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यूपी में गजब हाल है: जिम्मेदारों ने झोले में समेटा सिस्टम, यहां प्रमाणपत्रों के लिए रोज भटकते हैं 10 हजार लोग

संवाद न्यूज एजेंसी, गाजीपुर। Published by: प्रगति चंद Updated Thu, 30 Oct 2025 12:16 PM IST
सार

Ghazipur News: गाजीपुर जिले में सिस्टम पर सवाल उठ रहे हैं। यहां 
जिम्मेदारों ने झोले में सिस्टम को समेट लिया है। ऐसे में प्रमाणपत्रों के लिए रोज 10 हजार लोग भटक रहे हैं। 

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Panchayat assistants do not sit in secretariats in Ghazipur
document - फोटो : Adobe Stock
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विस्तार
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ग्रामीणों को आसानी से जन्म-मृत्यु, आय, जाति व निवास प्रमाण पत्र उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने पंचायत सहायकों को जिम्मेदारी दी है। गाजीपुर जिले के 1150 ग्राम पंचायतों में सहायकों की तैनाती के बावजूद रोज करीब दस हजार लोगों को प्रमाणपत्र बनवाने के लिए तहसील व जिला मुख्यालय का चक्कर लगाना पड़ रहा है। इसकी वजह पंचायत सहायक गांवों में बने सचिवालय में बैठने में रुचि नहीं लेते और झोले में ही सिस्टम संचालित करते हैं। मोबाइल पर एप से काम करते हैं और फाइलों को झोले में लेकर चलते हैं।



जनपद के 16 ब्लॉकों में करीब 1238 ग्राम पंचायत व 2728 राजस्व गांव है। इनमें सभी ग्राम पंचायत में कार्यालयों के भवन बने हैं। 1150 पंचायत भवन में सहायक की तैनाती हो चुकी है। जबकि 88 पंचायत भवनों में अभी तक पंचायत सहायकों की तैनाती नहीं है।
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पंचायत सहायकों का काम कार्यालय में पहुंच रहे ग्रामीणों का जन्म, मृत्यु, आधार, आय, जाति, निवासी प्रमाण पत्र बनाना है। इसके अलावा पंचायत से जुड़े कार्यों की ग्रामीणों को जानकारी देनी है, लेकिन ये पंचायत सहायक अधिकांश समय कार्यालय से ही नदारद रहते हैं। ग्रामीणों की शिकायत है कि पंचायत सहायक सहायता के लिए हैं, लेकिन उनका मिलना ही दूभर है। इससे ग्रामीणों के काम लटके रहते हैं। सचिवालय के ताले सिर्फ बैठक के लिए ही खुलते हैं। बुधवार को अधिकांश कार्यालय बंद मिले।

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दृश्य-1

विकास खंड भदौरा के गोड़सरा गांव का पंचायत भवन ताला बंदी का शिकार है। भवन के आगे उगे झाड़-झंखाड़ जिम्मेदारों की लापरवाही की कहानी बया कर रहे हैं। यहां न तो पंचायत सहायक बैठना उचित समझता है और न ही ग्राम विकास अधिकारी। इससे ग्रामीणों को जाति, आय, निवास व अन्य आवश्यक प्रमाण पत्रों के लिए ब्लॉक और तहसील का रुख करना पड़ता है। इस ग्राम पंचायत की आबादी करीब नौ हजार है।

दृश्य-2
विकास खंड बिरनो अंतर्गत आने वाली मुस्तफाबाद ग्राम पंचायत के ग्रामीणों का दर्द तो सिस्टम की लापरवाही ने और बढ़ा रखा है। करीब ढाई हजार की आबादी वाले इस गांव में पंचायत भवन तो है, लेकिन आज तक न तो यहां पंचायत सहायक का दर्शन हुआ है और न ही कभी ग्राम विकास अधिकारी ने बैठना मुनासिब समझा है। यानि गांव की सरकार को सिस्टम के जिम्मेदारों ने झोले में समेट रखा है, जिससे गांव के लोगों को जाति, आय, निवास के अलावा अन्य प्रमाण पत्रों के लिए ब्लॉक और तहसील मुख्यालय जाना पड़ता है।
 
दृश्य-3
भदौरा ब्लॉक अंतर्गत आने वाली देहवल ग्राम पंचायत का हाल भी उन ग्राम पंचायतों सरीखा है, जहां लाखों रुपये व्यय कर ग्राम सचिवालय का निर्माण तो कराया गया है, लेकिन जिम्मेदार गांव की सरकार को झोले में लेकर चलते है। ग्रामीणों को प्रमाणपत्रों के लिए तहसील व ब्लॉक मुख्यालय का चक्कर काटना पड़ता है। तीन हजार की आबादी वाले इस गांव के ग्रामीण बताते हैं कि पंचायत भवन में पंचायत सहायक बैठने ही नहीं है। कोई अधिकारी आते हैं या जांच टीम आती है, तभी सचिवालय का ताला खुलता है।

दृश्य-4
रेवतीपुर विकास खंड में नौ हजार की आबादी वाले पटकनिया ग्राम पंचायत के लोगों को जाति व अन्य प्रमाण पत्रों के लिए ब्लॉक होते हुए तहसील जाने के लिए करीब आठ से 10 किमी तक दूरी तय करनी पड़ती है। ग्रामीणों का आरोप है कि पंचायत भवन में कभी भी सहायक अथवा सचिव नहीं बैठते है। अगर कोई प्रमाण भी लेना होता है तो उनकी तलाश में गांव से लेकर ब्लॉक तक की धूल फांकनी पड़ती है।
 
क्या बोले अधिकारी
पंचायत सहायकों को ग्राम सचिवालय में सुबह 10 से शाम पांच बजे तक मौजूद रहने का निर्देश दिया गया है। यह उनकी सेवा नियमावली में भी उल्लेखित है। यदि किसी पंचायत भवन में पंचायत सहायक नियमित नहीं बैठ रहे है तो इसकी जांच करा कर संबंधितों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। -रमेश चंद्र उपाध्याय, डीपीआरओ, गाजीपुर

ग्रामीणों की प्रतिक्रिया... 

गांवों में बैठे पंचायत सहायक सिर्फ नाम के हैं
पंचायत भवन तो बना दिया गया, लेकिन पंचायत सहायक शायद ही कभी वहां दिखाई देते हैं। लोग जन्म-मृत्यु प्रमाणपत्र बनवाने तहसील के चक्कर लगाते हैं। अगर वे रोज पंचायत भवन पर बैठें, तो गांव वालों को बहुत सुविधा हो जाएगी। -अशोक ठाकुर, पटनिया 
 
सहायक के बिना प्रमाणपत्र बनवाना मुश्किल
प्रमाणपत्र बनाने के लिए तहसील जाना बहुत कठिन होता है। बच्चे के जन्म प्रमाणपत्र के लिए दो बार तहसील जाना पड़ा। पंचायत भवन में काम हो जाए तो हमें राहत मिले। -अजय कुमार सिंह, गांई 

पंचायत भवन खाली, सहायक मोबाइल पर
सहायक अपने झोले में सिस्टम लेकर घूमते रहते हैं। जब काम पूछो तो कहते हैं कि नेट नहीं चल रहा। गांव में बने भवनों का क्या फायदा, जब वहां कोई बैठता ही नहीं। -डब्लू सिंह, पटनिया 

प्रमाणपत्र के लिए दिनभर दौड़

आय प्रमाणपत्र के लिए तीन दिन से तहसील जा रही हूं। पंचायत सहायक अगर गांव में काम करें तो लोगों का खर्च और समय दोनों बचें। सरकार की योजना अच्छी है, पर अमल कमजोर है। -कृष्ण मोहन सिंह, गांई 
 
ऑनलाइन सिस्टम भी जवाब दे गया
गांव में न तो नेटवर्क ठीक है, न ही पंचायत सहायक समय से बैठते हैं। कई बार फॉर्म भरने के बाद ऑनलाइन रिजेक्ट हो जाता है। तहसील जाकर सही कराना पड़ता है। -आशीष सिंह, पलिया 
 
सरकार की मंशा अच्छी, पर निगरानी जरूरी
सरकार ने हर गांव में सुविधा पहुंचाने के लिए पंचायत सहायक रखे हैं, लेकिन इनकी उपस्थिति पर कोई निगरानी नहीं। अगर अधिकारी समय-समय पर जांच करें, तो व्यवस्था सुधर सकती है। -मीना देवी, देहवल

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