Sikh Riots: सज्जन को मिली सजा अब टाइटलर व कमलनाथ पर भी लटक रही तलवार, पढ़ें कहानी दिल्ली में हुए नरसंहार की
ऐसा नहीं है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद अचानक दंगे भड़क गए इसके पीछे पंजाब में उग्रवाद भी काफी हद तक जिम्मेदार रहा है। दरअसल पंजाब में उग्रवाद के दौरान हिन्दू समुदाय के लोगों की हत्या हुई और उनको बसों से उतार कर एक लाइन में खड़ा कर हत्या की गई।
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तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या 31 अक्टूबर, 1984 को उनके दो सिख सुरक्षा गार्डों ने ही कर दी थी। इसके बाद दिल्ली समेत देशभर में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे थे। इसमें कइयों को अपनी जान गंवानी पड़ी और कई को बेघर होना पड़ा। कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर व सज्जन कुमार के अलावा पूर्वी दिल्ली के नेता एचकेएल भगत इन दंगो के मुख्य किरदार रहे हैं। इसमें एचकेएल भगत की मृत्यु हो गई है, लेकिन अब सज्जन के अलावा टाइटलर व कमलनाथ पर भी तलवार लटक रही है। टाइटलर का मामला तो अदालत में चल ही रहा है। वहीं, कमलनाथ पर भी आरोप है कि वे दंगो के दौरान गुरुद्वारा रकाबगंज के समक्ष कार में पंहुचे व दंगाइयों को भटकाया। यह मामला भी अदालत में है और उनको आरोपी बनाने के लिए आग्रह किया गया है।
दिल्ली में हुआ नरसंहार
ऐसा नहीं है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद अचानक दंगे भड़क गए इसके पीछे पंजाब में उग्रवाद भी काफी हद तक जिम्मेदार रहा है। दरअसल पंजाब में उग्रवाद के दौरान हिन्दू समुदाय के लोगों की हत्या हुई और उनको बसों से उतार कर एक लाइन में खड़ा कर हत्या की गई। इंदिरा गांधी की हत्या ने आग में घी का काम किया और दिल्ली में बड़ी तादाद में दंगे या यूं कहे नरसंहार हुआ।
मारे गए थे 2733 लोग
सिख दंगों की जांच के लिए गठित नानावटी आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ दिल्ली में 587 मामले दर्ज हुए थे। जिनमें 2733 लोग मारे गए थे। कुल मामलों में से करीब 240 मामले बंद हो गए, जबकि 250 मामलों में आरोपी बरी हो गए थे। दिल्ली सरकार ने 17 फरवरी, 2025 को सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि वह सिख दंगों के 6 मामलों में बरी आरोपियों के खिलाफ याचिका दायर करेगी यानि अभी कई आरोपियों के खिलाफ भी मुकदमे चलेंगे।
इन की हत्या में सज्जन कुमार दोषी करार
सज्जन कुमार जैसे किरदारों पर बाद में मुकदमे चले। 25 फरवरी को सज्जन कुमार को ऐसे ही पिता-पुत्र की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। सज्जन पर 1984 में दंगों के दौरान सरस्वती विहार में जसवंत सिंह और उसके बेटे तरुणदीप सिंह की हत्या का दोषी पाया गया है। वह पहले से ही दिल्ली कैंट मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है।
राष्ट्रपति की कार पर हुआ पथराव
31 अक्टूबर को दोपहर तक अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स के आसपास भीड़ जमा होने लगी थी। भीड़ ने खून के बदले खून के नारे लगाने शुरू कर दिए। यह भीड़ बेकाबू हो उठी। शाम पांच बजे के आस-पास तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह अस्पताल पहुंचे और भीड़ ने उनकी कार पर पथराव कर दिया। इसने सिखों के साथ मारपीट शुरू कर दी, कारों और बसों को रोककर सिखों को बाहर निकाला और उन्हें जिंदा जला दिया। कई सिख मारे गए।
घर छोड़ गुरुद्वारे में जाने को मजबूर हुए सिख
राजधानी में शुरू नरसंहार दंगों के दौरान दिल्ली पुलिस ने बंद कर ली थीं जिस कारण योजनाबद्ध तरीके से इसे अंजाम दिया गया था। सिख समुदाय के लोग घरों में बंद हो कर रह गए। काफी तादाद में अपने घर छोड़ पर गुरुद्वारों में शरण लेने के लिए मजबूर हुए। हालात यह हो गए थे कि तीन दिन तक पूरी दिल्ली में देश के बंटवारे की याद दिलवा दी थी।