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Delhi: कोहरा, ठंड और बेबसी के बीच अस्पतालों के बाहर कतारों में मरीज-तीमारदार काट रहे रातें
सिमरन, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: विजय पुंडीर
Updated Sun, 21 Dec 2025 07:52 AM IST
सार
सफदरजंग अस्पताल के पास मरीजों ने दावा करते हुए बताया कि अस्पताल के रैन बसेरों में ठहरने के लिए मरीजों को पहले डॉक्टर से पर्ची लिखवानी पड़ती है। इसके बिना उन्हें रुकने की अनुमति नहीं मिलती।
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एआईआईएमएस मेट्रो स्टेशन गेट नंबर–1 के बाहर खुले आसमान के नीचे रात गुजारने को मजबूर लोग
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
जहां लाखों लोग जान की आखरी उम्मीद लेकर पहुंचते हैं, इन दिनों वहां का नजारा भी कुछ अलग ही देखने को मिल रहा है। लोग खुले आसमान के नीचे जहरीली हवा के बीच अपने छोटे बच्चों के साथ रात बिताने को मजबूर हैं। यह नजारा पूरी राजधानी के साथ प्रमुख सरकारी अस्पतालों जैसे सफदरजंग और एम्स के बाहर का है, जहां मरीज और उनके परिजन इस सर्दी में खुले आसमान के नीचे रात गुजारने को मजबूर हैं।
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ऐसे में शनिवार को रैन बसेरों और वेटिंग एरिया में जगह न मिलने के कारण ठंडी सर्द हवाओं और कोहरे के बीच लोग रात भर सड़क किनारे बैठकर या खड़े रहकर अपनी बारी का इंतजार करते दिखे। यही नहीं, दूसरे राज्यों से इलाज के लिए आए ये लोग दिन भर अस्पताल के चक्कर काटते रहे। वहीं, रात में ठंड से बचने के लिए पतली चादर या कंबल ओढ़कर सोने लगे। यहां के बाहर का नजारा किसी छावनी से कम नहीं दिखता। सफदरजंग अस्पताल के पास मरीजों ने दावा करते हुए बताया कि अस्पताल के रैन बसेरों में ठहरने के लिए मरीजों को पहले डॉक्टर से पर्ची लिखवानी पड़ती है। इसके बिना उन्हें रुकने की अनुमति नहीं मिलती।
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कड़ाके की ठंड में रहना मुश्किल
उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले से आई संजू बताती हैं कि उनके पति को ब्रेन ट्यूमर है। लखनऊ से रेफर होकर वे मई से एम्स में दिखा रहे हैं। वह अपने गांव सिर्फ एक कंबल लेकर आई हैं, लेकिन बीते कुछ दिनों से पड़ रही कड़ाके की ठंड में उनका यहां रहना मुश्किल हो रहा है।
तीन दिन से यहीं सो रहे
बरेली से अपने कैंसर पीड़ित पति का इलाज कराने आई काजल बताती है कि वह घर का काम-काज छोड़कर आई हैं। उन्होंने बताया कि शौचालय वाले भी रात को दादागिरी करते हैं। उन्होंने आरोप लगाते हुए बताया कि एक दिन उनके साथ शौचालय साफ करने वाली एक महिला ने हाथापाई की, उन्होंने लिखित शिकायत दर्ज कराई लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसके अलावा बिहार के बेतिया जिला से आई मुन्नी देवी ने बताया कि वह पहली बार दिल्ली आई हैं। उनके बच्चे के नाक से दिमाग तक मांस बढ़ गया है, वह मुंह से सांस ले पाता हैं। उन्होंने बताया कि तीन महीने से दिक्कत है और तीन दिन से यहीं सो रहे हैं।
आम आदमी को फायदा नहीं
बिहार के मोतिहारी से आए प्रदीप पटेल ने बताया कि उनके छह साल के बच्चे का किडनी का इलाज 2018 से चल रहा है। वह तीन दिन से यहीं सो रहे हैं। सुबह चार बजे से पर्ची के लिए लाइन लगाते हैं, लेकिन एक हफ्ते बाद की तारीख मिलती है।