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Hacking Vs Scraping: स्क्रैपिंग बना डेटा में सेंध लगाने का नया तरीका, कानून की पकड़ से भी बाहर
टेक डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: नीतीश कुमार
Updated Tue, 23 Dec 2025 04:02 PM IST
सार
Hacking Vs Scraping Explained: अक्सर हैकिंग और स्क्रैपिंग को एक ही समझ लिया जाता है। जबकि दोनों में कानूनी और तकनीकी स्तर पर बड़ा अंतर है। आज के डिजिटल और एआई युग में इसे समझना बेहद जरूरी हो गया है।
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हैकिंग बनाम स्क्रैपिंग
- फोटो : AI
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विस्तार
हाल के महीनों में कई बड़ी टेक कंपनियों से जुड़े डेटा स्क्रैपिंग के मामले सामने आए हैं। सोशल मीडिया, म्यूजिक और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स से बड़े पैमाने पर डेटा निकाले जाने के बाद यह सवाल उठ रहा है कि क्या स्क्रैपिंग भी हैकिंग ही है? एक्सपर्ट्स मानते हैं कि दोनों के बीच बुनियादी अंतर है, लेकिन संदर्भ बदलते ही मामला संवेदनशील हो जाता है।
क्या होती है हैकिंग?
हैकिंग का मतलब किसी सिस्टम, सर्वर या अकाउंट में बिना अनुमति घुसपैठ करना। इसमें पासवर्ड तोड़ना, सिक्योरिटी सिस्टम को बायपास करना या निजी डेटा तक जबरन पहुंच बनाना शामिल होता है। अधिकतर देशों में हैकिंग को साइबर अपराध माना जाता है और इसके लिए कड़ी कानूनी सजा का प्रावधान है। बैंकिंग फ्रॉड, अकाउंट टेकओवर और डेटा चोरी आमतौर पर हैकिंग के उदाहरण हैं।
हैकिंग से बेहद अलग है स्क्रैपिंग
डेटा स्क्रैपिंग सीधे तौर पर हैकिंग नहीं है। इसमें लोग सार्वजनिक रूप से उपलब्ध डेटा को ऑटोमेटेड टूल्स या बॉट्स की मदद से इकट्ठा करते हैं। इसमें वेबसाइट पर दिख रही जानकारी, जैसे नाम, टाइटल, रेटिंग, मेटाडेटा या अन्य पब्लिक कंटेंट शामिल हो सकता है। तकनीकी रूप से, अगर डेटा पब्लिक डोमेन में है और किसी सिक्योरिटी को तोड़ा नहीं गया है, तो स्क्रैपिंग को कई मामलों में गैरकानूनी नहीं माना जाता।
यह भी पढ़ें: Spotify से 300TB डेटा हुआ लीक! 8.6 करोड़ गानों की बनाई कॉपी, एआई ट्रेनिंग में हो सकता है इस्तेमाल
आसान भाषा में समझें तो स्क्रैपिंग खिड़की से बाहर लगे विज्ञापन को पढ़ने जैसा है, जबकि हैकिंग घर का दरवाजा तोड़कर अंदर की तिजोरी खोलने जैसा है।
कहां से शुरू होता है विवाद?
समस्या तब खड़ी होती है जब स्क्रैपिंग बड़े पैमाने पर की जाती है या प्लेटफॉर्म की नियम व शर्तों का उल्लंघन करती है। अगर कोई कंपनी बॉट्स को रोकने के लिए तकनीकी सुरक्षा लगाती है और स्क्रैपिंग करने वाला उसे जानबूझकर बायपास किया जाता है, तो यह स्क्रैपिंग से आगे बढ़कर हैकिंग की श्रेणी में आ सकता है।
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क्या होती है हैकिंग?
हैकिंग का मतलब किसी सिस्टम, सर्वर या अकाउंट में बिना अनुमति घुसपैठ करना। इसमें पासवर्ड तोड़ना, सिक्योरिटी सिस्टम को बायपास करना या निजी डेटा तक जबरन पहुंच बनाना शामिल होता है। अधिकतर देशों में हैकिंग को साइबर अपराध माना जाता है और इसके लिए कड़ी कानूनी सजा का प्रावधान है। बैंकिंग फ्रॉड, अकाउंट टेकओवर और डेटा चोरी आमतौर पर हैकिंग के उदाहरण हैं।
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हैकिंग से बेहद अलग है स्क्रैपिंग
डेटा स्क्रैपिंग सीधे तौर पर हैकिंग नहीं है। इसमें लोग सार्वजनिक रूप से उपलब्ध डेटा को ऑटोमेटेड टूल्स या बॉट्स की मदद से इकट्ठा करते हैं। इसमें वेबसाइट पर दिख रही जानकारी, जैसे नाम, टाइटल, रेटिंग, मेटाडेटा या अन्य पब्लिक कंटेंट शामिल हो सकता है। तकनीकी रूप से, अगर डेटा पब्लिक डोमेन में है और किसी सिक्योरिटी को तोड़ा नहीं गया है, तो स्क्रैपिंग को कई मामलों में गैरकानूनी नहीं माना जाता।
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आसान भाषा में समझें तो स्क्रैपिंग खिड़की से बाहर लगे विज्ञापन को पढ़ने जैसा है, जबकि हैकिंग घर का दरवाजा तोड़कर अंदर की तिजोरी खोलने जैसा है।
कहां से शुरू होता है विवाद?
समस्या तब खड़ी होती है जब स्क्रैपिंग बड़े पैमाने पर की जाती है या प्लेटफॉर्म की नियम व शर्तों का उल्लंघन करती है। अगर कोई कंपनी बॉट्स को रोकने के लिए तकनीकी सुरक्षा लगाती है और स्क्रैपिंग करने वाला उसे जानबूझकर बायपास किया जाता है, तो यह स्क्रैपिंग से आगे बढ़कर हैकिंग की श्रेणी में आ सकता है।
स्क्रैपिंग के मामलों ने बढ़ाई चिंता
- फोटो : AI
आज के संदर्भ में क्यों बढ़ी अहमियत
AI के दौर में डेटा सबसे कीमती संसाधन बन चुका है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मॉडल ट्रेन करने के लिए बड़े डेटा सेट की जरूरत होती है। इसी वजह से स्क्रैपिंग अब सिर्फ रिसर्च तक सीमित नहीं है, बल्कि बिजनेस और AI की दौड़ का हिस्सा बन चुका है। डेटा की स्क्रैपिंग कर एआई कंपनियों को बेचा जा सकता है, जिससे पर्सनल जानकारी गलत हाथों में भी जा सकती है।यह डीपफेक के भी खतरे को बढ़ा देता है। यही कारण है कि कंपनियां स्क्रैपिंग को भी गंभीर खतरे के तौर पर देखने लगी हैं।
स्क्रैपिंग के मामलों ने बढ़ाई चिंता
हाल ही में डेटा स्क्रैपिंग के कई मामलों ने कंपनियों की चिंता बढ़ा दी है। सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध डेटा का भी गलत इस्तेमाल किया जा सकता है। हाल ही में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एक रिसर्च में खुलासा किया कि व्हाट्सएप के करोड़ों यूजर्स का फोन नंबर, प्रोफाइल नेम और तस्वीर जैसी जानकारियां डेटा स्क्रैपिंग से जुटाई जा सकती हैं। रिसर्च में व्हाट्सएप पर किसी भी तरह की हैकिंग नहीं की गई थी बल्कि यूजर्स की यह जानकारियां सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध थीं।
इस साल गूगल ने SerpApi पर आरोप लगाया कि कंपनी ने गैरकानूनी तरीके से गूगल के सर्वर से हाई-क्वालिटी कंटेंट को स्कैप किया है। गूगल ने आरोप लगाया कि कंपनी डाटा का इस्तेमाल एआई मॉडलों को ट्रेन करने के लिए कर सकती है।
यह भी पढ़ें: नई ट्रिक से हैक हो रहा व्हाट्सएप, घोस्ट पेयरिंग से हैकर्स ले रहे अकाउंट का कंट्रोल, कैसे बचें?
वहीं, डेटा स्क्रैपिंग को लेकर सबसे ताजा विवाद म्यूजिक स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म Spotify के साथ सामने आया है। एनाज आर्काइव नाम की एक ऑनलाइन शैडो लाइब्रेरी ने Spotify के 300 टेराबाइट (TB) डेटा का बैकअप बना लिया, जिसमें 8.6 करोड़ ऑडियो फाइलें और 25.6 करोड़ से ज्यादा ट्रैक्स शामिल हैं। Spotify ने चिंता जताई कि इस डेटा का इस्तेमाल एआई ट्रेनिंग के लिए किया जा सकता है और कंपनी म्यूजिक को दोबारा बेच पैसा कमा सकती है, जिससे आर्टिस्ट्स को नुकसान होगा।
क्या कहता है कानून?
अलग-अलग देशों में स्क्रैपिंग को लेकर कानून स्पष्ट नहीं हैं। कई जगह पब्लिक डेटा स्क्रैप करना कानूनी है, लेकिन उसका इस्तेमाल किस उद्देश्य से किया गया, यह तय करता है कि मामला अपराध बनेगा या नहीं।
एक आम यूजर के लिए हैकिंग सीधा खतरा है, क्योंकि इससे निजी जानकारी चोरी हो सकती है। वहीं स्क्रैपिंग ज्यादातर प्लेटफॉर्म और कंटेंट क्रिएटर्स से जुड़ा मुद्दा है, जहां डेटा के दुरुपयोग से कमाई पर असर पड़ता है। हालांकि, आज के समय में यह रेखा तेजी से धुंधली हो रही है। आने वाले समय में कानून और टेक कंपनियों की नीतियां तय करेंगी कि स्क्रैपिंग को कब जायज है और कब अपराध माना जाएगा।
AI के दौर में डेटा सबसे कीमती संसाधन बन चुका है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मॉडल ट्रेन करने के लिए बड़े डेटा सेट की जरूरत होती है। इसी वजह से स्क्रैपिंग अब सिर्फ रिसर्च तक सीमित नहीं है, बल्कि बिजनेस और AI की दौड़ का हिस्सा बन चुका है। डेटा की स्क्रैपिंग कर एआई कंपनियों को बेचा जा सकता है, जिससे पर्सनल जानकारी गलत हाथों में भी जा सकती है।यह डीपफेक के भी खतरे को बढ़ा देता है। यही कारण है कि कंपनियां स्क्रैपिंग को भी गंभीर खतरे के तौर पर देखने लगी हैं।
स्क्रैपिंग के मामलों ने बढ़ाई चिंता
हाल ही में डेटा स्क्रैपिंग के कई मामलों ने कंपनियों की चिंता बढ़ा दी है। सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध डेटा का भी गलत इस्तेमाल किया जा सकता है। हाल ही में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एक रिसर्च में खुलासा किया कि व्हाट्सएप के करोड़ों यूजर्स का फोन नंबर, प्रोफाइल नेम और तस्वीर जैसी जानकारियां डेटा स्क्रैपिंग से जुटाई जा सकती हैं। रिसर्च में व्हाट्सएप पर किसी भी तरह की हैकिंग नहीं की गई थी बल्कि यूजर्स की यह जानकारियां सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध थीं।
इस साल गूगल ने SerpApi पर आरोप लगाया कि कंपनी ने गैरकानूनी तरीके से गूगल के सर्वर से हाई-क्वालिटी कंटेंट को स्कैप किया है। गूगल ने आरोप लगाया कि कंपनी डाटा का इस्तेमाल एआई मॉडलों को ट्रेन करने के लिए कर सकती है।
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वहीं, डेटा स्क्रैपिंग को लेकर सबसे ताजा विवाद म्यूजिक स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म Spotify के साथ सामने आया है। एनाज आर्काइव नाम की एक ऑनलाइन शैडो लाइब्रेरी ने Spotify के 300 टेराबाइट (TB) डेटा का बैकअप बना लिया, जिसमें 8.6 करोड़ ऑडियो फाइलें और 25.6 करोड़ से ज्यादा ट्रैक्स शामिल हैं। Spotify ने चिंता जताई कि इस डेटा का इस्तेमाल एआई ट्रेनिंग के लिए किया जा सकता है और कंपनी म्यूजिक को दोबारा बेच पैसा कमा सकती है, जिससे आर्टिस्ट्स को नुकसान होगा।
क्या कहता है कानून?
अलग-अलग देशों में स्क्रैपिंग को लेकर कानून स्पष्ट नहीं हैं। कई जगह पब्लिक डेटा स्क्रैप करना कानूनी है, लेकिन उसका इस्तेमाल किस उद्देश्य से किया गया, यह तय करता है कि मामला अपराध बनेगा या नहीं।
एक आम यूजर के लिए हैकिंग सीधा खतरा है, क्योंकि इससे निजी जानकारी चोरी हो सकती है। वहीं स्क्रैपिंग ज्यादातर प्लेटफॉर्म और कंटेंट क्रिएटर्स से जुड़ा मुद्दा है, जहां डेटा के दुरुपयोग से कमाई पर असर पड़ता है। हालांकि, आज के समय में यह रेखा तेजी से धुंधली हो रही है। आने वाले समय में कानून और टेक कंपनियों की नीतियां तय करेंगी कि स्क्रैपिंग को कब जायज है और कब अपराध माना जाएगा।