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Kotdwar News: गुणेथा गांव में ग्रामीणों ने सुनी बाघ की दहाड़, दहशत बरकरार

संवाद न्यूज एजेंसी, कोटद्वार Updated Thu, 18 Dec 2025 07:14 PM IST
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Villagers in Gunetha village heard the roar of a tiger, panic persists
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केटीआर के एसओजी व वन विभाग की टीम लगातार कर रही गश्त
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संवाद न्यूज एजेंसी
कोटद्वार। जयहरीखाल ब्लॉक के अंतर्गत गुणेथा गांव में बृहस्पतिवार सुबह तड़के ग्रामीणों ने बाघ की दहाड़ सुनी। सूचना पर पहुंची वन विभाग की टीम ने ग्रामीणों से इस संबंध में जानकारी ली। कालागढ़ टाइगर रिजर्व (केटीआर) वन प्रभाग लैंसडौन की एसओजी व वन विभाग की टीम प्रभावित क्षेत्र में लगातार गश्त कर रही है।
गुणेथा निवासी देवेंद्र प्रसाद, कमलेश प्रसाद भट्ट व पूर्व प्रधान भगत सिंह ने बताया कि बृहस्पतिवार सुबह तड़के गांव से सटे जंगल से बाघ के दहाड़ की तेज आवाजें सुनाई दीं। डर के कारण ग्रामीण अब खेतों में समूह में जा रहे हैं। उधर प्लेन रेंज के रेंजर अमोल इष्टवाल ने बताया कि ग्रामीणों की सूचना पर टीम गांव गई थी। उन्होंने आसपास के क्षेत्र में गश्त भी की, लेकिन कहीं भी बाघ या गुलदार नजर नहीं आया। उन्होंने बताया कि एसओजी व वन विभाग की टीमें लगातार प्रभावित क्षेत्र में लगातार गश्त कर रही हैं। उधर गढ़वाल वन प्रभाग के पोखड़ा रेंज के रेंजर नक्षत्र शाह ने बताया कि देवराड़ी, घंडियाल व बगड़ीगाड में बृहस्पतिवार को भी कहीं भी गुलदार या बाघ नजर नहीं आया है।
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प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को भेजा ज्ञापन
श्रीनगर। उत्तराखंड के पर्वतीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों में गुलदार, भालू और बंदरों के बढ़ते हमले से आम जनता की जान पर खतरा हो गया है। जंगली जानवरों के हमलों में अब तक कई लोगों की जान जा चुकी है जबकि कई लोग घायल हुए हैं। कई परिवारों के सामने आजीविका का संकट खड़ा हो चुका है। उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी प्रेमदत्त नौटियाल ने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को इस संबंध में ज्ञापन भेजा। उन्होंने कहा कि गुलदार और भालू की ओर सेबच्चों, युवाओं, बुजुर्गों पर हमले किए जा रहे हैं। वहीं बंदर किसानों की खेती-बाड़ी को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं और घरों में घुसकर खाद्य सामग्री नष्ट कर रहे हैं। स्थिति यह है कि अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजने में डर रहे हैं। नौटियाल ने आबादी में आ रहे जानवरों से निजात दिलाने, प्रभावित क्षेत्रों में विशेष सुरक्षा टीमें तैनात करने, पीड़ित परिवारों को उचित मुआवजा देने तथा मानव-वन्यजीव संघर्ष रोकने के लिए स्थायी नीति लागू करने की मांग की है।
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