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राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस: चांद पर उतरकर भारत के सपने को वैज्ञानिकों ने किया पूरा, अब विकसित भारत से जोड़ना होगा
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, प्रयागराज
Published by: अनुज कुमार
Updated Mon, 19 Aug 2024 09:46 AM IST
सार
प्रयागराज में जीबी पंत सोशल साइंस इंस्टीट्यूट के निदेशक बद्री नारायण ने कहा कि मंगल से चांद तक की यात्रा करने वाले भारतीय युवा मन ऐसे ही अवसर संपूर्ण अंतरिक्ष एवं आकाश को छूकर अपनी ज्ञान शक्ति का बेहतर इस्तेमाल करने को प्रेरित होंगे। यह दिवस मात्र एक आयोजन नहीं है, वरन् स्मृति एवं प्रेरणा निर्माण का एक ऐसा क्षण है जो हममे वैज्ञानिक प्रज्ञा से जुड़ा विकसित भारत गढ़ने की आत्म शक्ति विकसित कर पाएगी।
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प्रयागराज में जीबी पंत सोशल साइंस इंस्टीट्यूट के निदेशक बद्री नारायण
- फोटो : फेसबुक वीडियो सत्यवती कॉलेज
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विस्तार
भारतीय कल्पनालोक में चांद सबसे प्रिय एवं सुंदर प्रतीक रहा है। हमारी साहित्यिक, लोक संस्कृति एवं सैल्यूलाइड जगत की परिकल्पना के केंद्र में सदा से चांद रहा है। युवा दिलदारों के मन में सदा ही चांद के पार जाने, चांद-तारे छू लेने और चांद-तारे तोड़ लाने की कल्पना एवं सपने रहे हैं। यूं भी ऋग्वेद के दशम मंडल में चंद्रमा और हमारे मन का आदि संबंध बताया गया है। हम सब मां की लोरियों में चंदा है-तू-मेरा तारा है तू, सुनकर बड़े हुए हैं। कवियों और शायरों का जो सबसे बहुमूल्य प्रतीक चांद हमारे पास भी रहा है और दूर भी। जिस चांद के पार जाने जाना सबसे सुंदर स्वप्न रहा है, उसे पिछले वर्ष नए भारत के वैज्ञानिकों ने सच कर दिया।
भारतीय अंतरिक्ष शोध संगठन (इसरो) द्वारा विकसित ‘चंद्रयान-3‘ ने भी चांद को छू लिया। चांद के जिस स्थल को हमारे चंद्रयान ने छुआ एवं वह जहां स्थापित हुआ, उसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘शिव-शक्ति‘ नाम दिया। हम सब अच्छी तरह जानते हैं कि हमारे प्रतीकों में चंद्रमा उन शिव के मस्तक पर विराजमान माने जाते हैं, जो संपूर्ण सृष्टि के कल्याण की शक्ति रखते हैं। शिव-शक्ति की यह परिकल्पना वस्तुतः उस एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य को रचती है, जिसे प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार अपनी वैश्विक लोकदृष्टि का सार मानती है।
प्रधानमंत्री ने चंद्रयान-3 के चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर उतरने के वक्त ही कहा था-हालांकि भारत इस मिशन के कारण चंद्रमा के इस स्थल पर पहुंचने वाला भारत का पहला देश माना जाने लगा है, किन्तु भारत की यह सफलता ‘एक पृथ्वी, एक विश्व, एक परिवार‘ रचने की दिशा में एक कदम के रूप में देखा जाना चाहिए। इस तर्क का अगर विस्तार करें तो यह हमारी परम्परा के ‘वसुधैव कुटुंबकम्‘ के भाव को ही स्थापित करता है। चांद को छूना भारतीय मानस का स्वप्न था, जिसे हमारे वैज्ञानिकों ने यथार्थ में बदल दिया। पिछले वर्ष 14 जुलाई, 2023 को सतीश धवन स्पेश सेंटर से चंद्रयान-3 की शुरू हुई यात्रा 23 अगस्त, 2023 को चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर पहुंची।
‘चांद के इस स्पर्श‘ को ‘जीवन के स्पर्श‘ से जोड़ेंगे
अंतरिक्ष दिवस की थीम अत्यंत प्रासांगिक है, जिसमें देश की अनेक शैक्षिक संस्थाएं तथा अन्य विभाग, स्वायत्त एवं सेवाभावी समूह ‘चांद के इस स्पर्श‘ को ‘जीवन के स्पर्श‘ से जोड़ कर भारतीय विकास की कथा को कहेंगे, सुनेंगे एवं उसे विश्लेषित करेंगे। इस अवसर पर कई विश्वविद्यालय, उच्च शिक्षा संस्थान सम्मेलन, कार्यशालाएं, पोस्टर प्रदर्शनियां आयोजित कर रहे हैं ताकि हमारे युवा एवं छात्र अंतिरक्ष की इस वैज्ञानिक चेतना से गहरे रूप से जुड़ते जाएं। यही ‘जुड़ाव विकसित भारत एवं विकसित समाज‘ बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करेगा। इस संदर्भ में यह कहना ही चाहिए कि भारत में ऊच्च शिक्षा संस्थानों की यह महती भूमिका है कि वे अपनी युवा शक्ति को विकसित भारत की वैज्ञानिक एवं विकासपरक चेतना से जुड़ने के लिए प्रेरित करें। अपनी तकनीकी प्रज्ञा को भारतीय परम वैभव से जोड़ने के लिए यह अत्यंत जरूरी है।
हम जानते हैं कि भारत एक युवा देश है। हमारी जो युवा शक्ति 2011 में 33.34 करोड़ था, उसके 2036 में 34.55 करोड़ हो जाने की संभावना है। यूं भी 2020 हमारी युवा जनसांख्यिकी में 50 फीसदी आबादी 25 वर्ष से कम और 65 फीसदी 35 वर्ष से कम के युवाओं की है। अगर यह युवा शक्ति भारतीय वैज्ञानिक विकास की इस सफलतम यात्रा को अपनी स्मृति में रख अपनी आत्म शक्ति रच सकें तो इससे हमारे देश में ‘विकसित भारत‘ के लक्ष्य के लिए युवा आधारशक्ति निर्मित होने में मदद मिलेगी। हम जानते हैं कि स्मृतियां ही हमें रचती हैं। वे ही प्रेरणा तत्व में बदल कर हमें चांद के पार जाने के लिए प्रेरित करती हैं। मंगल से चांद तक की यात्रा करने वाले भारतीय युवा मन ऐसे ही अवसर संपूर्ण अंतरिक्ष एवं आकाश को छूकर अपनी ज्ञान शक्ति का बेहतर इस्तेमाल करने को प्रेरित होंगे। यह दिवस मात्र एक आयोजन नहीं है, वरन् स्मृति एवं प्रेरणा निर्माण का एक ऐसा क्षण है जो हममे वैज्ञानिक प्रज्ञा से जुड़ा विकसित भारत गढ़ने की आत्म शक्ति विकसित कर पाएगी।
‘चांद के इस स्पर्श‘ को ‘जीवन के स्पर्श‘ से जोड़ेंगे : अंतरिक्ष दिवस की थीम अत्यंत प्रासांगिक है, जिसमें देश की अनेक शैक्षिक संस्थाएं तथा अन्य विभाग, स्वायत्त एवं सेवाभावी समूह ‘चांद के इस स्पर्श‘ को ‘जीवन के स्पर्श‘ से जोड़ कर भारतीय विकास की कथा को कहेंगे, सुनेंगे एवं उसे विश्लेषित करेंगे। इस अवसर पर कई विश्वविद्यालय, उच्च शिक्षा संस्थान सम्मेलन, कार्यशालाएं, पोस्टर प्रदर्शनियां आयोजित कर रहे हैं ताकि हमारे युवा एवं छात्र अंतिरक्ष की इस वैज्ञानिक चेतना से गहरे रूप से जुड़ते जाएं। यही ‘जुड़ाव विकसित भारत एवं विकसित समाज‘ बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करेगा। इस संदर्भ में यह कहना ही चाहिए कि भारत में ऊच्च शिक्षा संस्थानों की यह महती भूमिका है कि वे अपनी युवा शक्ति को विकसित भारत की वैज्ञानिक एवं विकासपरक चेतना से जुड़ने के लिए प्रेरित करें। अपनी तकनीकी प्रज्ञा को भारतीय परम वैभव से जोड़ने के लिए यह अत्यंत जरूरी है।
हम जानते हैं कि भारत एक युवा देश है। हमारी जो युवा शक्ति 2011 में 33.34 करोड़ था, उसके 2036 में 34.55 करोड़ हो जाने की संभावना है। यूं भी 2020 हमारी युवा जनसांख्यिकी में 50 फीसदी आबादी 25 वर्ष से कम और 65 फीसदी 35 वर्ष से कम के युवाओं की है। अगर यह युवा शक्ति भारतीय वैज्ञानिक विकास की इस सफलतम यात्रा को अपनी स्मृति में रख अपनी आत्म शक्ति रच सकें तो इससे हमारे देश में ‘विकसित भारत‘ के लक्ष्य के लिए युवा आधारशक्ति निर्मित होने में मदद मिलेगी। हम जानते हैं कि स्मृतियां ही हमें रचती हैं। वे ही प्रेरणा तत्व में बदल कर हमें चांद के पार जाने के लिए प्रेरित करती हैं।
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भारतीय अंतरिक्ष शोध संगठन (इसरो) द्वारा विकसित ‘चंद्रयान-3‘ ने भी चांद को छू लिया। चांद के जिस स्थल को हमारे चंद्रयान ने छुआ एवं वह जहां स्थापित हुआ, उसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘शिव-शक्ति‘ नाम दिया। हम सब अच्छी तरह जानते हैं कि हमारे प्रतीकों में चंद्रमा उन शिव के मस्तक पर विराजमान माने जाते हैं, जो संपूर्ण सृष्टि के कल्याण की शक्ति रखते हैं। शिव-शक्ति की यह परिकल्पना वस्तुतः उस एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य को रचती है, जिसे प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार अपनी वैश्विक लोकदृष्टि का सार मानती है।
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प्रधानमंत्री ने चंद्रयान-3 के चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर उतरने के वक्त ही कहा था-हालांकि भारत इस मिशन के कारण चंद्रमा के इस स्थल पर पहुंचने वाला भारत का पहला देश माना जाने लगा है, किन्तु भारत की यह सफलता ‘एक पृथ्वी, एक विश्व, एक परिवार‘ रचने की दिशा में एक कदम के रूप में देखा जाना चाहिए। इस तर्क का अगर विस्तार करें तो यह हमारी परम्परा के ‘वसुधैव कुटुंबकम्‘ के भाव को ही स्थापित करता है। चांद को छूना भारतीय मानस का स्वप्न था, जिसे हमारे वैज्ञानिकों ने यथार्थ में बदल दिया। पिछले वर्ष 14 जुलाई, 2023 को सतीश धवन स्पेश सेंटर से चंद्रयान-3 की शुरू हुई यात्रा 23 अगस्त, 2023 को चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर पहुंची।
‘चांद के इस स्पर्श‘ को ‘जीवन के स्पर्श‘ से जोड़ेंगे
अंतरिक्ष दिवस की थीम अत्यंत प्रासांगिक है, जिसमें देश की अनेक शैक्षिक संस्थाएं तथा अन्य विभाग, स्वायत्त एवं सेवाभावी समूह ‘चांद के इस स्पर्श‘ को ‘जीवन के स्पर्श‘ से जोड़ कर भारतीय विकास की कथा को कहेंगे, सुनेंगे एवं उसे विश्लेषित करेंगे। इस अवसर पर कई विश्वविद्यालय, उच्च शिक्षा संस्थान सम्मेलन, कार्यशालाएं, पोस्टर प्रदर्शनियां आयोजित कर रहे हैं ताकि हमारे युवा एवं छात्र अंतिरक्ष की इस वैज्ञानिक चेतना से गहरे रूप से जुड़ते जाएं। यही ‘जुड़ाव विकसित भारत एवं विकसित समाज‘ बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करेगा। इस संदर्भ में यह कहना ही चाहिए कि भारत में ऊच्च शिक्षा संस्थानों की यह महती भूमिका है कि वे अपनी युवा शक्ति को विकसित भारत की वैज्ञानिक एवं विकासपरक चेतना से जुड़ने के लिए प्रेरित करें। अपनी तकनीकी प्रज्ञा को भारतीय परम वैभव से जोड़ने के लिए यह अत्यंत जरूरी है।
हम जानते हैं कि भारत एक युवा देश है। हमारी जो युवा शक्ति 2011 में 33.34 करोड़ था, उसके 2036 में 34.55 करोड़ हो जाने की संभावना है। यूं भी 2020 हमारी युवा जनसांख्यिकी में 50 फीसदी आबादी 25 वर्ष से कम और 65 फीसदी 35 वर्ष से कम के युवाओं की है। अगर यह युवा शक्ति भारतीय वैज्ञानिक विकास की इस सफलतम यात्रा को अपनी स्मृति में रख अपनी आत्म शक्ति रच सकें तो इससे हमारे देश में ‘विकसित भारत‘ के लक्ष्य के लिए युवा आधारशक्ति निर्मित होने में मदद मिलेगी। हम जानते हैं कि स्मृतियां ही हमें रचती हैं। वे ही प्रेरणा तत्व में बदल कर हमें चांद के पार जाने के लिए प्रेरित करती हैं। मंगल से चांद तक की यात्रा करने वाले भारतीय युवा मन ऐसे ही अवसर संपूर्ण अंतरिक्ष एवं आकाश को छूकर अपनी ज्ञान शक्ति का बेहतर इस्तेमाल करने को प्रेरित होंगे। यह दिवस मात्र एक आयोजन नहीं है, वरन् स्मृति एवं प्रेरणा निर्माण का एक ऐसा क्षण है जो हममे वैज्ञानिक प्रज्ञा से जुड़ा विकसित भारत गढ़ने की आत्म शक्ति विकसित कर पाएगी।
‘चांद के इस स्पर्श‘ को ‘जीवन के स्पर्श‘ से जोड़ेंगे : अंतरिक्ष दिवस की थीम अत्यंत प्रासांगिक है, जिसमें देश की अनेक शैक्षिक संस्थाएं तथा अन्य विभाग, स्वायत्त एवं सेवाभावी समूह ‘चांद के इस स्पर्श‘ को ‘जीवन के स्पर्श‘ से जोड़ कर भारतीय विकास की कथा को कहेंगे, सुनेंगे एवं उसे विश्लेषित करेंगे। इस अवसर पर कई विश्वविद्यालय, उच्च शिक्षा संस्थान सम्मेलन, कार्यशालाएं, पोस्टर प्रदर्शनियां आयोजित कर रहे हैं ताकि हमारे युवा एवं छात्र अंतिरक्ष की इस वैज्ञानिक चेतना से गहरे रूप से जुड़ते जाएं। यही ‘जुड़ाव विकसित भारत एवं विकसित समाज‘ बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करेगा। इस संदर्भ में यह कहना ही चाहिए कि भारत में ऊच्च शिक्षा संस्थानों की यह महती भूमिका है कि वे अपनी युवा शक्ति को विकसित भारत की वैज्ञानिक एवं विकासपरक चेतना से जुड़ने के लिए प्रेरित करें। अपनी तकनीकी प्रज्ञा को भारतीय परम वैभव से जोड़ने के लिए यह अत्यंत जरूरी है।
हम जानते हैं कि भारत एक युवा देश है। हमारी जो युवा शक्ति 2011 में 33.34 करोड़ था, उसके 2036 में 34.55 करोड़ हो जाने की संभावना है। यूं भी 2020 हमारी युवा जनसांख्यिकी में 50 फीसदी आबादी 25 वर्ष से कम और 65 फीसदी 35 वर्ष से कम के युवाओं की है। अगर यह युवा शक्ति भारतीय वैज्ञानिक विकास की इस सफलतम यात्रा को अपनी स्मृति में रख अपनी आत्म शक्ति रच सकें तो इससे हमारे देश में ‘विकसित भारत‘ के लक्ष्य के लिए युवा आधारशक्ति निर्मित होने में मदद मिलेगी। हम जानते हैं कि स्मृतियां ही हमें रचती हैं। वे ही प्रेरणा तत्व में बदल कर हमें चांद के पार जाने के लिए प्रेरित करती हैं।