद भी मौके हैं, कमेंटेटर बन जाते हैं। हमारे साथ ऐसा नहीं है।
किस तरह मेडल से चूके थे रोंजन?
रोंजन ने बताया- लंदन में तीन राउंड का खेल था। वहां खेल मंत्री आए। हम जहां बैठते हैं, वहां किसी को आने की इजाजत नहीं होती। खेल मंत्री ने बोला कि उन्हें मुझसे मिलना है। कोच ने बताया। मैंने कहा कि मैं नहीं जाऊंगा। वे दोबारा आए। वे एक मिनट के लिए मिलना चाहते थे। जब मैं गया तो प्रोटोकॉल से बाहर चला गया। वहां मीडिया से किसी ने बोला कि ओबी वैन भेजिए रोंजन के घर पर, क्योंकि मेडल पक्का है। शूटिंग न एक माइंड गेम भी है ध्यान भटका तो गेम भी हार जाओगे। बस वही एक एक खामी रह गई। मेरा ध्यान उसी पल से हट गया था, प्रेशर में आ गया था। वह हमेशा जेहन में रहेगा कि पदक नहीं आ पाया। भारत में यही है कि ओलंपिक पदक नहीं है तो कुछ नहीं है।
किस तरह मेडल से चूके थे रोंजन?
रोंजन ने बताया- लंदन में तीन राउंड का खेल था। वहां खेल मंत्री आए। हम जहां बैठते हैं, वहां किसी को आने की इजाजत नहीं होती। खेल मंत्री ने बोला कि उन्हें मुझसे मिलना है। कोच ने बताया। मैंने कहा कि मैं नहीं जाऊंगा। वे दोबारा आए। वे एक मिनट के लिए मिलना चाहते थे। जब मैं गया तो प्रोटोकॉल से बाहर चला गया। वहां मीडिया से किसी ने बोला कि ओबी वैन भेजिए रोंजन के घर पर, क्योंकि मेडल पक्का है। शूटिंग न एक माइंड गेम भी है ध्यान भटका तो गेम भी हार जाओगे। बस वही एक एक खामी रह गई। मेरा ध्यान उसी पल से हट गया था, प्रेशर में आ गया था। वह हमेशा जेहन में रहेगा कि पदक नहीं आ पाया। भारत में यही है कि ओलंपिक पदक नहीं है तो कुछ नहीं है।
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'सरकार एथलीट का समर्थन कर रही'
रोंजन से जब यह पूछा गया कि देश में अधिकतर सफलताएं व्यक्तिगत संघर्ष से आईं हैं। भारत में खिलाड़ियों की सफलता में संस्थागत योगदान ज्यादा है या व्यक्तिगत जुनून का योगदान ज्यादा है? इस पर रोंजन ने कहा- अब तो संंमय काफी बदल चुका है। सरकारें भी एथलीट का समर्थन कर रही हैं। पिछले कुछ वर्षों में खेल के क्षेत्र में बहुत विकास हुआ है।
रोंजन को शूटिंग के अलावा कई और खेल भी पसंद
मैं फिरोजपुर से आता हूं, वहां कोई सुविधा नहीं थी। पिताजी ने दिल्ली भेज दिया। पंजाब में हॉकी का शौक है। डंडे का भी काम करती है। घुड़सवारी भी सीखी। बाद में शूटिंग सीखी। आज भी पंजाब में गन कल्चर है और यह बुरा नहीं, अच्छा गन कल्चर है। ट्रैक्टर चलाना आना चाहिए और गोली चलाना आना चाहिए। ...अब खेलो इंडिया है, फंडिंग है। सरकार अब बहुत खर्च कर रही है। हर कॉर्पोरेट हाउस स्पॉन्सर कर रहा है। आने वाले वक्त में बहुत पदक आएंगे।
रोंजन को शूटिंग के अलावा कई और खेल भी पसंद
मैं फिरोजपुर से आता हूं, वहां कोई सुविधा नहीं थी। पिताजी ने दिल्ली भेज दिया। पंजाब में हॉकी का शौक है। डंडे का भी काम करती है। घुड़सवारी भी सीखी। बाद में शूटिंग सीखी। आज भी पंजाब में गन कल्चर है और यह बुरा नहीं, अच्छा गन कल्चर है। ट्रैक्टर चलाना आना चाहिए और गोली चलाना आना चाहिए। ...अब खेलो इंडिया है, फंडिंग है। सरकार अब बहुत खर्च कर रही है। हर कॉर्पोरेट हाउस स्पॉन्सर कर रहा है। आने वाले वक्त में बहुत पदक आएंगे।