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Ayodhya News: थैलेसीमिया के साथ जिंदगी गुजार रहे जिले के 52 बच्चे
संवाद न्यूज एजेंसी, अयोध्या
Updated Thu, 08 May 2025 10:25 PM IST
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अयोध्या। जिले में लगभग 52 बच्चे थैलेसीमिया जैसी गंभीर बीमारी के साथ जीवन गुजार रहे हैं। इनमें लगभग दो बच्चे को रोज जिला अस्पताल व मेडिकल कॉलेज के ब्लड बैंक में खून चढ़ाया जाता है। विशेषज्ञों ने बच्चों को बीमारी से बचाने के लिए शादी से पहले थैलेसीमिया कैरियर जांच की सलाह दी है।
थैलेसीमिया एक वंशानुगत रक्त विकार है, जो जन्म से ही बच्चों को माता-पिता से मिलती है। इसके माइनर स्वरूप में हर समय रक्त की कमी रहती जरूर है, लेकिन रोगी को इसका आभास कम होता है और रक्त चढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ती है। जबकि, गंभीर स्थितियों में रोगी को लगभग हर माह खून चढ़ाना आवश्यक होता है। जिले में इस श्रेणी में लगभग 52 बच्चे जीवनयापन कर रहे हैं।
इनमें 42 बच्चे जिला अस्पताल स्थित ब्लड बैंक में व लगभग 10 बच्चे मेडिकल कॉलेज दर्शननगर स्थित ब्लड बैंक में पंजीकृत हैं। इन्हें निशुल्क रक्त हर माह उपलब्ध कराया जाता है। अप्रैल में जिला अस्पताल से 41 रोगियों को रक्त चढ़ाया गया है। इनके लिए जिला अस्पताल के ईएनटी वार्ड के पास चार बेड का थैलेसीमिया वार्ड अलग से बनाया गया है, जहां उन्हें भर्ती किया जाता है। वहीं, मेडिकल कॉलेज में अलग वार्ड बनाने की तैयारी चल रही है।
मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभागाध्यक्ष डॉ. आनंद शुक्ला ने बताया कि यदि माता-पिता दोनों में थैलेसीमिया है तो बच्चों में थैलेसीमिया का खतरा अधिक रहता है। फिर भी जिन लोगों में हीमोग्लोबिन का स्तर प्राय: कम रहता है, उन्हें इसके प्रति गंभीर रहना चाहिए। खासतौर से शादी से पहले थैलेसीमिया कैरियर की जांच अवश्य करानी चाहिए। ताकि संतानों को इससे बचाया जा सके।
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थैलेसीमिया एक वंशानुगत रक्त विकार है, जो जन्म से ही बच्चों को माता-पिता से मिलती है। इसके माइनर स्वरूप में हर समय रक्त की कमी रहती जरूर है, लेकिन रोगी को इसका आभास कम होता है और रक्त चढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ती है। जबकि, गंभीर स्थितियों में रोगी को लगभग हर माह खून चढ़ाना आवश्यक होता है। जिले में इस श्रेणी में लगभग 52 बच्चे जीवनयापन कर रहे हैं।
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इनमें 42 बच्चे जिला अस्पताल स्थित ब्लड बैंक में व लगभग 10 बच्चे मेडिकल कॉलेज दर्शननगर स्थित ब्लड बैंक में पंजीकृत हैं। इन्हें निशुल्क रक्त हर माह उपलब्ध कराया जाता है। अप्रैल में जिला अस्पताल से 41 रोगियों को रक्त चढ़ाया गया है। इनके लिए जिला अस्पताल के ईएनटी वार्ड के पास चार बेड का थैलेसीमिया वार्ड अलग से बनाया गया है, जहां उन्हें भर्ती किया जाता है। वहीं, मेडिकल कॉलेज में अलग वार्ड बनाने की तैयारी चल रही है।
मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभागाध्यक्ष डॉ. आनंद शुक्ला ने बताया कि यदि माता-पिता दोनों में थैलेसीमिया है तो बच्चों में थैलेसीमिया का खतरा अधिक रहता है। फिर भी जिन लोगों में हीमोग्लोबिन का स्तर प्राय: कम रहता है, उन्हें इसके प्रति गंभीर रहना चाहिए। खासतौर से शादी से पहले थैलेसीमिया कैरियर की जांच अवश्य करानी चाहिए। ताकि संतानों को इससे बचाया जा सके।