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Ghazipur News: खराब फ्रिज के बदले ग्राहक को नई दी जाए

Varanasi Bureau वाराणसी ब्यूरो
Updated Fri, 19 Dec 2025 01:31 AM IST
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The customer should be given a new refrigerator in place of the defective one.
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गाजीपुर। जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग ने बुधवार को एक अहम फैसले में उपभोक्ता को राहत देते हुए एलजी कंपनी एवं स्थानीय विक्रेता को सेवा में कमी और अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस का दोषी माना है। आयोग के अध्यक्ष सुजीत कुमार श्रीवास्तव व सदस्य रणविजय मिश्रा की दो सदस्यीय पीठ ने आदेश दिया है कि परिवादी को उसी मॉडल की नई फ्रिज दी जाए या फिर फ्रिज का पूरा मूल्य ब्याज सहित अदा किया जाए। मामला परिवाद संख्या 84/2019 से जुड़ा है, जिसकी सुनवाई जिला उपभोक्ता आयोग में हुई। परिवादी मुन्ना पांडेय, निवासी गहमर (परमा राय), सेवराई, गाजीपुर ने 23 मई 2019 को यह परिवाद दाखिल किया था। परिवादी ने बताया कि उन्होंने 7 सितंबर 2016 को गहमर स्थित राज इलेक्ट्रानिक्स एंड सर्विस से एलजी कंपनी की फ्रिज लगभग 31,490 रुपये में खरीदी थी। इस पर एक वर्ष की पूरी वारंटी थी।
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परिवादी के अनुसार फ्रिज खरीद के अगले ही दिन से खराब हो गई और काम नहीं कर रही थी। शिकायत करने पर दुकानदार द्वारा कभी गैस न होने, तो कभी अन्य तकनीकी खराबी बताकर फ्रिज को ठीक करने का आश्वासन दिया गया। बाद में सर्विस सेंटर के तकनीशियन ने फ्रिज के कंप्रेसर में खराबी बताई, जो मैन्युफैक्चरिंग डिफेक्ट की ओर इशारा करती है। बावजूद इसके, वारंटी अवधि में फ्रिज को न तो ठीक किया गया और न ही बदला गया। आयोग ने सुनवाई के दौरान पाया कि विपक्षीगण की ओर से कोई प्रभावी जवाब दाखिल नहीं किया गया और मामला एकपक्षीय रूप से सुना गया। उपलब्ध साक्ष्यों और दस्तावेजों के आधार पर आयोग ने माना कि परिवादी उपभोक्ता है और विपक्षीगण द्वारा सेवा में स्पष्ट कमी की गई है। जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग के अध्यक्ष सुजीत कुमार श्रीवास्तव व सामान्य सदस्य रणविजय मिश्र ने 17 दिसंबर को पारित आदेश में निर्देश दिया कि विपक्षी संख्या-1 परिवादी को उसी मॉडल की नई फ्रिज उपलब्ध कराए। यदि उक्त मॉडल का निर्माण बंद हो चुका है तो परिवादी को फ्रिज का मूल्य 31,490 रुपये सात प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित, परिवाद दाखिल करने की तिथि से वास्तविक भुगतान तक अदा किया जाए।
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इसके साथ ही आयोग ने मानसिक व आर्थिक क्षति के लिए 10,000 रुपये तथा मुकदमे के खर्च के रूप में 5,000 रुपये अलग से भुगतान करने का भी आदेश दिया है। यह संपूर्ण राशि आदेश पारित होने की तिथि से दो माह के भीतर अदा करने का निर्देश दिया गया है। आयोग ने स्पष्ट किया कि यदि आदेश का पालन तय समय-सीमा में नहीं किया गया तो परिवादी को विधिक कार्रवाई का अधिकार होगा।
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