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YouTube: जिस एप के दीवाने हैं आपके बच्चे, उसी के CEO ने घर में लगाई पाबंदी! जानें क्या है वजह

टेक डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: नीतीश कुमार Updated Sun, 14 Dec 2025 05:35 PM IST
सार

YouTube CEO Screen Time Parenting: दुनिया भर के बच्चे जिस यूट्यूब पर घंटों चिपके रहते हैं, उसके बॉस नील मोहन अपने ही बच्चों को स्क्रीन से दूर रखते हैं। टाइम मैगजीन के 'CEO ऑफ द ईयर' चुने गए मोहन ने खुलासा किया है कि उनके घर में सोशल मीडिया को लेकर सख्त नियम हैं। जानिए आखिर टेक दिग्गज अपने बच्चों को मोबाइल से दूर क्यों रख रहे हैं।

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यूट्यूब - फोटो : AI जनरेटेड
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विस्तार
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आजकल के बच्चों के हाथ से मोबाइल छुड़ाना किसी जंग जीतने से कम नहीं है। बच्चे यूट्यूब (YouTube) पर वीडियो देखने में घंटों बिता देते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिस यूट्यूब को पूरी दुनिया देखती है, उसे चलाने वाले खुद अपने बच्चों को इसे देखने की खुली छूट नहीं देते?
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यूट्यूब के सीईओ (CEO) नील मोहन, जिन्हें हाल ही में टाइम मैगजीन ने '2025 सीईओ ऑफ द ईयर' चुना है, का मानना है कि बच्चों के लिए 'बिना लिमिट की आजादी' खतरनाक हो सकती है। नील मोहन के घर का 'नो-स्क्रीन' फार्मूला नील मोहन ने हाल ही में एक इंटरव्यू में अपनी पर्सनल लाइफ और पैरेंटिंग पर खुलकर बात की।
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CEO Neal Mohan का निजी अनुभव
हाल ही में Time Magazine को दिए इंटरव्यू में YouTube के सीईओ नील मोहन ने बताया कि वे अपने बच्चों के सोशल मीडिया इस्तेमाल पर बारीकी से नजर रखते हैं। साल 2023 में सीईओ बनने वाले मोहन को हाल ही में टाइम का 'CEO ऑफ द ईयर 2025' भी चुना गया है। उनका कहना है कि उनके घर में स्क्रीन टाइम को लेकर रोजमर्रा के नियम तय हैं।

नील मोहन के मुताबिक, उनके घर में वीकडेज के दौरान बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम के नियम सख्त रहते हैं, जबकि वीकेंड पर थोड़ी ढील दी जाती है। उन्होंने स्वीकार किया कि पैरेंटिंग में परफेक्शन संभव नहीं है, लेकिन संतुलन बनाए रखना सबसे जरूरी है।

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स्क्रीन टाइम को कंट्रोल करना जरूरी - फोटो : AI
बच्चों की मानसिक सेहत पर स्क्रीन टाइम का असर
तीन बच्चों के पिता नील मोहन का कहना है कि जरूरत से ज्यादा स्क्रीन टाइम बच्चों की नींद, ध्यान लगाने की क्षमता, भावनात्मक विकास और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर डाल सकता है। यही कारण है कि वे बच्चों के डिजिटल इस्तेमाल को लेकर सतर्क रहते हैं।

नील मोहन अकेले नहीं हैं जो ऐसा सोचते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ज्यादा स्क्रीन टाइम बच्चों की मानसिक सेहत, नींद, फोकस और भावनात्मक विकास को नुकसान पहुंचा रहा है। न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और 'द एंग्शियस जेनरेशन' किताब के लेखक जोनाथन हैट (Jonathan Haidt) तो यहां तक कहते हैं कि बच्चों को 14 साल से पहले स्मार्टफोन और 16 साल से पहले सोशल मीडिया नहीं देना चाहिए। उनका तर्क है कि फोन बच्चों को बाहरी दुनिया के ऐसे प्रभावों के सामने ला खड़ा करता है, जिन पर माता-पिता का कोई नियंत्रण नहीं होता।

सरकारी स्तर पर भी बढ़ी सख्ती
इस खतरे को देखते हुए अब सरकारें भी जाग रही हैं। हाल ही में ऑस्ट्रेलिया दुनिया का पहला ऐसा देश बना है जिसने 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है। वहां के लोगों ने भी इस फैसले का समर्थन किया है। इस फैसले में नील मोहन अकेले नहीं हैं। YouTube के पूर्व CEO सुसान वोज्स्की, माइक्रोसॉफ्ट के सह-संस्थापक बिल गेट्स और अरबपति बिजनेसमैन मार्क क्यूबन जैसे टेक लीडर्स भी अपने बच्चों के स्क्रीन टाइम और एप एक्सेस पर सीमाएं तय करते रहे हैं।
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